दिलचस्प

देश की पहली महिला पायलट जो साड़ी पहनकर प्लेन उड़ाती थी, दिलचस्प है उनकी कहानी

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस यानी एक दिन उन सभी महिलाओं के सम्मान के नाम जिनके बिना ये संसार ही अधूरा है। समय बहुत आगे बढ़ गया है, लेकिन आज भी महिलाओं की आजादी की बात कही जाती है। हम आगे ना बढ़ पाने या ना बन पाने के कई बहाने करते है कि समाज क्या कहेगा, परिवार नहीं मानेगा, शादी कौन करेगा, लेकिन क्या आप यकीन कर सकते हैं कि जिस वक्त महिलाओं की जिंदगी चारदीवारी के अंदर कैद थी उस वक्त एक महिला ऐसा थी जिसने पहली बार प्लेन उड़ाया था। सारे बंधनों और समाज की सोच को पछाड़ते हुए उसने अपने सपनों को पूरा किया।

प्लेन उड़ाने वाली पहली महिला थीं सरला

1936 का समय वो दौर था जब महिलाओं पर बहुत बंदिशे लगा करती थी। घर में बंद रहना पड़ता था क्योंकि उन्हें बताया गया था कि बाहर का माहौल खराब है। जिस दौर में कोई महिला अपने घर की दहलीज नहीं लांघ पाती थी उस दौर में एक औरत ने विमान उड़ाया था ये आज भी कल्पना से परे लग सकता है, लेकिन है तो सच। 1936 में सरला ठकराल ने 21 साल की उम्र में विमान उड़ाया और इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली भारत की पहली महिला थीं सरला।

सरला ठकराल 15 मार्च को दिल्ली में जन्मी थी। उन्होंने 1929 में दिल्ली में खोले गए फ्लाइंग क्लब में विमान चलाने का प्रशिक्षण लिया था। दिल्ली के फ्लाइंग क्लब में उनकी मुलाकात पीडी शर्मा से हुई थी तब उन्हें भी नहीं पता रहा होगा की वो उनकी पत्नी बन जाएगी। शादी के बाद उनके पति ने उन्हें व्यवसाय़िक विमान चालक बनने का प्रोत्साहन दिया था।

अपने सपनों औऱ पति के साथ के बाद सरला ठकराल जोधपुर फ्लाइंग क्लब में ट्रेनिंग लेने लगीं। 1936 में लाहौर के हवाईअड्डे से ये जिप्थी मॉथ नाम के दो सीट वाले विमान को उड़ाकर सरला ने इतिहास रच दिया। उस दौर में किसी महिला के लिए ऐसा सोच पाना भी कठिन था और सरला ने तो ये कर दिखाया था। हालांकि हालात हमेशा उनके अनुकूल नहीं रहे।

जिंदगी में खो गया हमसफर औऱ फिर मिला

1939 में दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। उस समय वो कमर्शियल पायलेट लाइसेंस लेने के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी। युद्ध के चलते फ्लाइट क्लब बंद करना पड़ा और सरला को अपनी ट्रेनिंग बीत में ही रोकनी पड़ी। सिर्फ इतना ही दुख नहीं मिला। इसी साल एक विमान दुर्घटना में उनके पति का निधन हो गया औऱ उनकी जिंदगी ही पलट गई।

पति के गुजरने के बाद सरला भारत लौट आई औऱ मेयो स्कूल ऑफ आर्ट में उन्होंने दाखिला लिया। यहां बंगाल स्कूल ऑफ से पेटिंग सीखी और फाइन आर्ट में डिप्लोमा भी किया। भारत के विभाजन का समय आया  और सरला अपनी दो बेटियों के साथ दिल्ली बस गई। वहीं उनकी मुलाकात पीपी ठकराल से हुई। दोमनों मे 1948 में शादी कर ली। इस बार वो पेंटर बनीं। 15 मार्च 2008 को सरला इस दुनिया को अलविदा कह गईं।

उनके दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा था, लेकिन प्रोत्साहन उन्हें पति से मिला। पहली बार प्लेन चलाने के लिए औऱ दूसरी बार एक शानदार कलाकर बनने के लिए। उनकी सफलता उन्हें अपनी मेहनत से मिली थी, लेकिन प्रेरणा अपने पति से। हम सिर्फ ये नहीं कह सकते की एक सफल आदमी के पीछे औरत का हाथ होता है, हम ये भी कह सकते हैं कि एक सफल औरत के पीछे एक आदमी का हाथ हो सकता है।

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