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ऑपरेशन मेघदूत: माइनस 70 डिग्री तापमान में भी जब भारतीय सेना ने छुड़ाए दुश्मनों के छक्के

दुश्मनों ने जब-जब भारत की चोटियों की बर्फ को कुरेदने की कोशिश की है, तब-तब भारत ने अपने हृदय में दहकते लावे में जलाकर दुश्मनों को भस्म कर दिया है। भारतीय सेना ने हमेशा से बहादुरी की मिसाल कायम की है। परिस्थितियां चाहे कितनी भी प्रतिकूल क्यों न रही हों, भारतीय सेना के पराक्रम में कभी कोई कमी नहीं आई है। ऑपरेशन मेघदूत इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जब माइनस 70 डिग्री तापमान में सियाचिन ग्लेशियर पर चढ़ाई करके भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया था।

सियाचिन ग्लेशियर

भारत की खुफिया एजेंसी रॉ ने यह खबर दी कि पाकिस्तान 17 अप्रैल, 1984 को सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने जा रहा है। दरअसल ऊंचाई पर रहने का लाभ युद्ध के दौरान खूब मिलता है। ऐसे में भारतीय सेना की ओर से पाकिस्तान को करारा जवाब देने के लिए ऑपरेशन मेघदूत चलाने का फैसला किया गया।

सभी पोस्ट पर जवानों को सतर्कता से तैनात होने के लिए कह दिया गया। साथ ही भारत ने पाकिस्तान से 4 दिन पहले 13 अप्रैल, 1984 को ही सियाचिन ग्लेशियर पर पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित कर लिया। सियाचिन ग्लेशियर की चढ़ाई करना इतना भी आसान नहीं था। ऊपर से चढ़ाई रात में करनी थी। फिर भी जम्मू व कश्मीर में श्रीनगर के 15 कॉर्प के तत्कालीन जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल प्रेमनाथ हुन के नेतृत्व में भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर दिया।

दिया तिरंगा

सबसे पहले मार्च, 1984 में सियाचिन ग्लेशियर के पूर्वी बेस की ओर कुमाऊँ रेजीमेंट की इकाइयों ने जोजिला दर्रे से होकर ब्रिगेडियर डीके खन्ना की अगुवाई में बढ़ना शुरू किया। पाकिस्तानी रडार से बचने के लिए सैनिकों ने पैदल ही चढ़ाई शुरू की। दुर्गम रास्तों को बहादुरी के साथ पार करते हुए 13 अप्रैल, 1984 को भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर के महत्वपूर्ण हिस्सों पर अपना कब्जा जमा लिया और वहां तिरंगा लहरा दिया।

जिस दिन पूरा देश बैसाखी का पर्व मना कर खुशी से झूम रहा था, उसी दिन भारत के जांबाज़ सैनिक अपने खून से विजय गाथा लिख रहे थे। बताया जाता है कि 300 सैनिकों को सियाचिन ग्लेशियर पर पहुंचने में कामयाबी मिली थी। भारतीय सैनिकों ने सिया ला और बिलफिड ला के 3 बड़े पर्वतों पर अपना कब्जा जमा लिया था।

पहुंचने की भी नहीं सोच सकते

सियाचिन ग्लेशियर की बनावट ऐसी है कि चढ़ाई करना तो दूर की बात है, यहां तक पहुंचने के नाम से ही लोगों के पसीने छूट जाते हैं। फिर भी भारतीय सेना के जांबाज़ जवानों ने -60 से लेकर -70 तक के तापमान में सियाचिन ग्लेशियर तक पहुंचकर पाकिस्तान को मात दे दिया था।

आधिकारिक तौर पर तो कभी इसकी पुष्टि नहीं हुई, लेकिन बताया जाता है कि सियाचिन ग्लेशियर की चढ़ाई करने के दौरान पाकिस्तान की ओर से की गई गोलीबारी में 200 भारतीय सैनिक शहीद भी हुए थे। कई सैनिकों की जान ठंड की वजह से चली गई थी। फिर भी जवानों ने यहां तिरंगा फहरा कर दिखा दिया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए और देश के गौरव के लिए वे हर परिस्थिति से पार पाने में सक्षम हैं।

प्रतिकूल हालातों में भी डटे हैं

ऑपरेशन मेघदूत के बाद भी सियाचिन ग्लेशियर में सेना की तैनाती है। सिया ला, बिलफोंद ला और म्यूंग ला दर्रे पर भारत का कब्जा है। परिस्थितियां यहां जिंदगी के अनुकूल नहीं हैं। हमेशा बर्फीली हवाएं चलती हैं। खाना पकाने के लिए चूल्हा नहीं जल पाता है। पीने का पानी नहीं मिल पाता। कई बार बर्फीले पहाड़ों में दबने से जवानों की मौत भी हो जाती है। फिर भी भारतीय सेना के जवान यहां डटे रहकर अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हैं।

फरवरी 2016 में यहां भारत के वीर जवान हनुमंथप्पा के साथ और भी जवान बर्फ में दब गए थे। हनुमंथप्पा की बहादुरी देखने लायक थी। कई घंटे बीत जाने के बाद भी बर्फ से वे जिंदा बाहर निकले थे। नौ जवानों की जान चली गई थी। बाद में हनुमंथप्पा ने भी दम तोड़ दिया था।

बताया जाता है कि हर साल में कम-से-कम दो सैनिकों की मौत प्रतिकूल हालात की वजह से यहां हो जाती है। फिर भी ये सैनिक अपने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने से भी नहीं चूकते। सियाचिन ग्लेशियर का महत्व भारत के लिए इसलिए बहुत है, क्योंकि इसके एक और पाकिस्तान है तो दूसरी ओर चीन अक्साई चीन की सीमा यहां आकर लगती है।

पाकिस्तान यदि सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा कर ले तो चीन के साथ मिलकर वह भारत के लिए बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। यही कारण है कि सियाचिन ग्लेशियर पर खुद की जिंदगी की परवाह न करते हुए भारतीय सेना के जवान हर पल पूरी मुस्तैदी के साथ डटे रहते हैं।

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