अध्यात्म

जीवन में हैं धन-दौलत की कमी से परेशान तो करें शनि देव के इन मन्त्रों का जाप,जल्द ही भर जाएगी तिजोरी

कल शनिवार है। शनिवार का दिन शनि देव का दिन होता है। इस दिन शनिदेव को विभिन्न तरीको से प्रसन्न किया जा सकता है। शनिदेव के बारे में लोगों को काफी गलतफहमियां हैं। इस वजह से कई लोग शनिदेव से डरते हैं। शनिदेव लोगों को उनके कर्मों के आधार पर फल देते हैं। तो आपको डरने की जरुरत नहीं है। अगर आप अच्छे कर्म करेंगे तो आपको अच्छा फल मिलेगा और बुरा कर्म करेंगे तो बुरा फल मिलेगा।

धन सम्बन्धी परेशानियों को भी दूर करते हैं शनिदेव:

 

शनिदेव आपके जीवन की कई परेशानियों के साथ-साथ आपके जीवन की धन सम्बन्धी परेशानियों को भी दूर कर देते हैं। बस मन से शनिदेव की आराधना करने की जरुरत है। अगर व्यक्ति शनिदेव को प्रसन्न करना चाहता है तो उसे शनिदेव के कुछ मन्त्रों का जाप करना चाहिए। इससे शनिदेव को बहुत जल्दी प्रसन्न किया जा सकता है और मनचाहा वरदान पाया जा सकता है।

कुंडली की साढ़ेसाती और ढैय्या से भी मिलेगी मुक्ति:

अगर आप जीवन में बार-बार किसी दुर्घटना का शिकार होने से बच रहे हैं। धन आने के बाद भी घर की तिजोरी खाली पड़ी हुई है या कोई काम बनते-बनते बिगड़ जा रहा है। तो इसके लिए आप निचे दिए गए शानि मंत्रों का जाप करें। ये मन्त्र आपको जीवन की सभी परेशानियों से मुक्ति दिला देंगे। इसके साथ ही अगर आपकी कुंडली में शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रहा हो तो इन शनि मन्त्रों में से कोई भी एक मन्त्र का प्रतिदन 108 बार जाप करें।

वैदिक मंत्र:

ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयो‍रभि स्रवन्तु न:।।

पौराणिक मंत्र:

नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामी शनैश्चरम्।।

बीज मंत्र:

ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:

सामान्य मंत्र:

ॐ शं शनैश्चराय नम:

इसके अलावा जब आप शनिवार के दिन शनिदेव की प्रतिमा पर सरसों का तेल अर्पित करें तो इन मन्त्रों का जाप करते हुए करें, इससे शनिदेव काफी प्रसन्न होते हैं।

ॐ नीलांजन नीभाय नम:
ॐ नीलच्छत्राय नम:

ज्योतिषियों का मानना है कि शनिदेव के इन मन्त्रों का जप करने से व्यक्ति की सभी समस्याओं का अंत हो जाता है। शनिवार के दिन घर पर तेल से बने पकवान शनिदेव को अर्पित करें। शनिदेव को अर्पित करने के बाद उसे प्रसाद के रूप में गरीबों में बाँट दें उसके बाद घर के सभी सदस्यों को भी खाने के लिए दें। अंत में प्रसाद स्वयं भी ग्रहण करें।

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