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अच्छे दिन पर ताना मारने वाले बतायें कि बुरे दिन लाया कौन था

कांग्रेस और उस के साथ खड़ी अन्य विपक्षी पार्टियां आये दिन  केंद्र सरकार से पूछती हैं कि अच्छे दिन का क्या हुआ, अच्छे दिन कहाँ हैं और अब तक क्यों नहीं आये ? मैं ऐसी सभी पार्टियों से कहना चाहता हूँ कि पहले ये यह बताएं कि देश में बुरे दिन लाया कौन था ? इतने साल देश पर राज़ करने के बाद आज कांग्रेस और उस की साथी पार्टियों को होश आया है कि देश को अच्छे दिन चाहिये ?

देश में यदि बुरे दिन हैं तो इस का जिम्मेदार कौन है ? इस देश में कांग्रेस के हाथ से सत्ता जाते ही अचानक से कांग्रेस को देश के अच्छे दिनों की फिक्र क्यों होने लगी ? ये सब चिंता और चर्चा यदि कांग्रेस ने इतने सालों की सत्ता में की होतीं तो आज यह देश यक़ीनन विकसित देशों की सूची में होता और जनता को अच्छे दिनों का इंतज़ार नहीं करना पड़ता |

मैं यह भी नहीं कहूंगा कि यदि कांग्रेस और उस की सहयोगी पार्टियों ने इस देश में बुरे दिन लाये तो फिर भाजपा इस बात को कहकर अच्छे दिन लाने के वादे से मुकर सकती है | भाजपा सत्ता में अच्छे दिन के वादे के साथ आयी थी और अब इस दिशा में गंभीरता से काम करना उस के जिम्मेदारी है | केंद्र सरकार ने कई जनहित की योजनाओं से यह संकेत भी दिए हैं कि वो अच्छे दिन लाने के लिए मेहनत कर रही है |

यदि कांग्रेस और उस की सहयोगी पार्टियों ने राज्यसभा ठीक से चलने दी होती तो कई अटके हुए महत्वपूर्ण बिल बहुत पहले ही पास हो चुके होते और आज जनता को उनके लाभ मिलने भी शुरू हो चुके होते | लेकिन यहाँ भी कांग्रेस और उस की सहयोगी पार्टियों ने राज्य सभा को न चलने देकर देश के अच्छे दिनों में एक रुकावट ही पैदा की | संसद की कार्रवाही में हर रोज २ करोड़ रुपये खर्च होते हैं | सोचिये संसद न चलने देने की वजह से अब तक कितना रुपया बिना काम के ही खर्च हो गया | क्या ये पार्टियां इस नुकसान की भरपाई अपनी जेब से करेंगी ?

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लगता है कि कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने कसम खा रखी है कि न तो हम अच्छे दिन लाएंगे और न ही किसी और को लाने देंगे | उस पर भी बेशर्मी की हद यह है कि कांग्रेस एवं उसका समर्थन करने वाली पार्टियों के नेता खुले आम पूछ रहे हैं कि अच्छे दिन कहाँ हैं | इन सभी नेताओं को देश में बुरे दिन लाने का दंड जनता ने पिछले लोकसभा चुनाव में दे ही दिया था और यदि ये नहीं सुधरे तो शायद आगे भी देती रहे |अच्छे दिन पर सवाल पूछने से पहले कांग्रेस और उस के सहयोगी बतायें कि बुरे दिन लाया कौन था

आये दिन कांग्रेस और उस के साथ खड़ी अन्य विपक्षी पार्टियां केंद्र सरकार से पूछती हैं कि अच्छे दिन कब आएंगे, अच्छे दिन का क्या हुआ, अच्छे दिन कहाँ हैं और अब तक क्यों नहीं आये ? मैं ऐसी सभी पार्टियों से कहना चाहता हूँ कि पहले ये यह बताएं कि देश में बुरे दिन लाया कौन था ? इतने साल देश पर राज़ करने के बाद आज कांग्रेस और उस की साथी पार्टियों को होश आया है कि देश को अच्छे दिन चाहिये ?

देश में यदि बुरे दिन हैं तो इस का जिम्मेदार कौन है ?

देश में यदि बुरे दिन हैं तो इस का जिम्मेदार कौन है ? इस देश में कांग्रेस के हाथ से सत्ता जाते ही अचानक से कांग्रेस को देश के अच्छे दिनों की फिक्र क्यों होने लगी ? ये सब चिंता और चर्चा यदि कांग्रेस ने इतने सालों की सत्ता में की होतीं तो आज यह देश यक़ीनन विकसित देशों की सूची में होता और जनता को अच्छे दिनों का इंतज़ार नहीं करना पड़ता |

मैं यह भी नहीं कहूंगा कि यदि कांग्रेस और उस की सहयोगी पार्टियों ने इस देश में बुरे दिन लाये तो फिर भाजपा इस बात को कहकर अच्छे दिन लाने के वादे से मुकर सकती है | भाजपा सत्ता में अच्छे दिन के वादे के साथ आयी थी और अब इस दिशा में गंभीरता से काम करना उस के जिम्मेदारी है | केंद्र सरकार ने कई जनहित की योजनाओं से यह संकेत भी दिए हैं कि वो अच्छे दिन लाने के लिए मेहनत कर रही है |

यदि कांग्रेस और उस की सहयोगी पार्टियों ने राज्यसभा ठीक से चलने दी होती तो कई अटके हुए महत्वपूर्ण बिल बहुत पहले ही पास हो चुके होते और आज जनता को उनके लाभ मिलने भी शुरू हो चुके होते | लेकिन यहाँ भी कांग्रेस और उस की सहयोगी पार्टियों ने राज्य सभा को न चलने देकर देश के अच्छे दिनों में एक रुकावट ही पैदा की | संसद की कार्रवाही में हर रोज २ करोड़ रुपये खर्च होते हैं | सोचिये संसद न चलने देने की वजह से अब तक कितना रुपया बिना काम के ही खर्च हो गया | क्या ये पार्टियां इस नुकसान की भरपाई अपनी जेब से करेंगी ?

लगता है कि कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने कसम खा रखी है कि न तो हम अच्छे दिन लाएंगे और न ही किसी और को लाने देंगे | उस पर भी बेशर्मी की हद यह है कि कांग्रेस एवं उसका समर्थन करने वाली पार्टियों के नेता खुले आम पूछ रहे हैं कि अच्छे दिन कहाँ हैं | इन सभी नेताओं को देश में बुरे दिन लाने का दंड जनता ने पिछले लोकसभा चुनाव में दे ही दिया था और यदि ये नहीं सुधरे तो शायद आगे भी देती रहे |

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