अध्यात्म

भगवान शिव और माता पर्वत का निवास स्थल है ये पर्वत,जाने पर बन जाते हैं पत्थर

हिंदुओं में कई ऐसे तीर्थ स्थल हैं जिसकी यात्रा के लिए आपको पहाड़ों पर और बर्फीले इलाकों में जाना पड़ता है।लेकिन क्या आपने सुना है किसी ऐसे पर्वत या बर्फीले पहाड़ के बारे में जिसमें अगर आप जाने का प्रयास करते हैं तो आप भी जमकर पत्थर बन जाते हैं।आप ये सुनकर जरूर हैरान हो रहे होंगे लेकिन ये बात एकदम सच है ।हालांकि अमरनाथ, कैलाश मानसरोवर जैसे कई ऐसे तीर्थस्थान हैं जो काफी ऊंचाई पर स्थित हैं और श्रद्धालु वहां पर दर्शन के लिए जाते हैं।इसके अलावा भी कई ऐसे पर्वत हैं जो काफी ऊचाईयों पर हैं लेकिन लोग उनकी चोटी तक पहुंच जाते हैं।लेकिन एक ऐसा पर्वत है जिसकी चोटी तक पहुंचने की हिम्मत आज तक कोई नहीं कर पाया है।तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर कहां है वो पर्वत….

आपको बता दें हिमाचल प्रदेश के चंबा जिला के भरमौर में स्थित मणिमहेश पर्वत को टरकोईज माउंटेन के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ वैदूर्यमणि या नीलमणि होता है। समुद्र तल से 18500 फीट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश नाम के पौराणिक पर्वत पर जिसने भी चढ़ने की कोशिश की है वो पत्थर बन गया है।बता दें कि इस पर्वत को भगवान शिव और माता पार्वती का निवास स्थान भी माना जाता है, कहा जाता है कि जब शंकर भगवान ने पार्वती माता से विवाह किया था तभी उन्होंने इस पर्वत का निर्माण किया था और माता पार्वती के साथ यहां पर आए थे।

इस पर्वत को लेकर के कई कथाएं भी प्रचलित हैं जो उसके आसपास के रहने वाले निवासियों के द्वारा बताई गई हैं।कथाओं के अनुसार साल 1968 में भी इस पर्वत पर एक पर्वतारोही ने चढ़ने की कोशिश की लेकिन वो असमर्थ रहा।और उसका कोई पता नहीं चला इस घटना के बाद आज तक मणिमहेश पर्वत पर चढ़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया है। हालांकि उस पर्वतारोही के पत्थर बनने के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं। इसके अलावा वहां के स्थानीय लोग इस बात पर पूरी तरह से भरोसा करते हैं कि जिसने भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश की वो पत्थर बन जाएगा।

इसी से जुड़ी एक और कहानी हैं जो सुनने में आती हैं लोग बताते हैं कि ‘एक बार गड़रिया अपनी भे़डों के साथ मणिमहेश पर्वत की चोटी पर चढ़ने लगा लेकिन जैसे-जैसे वह ऊपर की ओर चलता गया, उसकी सभी भेडें एक-एक करके पत्थर बनती गईं। इसके बाद भी जब गड़रिया ने ऊपर चढ़ना बंद नहीं किया तो वह भी पत्थर में तब्दील हो गया। वैसे तो मणिमहेश यात्रा के प्रमाण सृष्टि के आदिकाल से मिलते हैं। लेकिन 520 ईस्वी में भरमौर नरेश मरू वर्मा द्वारा भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए मणिमहेश यात्रा का उल्लेख मिलता है।एक कथा के अनुसार क समय मरू वंश के वशंज राजा शैल वर्मा भरमौर के राजा थे। उनकी कोई निःसंतान थे। एक बार चौरासी योगी ऋषि इनकी राजधानी में पधारे। राजा की विनम्रता और आदर-सत्कार से प्रसन्न हुए इन 84 योगियों के वरदान के फलस्वरूप राजा साहिल वर्मा के दस पुत्र और चम्पावती नाम की एक कन्या को मिलाकर ग्यारह संतान हुई। इस पर राजा ने इन 84 योगियों के सम्मान में भरमौर में 84 मंदिरों के एक समूह का निर्माण कराया, जिनमें मणिमहेश नाम से शिव मंदिर और लक्षणा देवी नाम से एक देवी मंदिर विशेष महत्व रखते हैं। यह पूरा मंदिर समूह उस समय की उच्च कला-संस्कृति का नमूना आज भी पेश करता है।

होते हैं नीलमणि के दर्शन

हिमाचल सरकार ने इस पर्वत को टरकॉइज माउंटेन यानी वैदूर्यमणि या नीलमणि कहा है। मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे जब सूर्य उदय होता है तो सारे आकाश मंडल में नीलिमा छा जाती है और किरणें नीले रंग में निकलती हैं। मान्यता है कि कैलाश पर्वत में नीलमणि का गुण-धर्म हैं जिनसे टकराकर सूर्य की किरणें नीले रंग में रंगती हैं।

 

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