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काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कोर्ट का बड़ा फैसला- ASI को आदेश जारी किये

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े मामले में वाराणसी के सिविल जज आशुतोष तिवारी ने गुरुवार को फैसला सुनाते हुए पुरातात्विक विभाग को ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण करने को कहा है। अदालत की ओर से सुनाए गए फैसले में कहा गया है कि इस सर्वेक्षण में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पांच विख्यात पुरातत्व वेत्ताओं को शामिल किया जाए। जिनमें दो सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय के भी होंगे। अदालत के इस फैसले का विरोध AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने किया है।

असदुद्दीन ओवैसी के अनुसार इस आदेश की वैधता संदिग्ध है। बाबरी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून में किसी टाइटल की फाइंडिंग ASI द्वारा पुरातात्विक निष्कर्षों पर आधारित नहीं हो सकती है। ओवैसी ने ASI पर भी आरोप लगाते हुए कहा कि वो हिंदुत्व के हर प्रकार के झूठ के लिए मिडवाइफ की तरह काम कर रही है। कोई भी इससे निष्पक्षता की उम्मीद नहीं करता है।

क्या है पूरा मामला

ज्ञानवापी मस्जिद जिस जगह पर बनीं है वो विश्वनाथ मंदिर या विशेश्वर मंदिर की बताई जाती है। ऐसे में वाराणसी में भगवान विशेश्वर की तरफ से वाराणसी के रहने वाले विजय शंकर रस्तोगी व अन्य ने लोगों ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी और इसमें मस्जिद की जमीन को मंदिर का बताया था।

इस याचिका की सुनवाई वाराणसी की सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक दीवानी अदालत में चल रही है। साल 2019 से इस बात पर बहस की जा रही थी कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण पुरातात्विक विभाग से करवाया जाए की नहीं। वहीं अब कोर्ट ने पुरातात्विक विभाग से ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण करवाने का फैसला सुनाया है। साथ में ही कोर्ट में जल्द से जल्द रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।

याचिका को दाखिल करते हुए कोर्ट में विशेश्वर मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास बताया गया था। इसमें कहा गया था कि बादशाह अकबर के जमाने में एक बार वाराणसी और उसके आस-पास बहुत भयंकर सूखा पड़ गया था। ऐसे में अकबर ने सभी धर्म गुरुओं से कहा कि वो अपने-अपने भगवान से दुआ करें की यहां पर जल्द ही बारिश हो जाए। अकबर के आदेश का पालन करते हुए वाराणसी के धर्म गुरु नारायण भट्ट ने पूजा की और 24 घंटे में ही बारिश हो गई। इससे बादशाह अकबर बहुत खुश हुए।

अकबर ने नारायण भट्ट से कुछ मांगने को कहा। जिसपर इन्होंने बादशाह से भगवान विशेश्वर का मंदिर बनाने की इजाजत मांग ली। बादशाह अकबर ने अपने वित्त मंत्री राजा टोडर मल को मंदिर बनाने का आदेश दिया। इस तरह भगवान विशेश्वर का मंदिर ज्ञानवापी इलाके में बन गया। ये पूरा ज्ञानवापी इलाका एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर में फैला है।

ज्ञानवापी परिसर में चार मंडप थे और यहां पर धर्म का अध्य्यन किया जाता था। कहा तो ये भी जाता है कि इस जगह पर खुद भगवान विशेश्वर ने अपने त्रिशूल से गड्ढा खोदा था और एक कुआं बनाया था जो आज भी मौजूद है।

याचिका में आगे लिखा गया है की 18 अप्रैल 1669 को बादशाह औरंगजेब को ये जानकारी दी गई कि मंदिर में अंधविश्वास सिखाया जा रहा है। औरंगजेब ने ये गलत जानकारी मिलने पर मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया। इस बात का जिक्र अरबी भाषा में लिखी मा असीर-ए-आलमगीरी में है। ये किताब कोलकाता की एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल में मौजूद है।

आदेश मिलने पर मंदिर को तोड़ दिया गया। हालांकि मंदिर का कुछ हिस्सा ध्वस्त नहीं किया गया और यहां पर पूजा होती रही। मंदिर के बगल में ही ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी गई और इसे बनाने के लिए मंदिर के ही मलबे का इस्तेमाल हुआ। ये मस्जिद किसने बनवाई इसका जिक्र याचिका में नहीं किया गया है।

मस्जिद बनने के बाद से ही ये विवाद शुरू हुआ और साल 1809 में दंगा भी हुआ था। ज्यादातर विवाद मुसलमानों के मस्जिद के बाहर मंदिर के इलाके में नमाज पढ़ने की वजह से हुआ। उस समय अंग्रेजों के पास भी इस चीज की शिकयात की गई थी। तब अफसरों ने वक्त-वक्त पर सरकार को इस पर अलग-अलग राय दी है। याचिका में दावा किया गया है कि अंग्रेजों ने 1928 में पूरी जमीन हिंदुओं को दे दी थी। यानी ये सारी जमीन मंदिर की है।

लेकिन अभी भी ये जमीन मस्जिद के पास है। ऐसे में कोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया है कि ये जमीन विशेश्वर मंदिर के ट्रेस्ट को वापस की जाए। इसपर इनका हक है।

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