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विदेशों में काला धन रखने वालों की अब खैर नहीं, स्विट्जरलैंड देगा आंकडें, 2019 से हो सकती है शुरुआत

नई दिल्ली: भारत में काला धन एक बहुत बड़ी समस्या है। कई धनी लोग और राजनेता टैक्स की चोरी करके काला धन इकठ्ठा करके विदेशों के बैंक अकाउंट में जमा कर देते हैं। जिस पैसे पर टैक्स नहीं दिया जाता है, उसे काला धन कहा जाता है। काले धन की समस्या इस कदर बढ़ गयी थी कि पीएम मोदी को इसके समाधान के लिए नोटबंदी जैसा बड़ा फैसला लेना पड़ा।

हालांकि उससे भी काले धन पर कोई असर नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि काला धन रखने वाले इतने जयादा चालाक थे कि उन्होंने पहले से ही कई बैंक कर्मचारियों से अपना जुगाड़ कर लिया था और अपना काला धन उनकी मादा से सफ़ेद करवा लिया। इस वजह से देश में काफी समस्या झेलनी पड़ रही है। कई लाख करोड़ का कला धन विदेशों में जमा होने की बात की जाती है।

पीएम मोदी को कोशिश दिख रही है रंग लाती हुई:

ऐसा भी माना जाता है कि अगर ये धन भारत के पास होते तो भारत का विकास कहीं ज्यादा हुआ होता। काले धन रखने वालों पर लगाम लगने के लिए मोदी सरकार अपने तरफ से भरपूर कोशिश कर रही है। पीएम मोदी को कोशिश रंग लाती हुई दिखाई दे रही है। जी हाँ अब माना जा रहा है कि काले धन के मामले में अब तक की सबसे बड़ी सफलता मिली है।

सूचनाओं के आदान-प्रदान की व्यवस्था के तहत मिलेगा आँकड़ा:

स्विटजरलैंड की राष्ट्रपति डोरिस ल्यूथार्ड ने हाल ही में कहा है कि भारत को सूचनाओं के स्वतः आदान-प्रदान की व्यवस्था के तहत स्विटजरलैंड के पहले बैच के कर आंकड़े 2019 से मिलने की उम्मीद है। ल्यूथार्ड ने पीएम मोदी से व्यापक मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के बाद कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह व्यवस्था इस साल के अंत तक स्विट्जरलैंड की सांसद द्वारा अनुमोदित कर दी जाये।

आपको बता दें कि राष्ट्रपति ल्यूथार्ड ने काले धन की समस्या से निपटने के लिए भारत का पूरा सहयोग करने की अपनी सरकार की इच्छा के बारे में भी बताया है। भारत में आज से नहीं बल्कि लम्बे समय से काले धन की समस्या को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है। स्विटजरलैंड को भारतियों का काला धन रखने का पनाहगाह माना जाता है। पिछले साल भारत और स्विटजरलैंड ने स्वतः सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए संयुक्त घोषणा पर दस्तखत लिए थे।

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