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एयर इंडिया वापस कर रहा जेआरडी टाटा का ‘सबसे प्यारा बच्चा’। पढ़िए यह भावनात्मक कहानी…

जानें एयर इंडिया का इतिहास, 1953 में नेहरू ने इसे छीन लिया था टाटा समूह से

टाटा सन्स की वर्षों की आस एक बार फ़िर पूरी होती दिख रही है। जी हां 68 साल बाद ही सही उसका ‘प्यारा बच्चा’ एक बार अपने घर लौटने वाला है। बता दें कि भारत सरकार ने अब एयर इंडिया के विनिवेश की पुष्टि कर दी है। पिछले 15 सितंबर को लगाई गई अंतिम बोली के आधार पर टाटा सन्स को ही इसका स्वामित्व मिल गया है। बहरहाल, टाटा ग्रुप के लिए यह सौदा कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा एक कहानी से लगाई जा सकती है कि जिसने कभी एयर इंडिया के संस्थापक माने जाने वाले उद्योगपति जेआरडी टाटा को बहुत गहरी भावनात्मक चोट पहुंचाई थी।

यह है एयर इंडिया का इतिहास…

बता दें कि उद्योगपति जेआरडी टाटा ने 1932 में टाटा एयर सर्विसेज के नाम से एक एविएशन कंपनी की शुरुआत की थी, जो बाद में एयर इंडिया बनी। एक साल बाद ही टाटा एयर सर्विसेज कॉमर्शियल टाटा एयरलाइंस में तब्दील हो गई। वहीं मालूम हो कि जेआरडी टाटा सिर्फ उद्यमी नहीं थे और इस मिशन में उन्होंने सिर्फ एक उद्योगपति होने के नाते निवेश नहीं किया था, बल्कि इस कंपनी में उनकी आत्मा बसती थी और इसे खड़ा करने में उन्होंने अपने खून-पसीने के साथ-साथ अपनी प्रतिभा भी लगाई थी। गौरतलब हो कि जेआरडी टाटा देश के ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिनके नाम 1929 में पायलट का लाइसेंस जारी हुआ था। उस वक्त वे महज 25 साल के युवा थे।

ऐसे हुई थी एयर इंडिया की शुरुआत…

JRD Tata

वहीं बता दें कि टाटा ग्रुप के चेयरमैन जेआरडी टाटा पायलट का लाइसेंस प्राप्त करने के तुरंत बाद एक एयरक्राफ्ट के मालिक बने। वे पहले भारतीय पायलट थे, जो 1930 में भारत से इंग्लैंड तक एक विमान उड़ा कर ले गए और वो भी ऐसा विमान, जिसमें आज की तरह के कोई भी अत्याधुनिक उपकरण नहीं थे। टाटा एविएशन सर्विस के तहत ही उन्होंने कराची और बॉम्बे के बीच पहली कार्गो एयरसेवा की भी शुरुआत की। वह शुरू से भारत को अंतरराष्ट्रीय विमानन के मानचित्र पर लाने की कोशिश में जुट गए थे और 8 मार्च, 1948 को एयर इंडिया इंटरनेशनल के गठन के साथ उनका सपना पूरा हुआ। उसी साल 8 जून को बॉम्बे-लंदन के बीच इस सेवा की भी शुरुआत हुई।

जेआरडी की सोच में कभी आड़े नहीं आया मुनाफा…

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बता दें कि जेआरडी टाटा देश के बहुत बड़े उद्योगपति थे, लेकिन उन्होंने कारोबार के ऊपर हमेशा मानवीयता को अहमियत दी। एयरलाइंस के प्रबंधन से जुड़ा उनका पूरा जीवन, मानवता, सेवा में पूर्णता और बारीक से बारीक चीजों पर ध्यान देने को लेकर समर्पित रहा। बड़े ताज्जुब की बात है कि एविएशन के क्षेत्र में करीब सात दशक पहले उनका जो विजन था, आज इस बिजनेस में कामयाब होने के लिए विभिन्न एयरलाइंस कंपनियों को काफी हद तक उसी दृष्टिकोण को अपनाना पड़ रहा है।

उनके साथ काम कर चुके लोग बताते हैं कि वह दो चीजों पर बहुत ज्यादा फोकस करते थे। पहला, हवाई यात्रा तभी सस्ती होगी, जब इसका बाजार विस्तृत होगा। वहीं एयर इंडिया हवाई यात्रा में तभी प्रभावी रूप से टिक पाएगी जब वह यात्रियों को कुछ अनोखा पेश कर सके। जेआरडी की सोच में मुनाफा कभी हावी नहीं रहा।

ऐसे एयर इंडिया के मालिक से संचालक बन गए थे जेआरडी टाटा…

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बता दें कि पांच साल भी नहीं हुआ था कि सोवियत संघ के असर में समाजवाद से प्रभावित तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने 1953 में एयर इंडिया का कंट्रोल जेआरडी टाटा के नियंत्रण वाली कंपनी से अपने हाथ में लेकर इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया। हालांकि, शुरू में जेआरडी बिना विश्वास में लिए गए इस फैसले से काफी आहत हुए। लेकिन, बाद में सरकार ने उन्हें एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का चेयरमैन बनकर उसके संचालन के लिए आमंत्रित किया। जिस कंपनी को उन्होंने अपने बच्चे की तरह पाल पोसकर बड़ा किया था, उसकी हिफाजत के लिए उन्होंने एयर इंडिया की चेयरमैनशिप स्वीकार कर ली और इंडियन एयरलाइंस के बोर्ड में डायरेक्टर रहना मंजूर किया। इसके पीछे उनकी सोच थी कि राष्ट्रीयकरण से एयर इंडिया इंटरनेशनल के स्टैंडर्ड पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े।

ऐसे वापस मिला जेआरडी टाटा का ‘सबसे प्यारा बच्चा’?…

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ग़ौरतलब हो कि फरवरी, 1978 में नई सरकार ने जेआरडी को एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के पुनर्गठित बोर्ड से भी हटा दिया। मोरारजी देसाई की सरकार के इस फैसले ने उन्हें भावनात्मक तौर पर बहुत ही ज्यादा आहत किया। इसके बारे में उन्होंने अपने एक सहयोगी से कहा था कि, “मैं उस पिता की तरह महसूस करता हूं जिसका पसंदीदा बच्चा उससे छीन लिया गया हो।” अप्रैल 1980 में वह दिन वापस आया जब इंदिरा गांधी की सरकार ने उनके ‘प्यारे बच्चे’ को फिर से उनके ही संरक्षण में सौंप दिया। उन्हें दोनों बोर्ड में शामिल किया गया, जिसमें वे 1982 तक बने रहे।

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