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सआदत हसन मंटो वो कहानीकार जिसे सच बोलने के कारण मरते दम तक इज्ज़त नसीब नहीं हुई

Saadat Hasan Manto -सआदत हसन मंटो एक ऐसा नाम जिसे फिल्म, साहित्य से जुड़ा हुआ हर आदमी जानता है. सआदत हसन मंटो सिर्फ एक आदमी या पहचान भर नहीं थी. ये आदमी अपने आप में एक किताब था. एक ऐसी किताब जो समाज में जैसा देखती बस वैसा ही अपने अंदर लिख देती थी. ‘चाहे वह काली स्याही हो या फिर काली ही स्याही हो’. मतलब ये कि अमूमन मंटों सिर्फ समाज का कालापन ही सबके सामने रखते थे. एक ऐसा कालापन जो करती तो दुनिया थी लेकिन बाद में अपने ही किये हुए से नज़रे भी चुराती थी.

Saadat Hasan Manto

“मैं उस सोसाइटी की चोली क्या उतारूंगा जो पहले से ही नंगी है. उसे कपड़े पहनाना मेरा काम नहीं है. यह काम दर्जी का है.” ये है सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) के कड़वे शब्द. मंटो को एशिया के बड़े उर्दू कहानीकार के रूप में जाना जाता है. मंटो का जन्म भारत की आज़ादी से पहले 11 मई, 1912 को पंजाब के समराला में हुआ था. पिता मौलवी ग़ुलाम हुसैन कश्मीरी मूल के थे. मंटो को बचपन से ही किताबें पढ़ने और साहित्य में दिलचस्पी थी.

Saadat Hasan Manto

Story of Saadat Hasan Manto

Saadat Hasan Manto की कहानियों पर उनके दुनिया से रुख्शत होने के बाद आज भी विवाद जारी है. इतने विवाद होने के बावजूद मंटो की कहानियों की किताबें बाज़ार में आने के तुरंत बाद ही बिक जाती है. मंटों को न जानें कितनी बेशर्मी वाले टैग दिए जाते रहे, मगर वह अपना काम हमेशा ईमानदारी से करतें रहे. आज भारत-पाकिस्तान मंटों पर अपनी दावेदारी दिखाते हैं. लेकिन, जब तक वो ज़िंदा रहे, दोनों ही मुल्क उन्हें नहीं अपना रहे थे. आज हालात ये है कि मंटों की किताबो पर PHD तक होती है.

Saadat Hasan Manto

उन्होंने ख़ूब रूसी व फ्रेंच साहित्य पढ़ा. 1940 में उन्हें रेडियो के लिए लिखने का मौका भी मिला. इसके बाद उन्होंने मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए भी ख़ूब लेखन किया. 1947 के बंटवारे का मंटो के दिल पर गहरा प्रभाव हुआ था. वह भारत छोड़कर पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे. पाकिस्तान जाने के बाद दर्द को कम करने के लिए मंटो लगातार शराब पीते रहते थे. मंटो को मुंबई से बेहद लगाव था, इस कदर की वह अपने आखरी वक्त में भी मुंबई का ही जिक्र किया करते थे.

Saadat Hasan Manto

पाकिस्तान में सआदत हसन मंटो की जिंदगी

देश के विभाजन के बाद बम्बई छोड़कर लाहौर जा बसे सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) ने अपनी जिंदगी का सबसे कठिन समय उस नए मुल्क में बिताया था और उनका सबसे ज्यादा मुकम्मल काम भी उन सात सालों (1948-1954) के दौरान का ही माना जाता है. मंटो को मुंबई से इतना लगाव था कि वह खुद को चलता-फिरता बॉम्बे कहा करतें थे. मंटो ने मीना बाजार नाम से एक किताब लिखी. इसमें उन्होंने नूरजहां, अशोक कुमार, नरगिस जैसे चोटी के सितारों के साथ बिताए वक्त का जिक्र किया है. पाकिस्तान जाकर उन्हें आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा.

Saadat Hasan Manto with bollywood stars

विभाजन का दर्द

भारत-पाक विभाजन को लेकर मंटो (Saadat Hasan Ali Manto) के मन में काफी दुःख भी था. सबसे बड़ा मलाल अशोक कुमार और अभिनेता श्याम से गहरी दोस्ती खोने का था. उस समय के मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फैज़ और मंटो गहरे दोस्त थे और दोनों के बीच टकराव भी था.

death of Saadat Hasan Manto

पाकिस्तान में मंटो को अश्लील कहते हुए उनपर कई केस चलाये गए. इसके बाद अवसाद और मानसिक तनाव का साथ-साथ शराब की लत ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़कर रख दिया था. वह दिन रात शराब के नशे में डूबे रहते थे. 42 साल की उम्र में मंटो जैसा कलाकार इस दुनिया को अलविदा कह गया. इतनी कम उम्र में उन्होंने जितनी कहानियां उर्दू में दी कोई और नहीं दें पाया. हम सिर्फ इतना कहेंगे, मजहब से परे होकर एक बार मंटो (Saadat Hasan Manto)को जरूर पढ़े.

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