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1962 की जंग में शहीद हुए जवान की नही मिली बॉडी, तो पत्नी 57 साल तक बनी रही सुहागिन

आज के समय में अगर हम और आप अपने घर में इफाजत के साथ बैठे हैं तो इसका पूरा-पूरा श्रेय हमारी भारतीय सेना को जाता है जो हर मौसम और हर हाल में सीमा पर खड़े रहकर हमारी रक्षा करते हैं. आज भी हर दिन हमारे देश के जवान शहीद हो रहे हैं वो भी हमारे और आपकी हिफाजत के लिए वरना जिंदगी से प्यार किसे नहीं होता. उनका भी परिवार होता है और उनका भी दिल होता है. मगर ये आज की ही बात नहीं है बल्कि दशकों से ऐसा ही चलता आ रहा है जब सीमा पर जवान शहीद होता है लोग भी कुछ दिनों में भूल जाते हैं लेकिन याद रखता है तो उनका परिवार उनकी पत्नी और बच्चे, जो हर पर इस एहसास के साथ जीते हैं. ऐसा ही वाक्या एक महिला के साथ हुआ जब 1962 की जंग में शहीद हुए जवान की नही मिली बॉडी, तो उसने किसी की बात नहीं मानी और कई सालों तक सुहागिन की तरह जिंदगी बसर की.

1962 की जंग में शहीद हुए जवान की नही मिली बॉडी

ये खबर राजस्थान के जोधपुर में पीपाड़ तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले एक गांव खांगटा की है. यहां पर गट्टू देवी नाम की एक महिला रहती हैं जिनके पति भीकाराम ताडा भारतीय सेना में कार्यकत थे. साल 1962 में हुई भारत-चीन की जंग में वो शहीद हो गए और गट्टू देवी ने पति के शहीद होने के करीब 57 साल बाद भी सुहाग की निशानी को नही उतारा. उन्होने 27 फरवरी, 2019 के दिन ऐसा किया. खांगटा गांव मे 27 फरवरी के दिन भीकाराम की एक मूर्ति का अनावरण हुआ और जिसे गुट्टू देवी ने ही किया. गट्टू देवी जब अपने पति की मूर्ति के पास पहुंची तो उनके आंखों में आंसू आ गए और फिर किसी तरह उन्होने अपने आपको संभाला. फिर सिर में लगा मांग का टीका उतारकर अपने पति के चरणों में रख दी. गट्टू देवी इतने सालों तक अपने पति को जिंदा मानती रही और सुहागिन की तरह ही जिंदगी जीती रहीं.

इसके पीछे के गुट्टू देवी दो कारण मानती हैं, पहला ये कि शहीद अमर होते हैं दूसरा ये कि उस समय में यानी 50-60 साल पहले कई बाक तो शहीदों का पार्थिव शरीर उनके घर तक पहुंच नही पाता था और भीखाराम के साथ भी ऐसा ही हुआ था. ऐसे में गुट्टू देवी ने माना कि जब पार्थिव शरीर देखा ही नहीं तो कैसे मान लें कि पति शहीद हो गए हैं. गुट्टू देवी अब बूढ़ी हो गई हैं और वे बहुत छोटी थीं तब भीकाराम से शादी हुई थी. दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1 जुलाई 1943 के दिन गट्टू और भीकाराम की शादी हुई थी लेकिन 8 सितंबर, 1962 को वे शहीद हो गए थे और उनका पार्थिव शरीर नहीं आया तो उन्होंने उन्हें शहीद नहीं समझा था.

बच्चों को सुनाती रहीं वीरता की कहानी

गट्टू देवी ने अपने बच्चों को उनके पिता की वीरता की कहानी सुनाई और बच्चों को खूब पढ़ाया लिखाया. देश की सेवा में उनका बेटा एक आर्मी में है तो दूसरा नेवी में है. उनका बड़ा पोता भी भारतीय सेना में ऑफिसर बन गया. अपना फर्ज बखूबी निभाने वाली गट्टू देवी को लगता है कि उन्होने अपने सारे फर्ज निभा लिए हैं तब उन्होने अपने पति को शहीद माना और उनकी मूर्ति लगवाने का फैसला किया. 57 साल से गट्टू ने सुहागिन का हर फर्ज निभाया और लोगों के ताने भी खाए लेकिन उन्होंने हिम्मत रखी.

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