अध्यात्म

मई महीने में इस दिन आ रही है वरुथिनी एकादशी, पढ़ें इससे जुड़ी रोचक कथा

हिंदू धर्म में एकादशी का काफी महत्व है और इस दिन कई लोगों द्वारा व्रत रखा जाता है। हर महीने में 2 एकादशियां आती हैं। इस तरह से हर साल कुल 24 एकादशियां आती हैं। जबकि प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होने से 2 एकादशियां जुड़कर ये संख्या 26 हो जाती हैं। शास्त्र में एकादशी व्रत को काफी महत्वपूर्ण बताया गया है और इस व्रत को करने से पापों से मुक्ति मिल जाती है। प्रत्येक एकादशी व्रत का नाम और इससे जुड़ फल अलग-अलग होते हैं। इस महीने 7 मई को आने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है और इस एकादशी का व्रत करने से हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

वरुथिनी एकादशी व्रत मुहूर्त

वरुथिनी एकादशी 7 मई शुक्रवार को आ रही है। एकादशी तिथि आरंभ  06 मई 2021 को दोपहर 02 बजकर 10 मिनट से होगा। जबकि एकादशी तिथि समाप्त- 07 मई 2021 को शाम 03 बजकर 32 मिनट तक है। द्वादशी तिथि समाप्त 08 मई को शाम 05 बजकर 35 मिनट पर होगगी। एकादशी व्रत पारण 08 मई को प्रातः 05 बजकर 35 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 16 मिनट तक है। यानी पारण की कुल अवधि 2 घंटे 41 मिनट है।

पूजन विधि

  • एकादशी दशमी तिथि से ही आरंभ हो जाती है। इसलिए दशमी तिथि की रात्रि में सात्विक भोजन करें। अगले दिन उठकर घर की सफाई कर स्नान करें और पूजा घर को भी साफ कर लें।
  • पूजा घर साफ करने के बाद एक चौकी पर विष्णु जी की मूर्ति को स्थापित कर दें और पूजा को आरंभ करें।
  • पूजा आरंभ करते हुए सबसे पहले व्रत रखने का संकल्प धारण करें। संकल्प धारण करने के लिए हाथ में जल और फूल लें और व्रत रखने का संकल्प लें।
  • एकादशी का व्रत दो प्रकार से किया जाता है। पहला निर्जला रहकर और दूसरा फलाहार। इसलिए अपने हिसाब से इनमें से कोई सा भी व्रत कर लें।
  • संकल्प धारण करने के बाद भगवान विष्णु को अक्षत, दीपक, नैवेद्य, आदि चीजें अर्पित करें और इनके मंत्रों का जाप करें।
  • इस दिन पीपल के पेड़ की भी पूजा करें। पूजा करते हुए पीपल के पेड़ की जड़ में कच्चा दूध चढ़ाकर घी का दीपक जलाएं।
  • वहीं तुलसी का पूजन भी आवश्य करें। पूजन के दौरान ॐ नमो भगवत वासुदेवाय नम: के मंत्र का जाप करते रहें और दो दीपक जला दें।
  • रात में भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा-अर्चना करें और पूरे दिन भगवान विष्णु का स्मरण करें। हो सके तो रात को पूजा स्थल के समीप ही सोएं।
  • एकादशी के अगले दिन द्वादशी को व्रत खोलें। ये व्रत पारण मुहुर्त में खोलें। व्रत खोलने के बाद ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन कराएं।

वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा

वरुथिनी एकादशी से जुड़ी कथा के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा तपस्या कर रहा था। उसी समय जंगली भालू आ गया और उसने राजा के पैर चबाना शुरू कर दिया। भालू राजा को घसीट कर वन ले जाने लगा। राजा ने घबराकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तपस्वी राजा की प्रार्थना सुनकर भगवान श्री हरि वहां प्रकट हुए़ और सुदर्शन चक्र से भालू का वध कर दिया। लेकिन तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था। अपना पैर खोने के कारण राजा मान्धाता बहुत दुखी हो गए। भगवान श्री हरि विष्णु ने राजा की पीड़ा को दूर करने के लिए कहा कि तुम्हारे इस पैर की ये दशा पूर्वजन्म के अपराध के कारण हुई है। पवित्र नगरी मथुरा जाकर तुम मेरी वाराह अवतार के विग्रह की पूजा और वरूथिनी एकादशी का व्रत करो। इस व्रत को करने से तुम्हारा जो पैर काटा है, वो ठीक हो जाएगा।

भगवान श्रीहरि विष्णु के आदेश का पालन करते हुए राजा पवित्र पावन नगरी मथुरा पहुंच गए और पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ इस व्रत को कियाय़ जिसके चलते उनका खोया हुआ पैर उन्हें पुन: प्राप्त हो गया।

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