अध्यात्म

10 जनवरी को है पौष पूर्णिमा, इस दिन मां दुर्गा ने लिया था शाकंभरी अवतार, जानें इस अवतार की कथा

10 जनवरी को पौष मास की पूर्णिमा और माता शाकंभरी की जयंती है। माता शाकंभरी को मां दुर्गा का रुप माना जाता है और इस दिन इनकी पूजा करने से शुत्रओं का नाश हो जाता है और हर क्षेत्र में विजय प्राप्ति होती है। माता शाकंभरी का जिक्र मार्कंडेय पुराण में मिलता है और इस पुराण के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा के दिन माता शाकंभरी का जन्म हुआ था। जिसके चलते पौष मास की पूर्णिमा के दिन माता शाकंभरी की जयंती भी मनाई जाती है। पुराणें के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मां दुर्गा ने शाकंभरी रूप लिया था। ताकि मानव का कल्याण हो सके।

माता शाकंभरी की कथा

माता शाकंभरी से जुड़ी कथा के अनुसार अकाल से तंग आकर भक्तों ने मां दुर्गा की पूजा की थी। भक्तों की पूजा से प्रसन्न होकर मां दुर्गा नए अवतार में प्रकट हुई और मां दुर्गा की हजारों आंखे थी। मां दुर्गा ने अपनी आंखों से नौ दिनों तक लगातार आंसुओं की बारिश की। जिसके चलते पूरी पृथ्वी हरी भरी हो गई और अच्छी फसल उग गई। मां का ये अवतार देवी शताक्षी या शाकंभरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ और तभी से मां के इस अवतार की पूजा की जाने लगी।

किसान जरूर करते हैं पूजा

पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को शाकंभरी नवरात्रे आरंभ हो जाते हैं। जो पौष पूर्णिमा तक चलते हैं। पौष पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है और मां की पूजा की जाती है। मां की पूजा करते समय मां को फल और अनाज अर्पित किए जाते हैं। साथ में ही मां से अच्छी फसल की कामना भी की जाती है। मां की पूजा करते हुए आप नीचे बताए गए मंत्र का जाप कम से कम 21 बार जरूर करें। ऐसा करने से आपकी हर कामना को मां पूरा कर देंगी।

मां शाकंभरी का मंत्र

शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।

मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।

इस मंत्र में मां का वर्णन किया गया है जो कि इस प्रकार है – देवी शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये पद्मासना हैं अर्थात् कमल पुष्प पर ही विराजती हैं। इनकी एक मुट्‌ठी में कमल का फूल रहता है और दूसरी मुट्‌ठी बाणों से भरी रहती है।

जरूर करें ये काम

  • मां शाकंभरी जयंती के दिन पौष पूर्णिमा भी है। इसलिए  इस दिन मंदिर में जाकर दान करें और शाम के समय पीपल के पेड़ की पूजा करें और पेड़ पर जल चढ़ाएं। जल चढ़ाने के बाद पीपल के पेड़ के पास एक दीपक जलाकर इस पेड़ की सात परिक्रमा भी करें।
  • इस दिन चंद्रमा की पूजा करना भी शुभ होता है। चंद्र की पूजा करते हुए उन्हें सबसे पहले पानी से अर्घ्य दें और उसके बाद उन्हें खीर अर्पित करें। इस खीर को प्रसाद के तौर पर बांट कर खा लें। कई लोगों द्वारा पूर्णिमा के दिन व्रत भी रखा जाता है। इसलिए आप चाहें तो इस दिन व्रत भी कर सकते हैं। इस व्रत को आप अगले दिन पूजा करके तोड़ दें।

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