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केजरीवाल देश की आवाज़ नहीं हैं ? जानिए विदेश मंत्री जय शंकर ने क्यों कहा

बीते दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा है कि, “सिंगापुर में आया कोरोना का नया रूप बच्चों के लिए बेहद ख़तरनाक बताया जा रहा है। भारत में ये तीसरी लहर के रूप में आ सकता है। केंद्र सरकार से मेरी अपील है कि सिंगापुर के साथ हवाई सेवाएं तत्काल प्रभाव से रद्द हों और बच्चों के लिए भी वैक्सीन के विकल्पों पर प्राथमिकता के आधार पर काम हो।” बता दें कि तभी से नेताजी लपेटे में आ गए हैं। हर तरफ़ से केजरीवाल की खिंचाई हो रही है।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने तो ट्वीट करते हुए लिखा, “केजरीवाल जी! मार्च 2020 से ही अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें बंद हैं। सिंगापुर के साथ एयर बबल भी नहीं है। बस कुछ वन्दे भारत उड़ानों से हम वहाँ फँसे भारतीय लोगों को वापस लाते हैं। ये हमारे अपने ही लोग हैं। फिर भी स्थिति पर हमारी नज़र है। सभी सावधानियाँ बरती जा रही हैं।” वैसे केजरीवाल द्वारा बिना तथ्यों को जांचे-समझें ट्वीट करने के बाद कई सवाल खड़े होते हैं। क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री सिर्फ़ लफ़्फ़ाज़ी करते हैं? तथ्यात्मक तो उनकी इस बात में है नहीं, फ़िर क्या हर मुद्दे पर उनका यहीं रवैया रहता है? चलिए छोड़िए वैसे केजरीवाल सिंगापुर से फ्लाइट बंद कराने वाले ट्वीट पर चौतरफा घिर गए हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तो कोविड महामारी के बीच अरविंद केजरीवाल को यहां तक कह दिया है कि वह द्विपक्षीय सम्बन्धों पर किसी भी तरीक़े का बयान देने से बाज़ आएं, क्योंकि वह कोई भारत की आवाज़ नहीं, बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं।

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मालूम हो कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि वे देश की आवाज नहीं हैं। इसी बीच विदेश मंत्री ने कोविड-19 में सिंगापुर की ओर से भारत को दिए गए सहयोग व दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की सराहना की। केजरीवाल के ट्वीट पर सिंगापुर सरकार ने इसको लेकर कड़ी आपत्ति पहले ही दर्ज करा चुकी है। गौरतलब हो इस बाबत सिंगापुर की सरकार ने भारतीय उच्चायुक्त को तलब भी किया था।

केजरीवाल के ट्वीट के जवाब में सिंगापुर दूतावास ने एक ट्वीट में कहा, “इस दावे में कोई सच्चाई नहीं है कि सिंगापुर में नया कोविड स्ट्रेन है।” विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट करते हुए लिखा कि, “सिंगापुर वैरिएंट” वाले केजरीवाल के ट्वीट पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए सिंगापुर सरकार ने आज हमारे उच्चायुक्त को तलब किया था। उच्चायुक्त ने यह स्पष्ट किया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के पास कोरोना मामले या सिविल एविएशन पॉलिसी पर कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं है।”


वही विदेश मंत्री ने बुधवार को बताया कि, “कोविड-19 के खिलाफ जंग में भारत और सिंगापुर एक दूसरे के मजबूत सहयोगी और साझेदार हैं। हालांकि इस बीच कुछ गैरजिम्मेवार लोगों के बयान होते हैं जिन्हें यह समझना चाहिए कि हमारी लंबी साझीदारी को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए यह स्पष्ट कर दूं की दिल्ली के मुख्यमंत्री भारत की आवाज नहीं हैं।” इतना ही नहीं विदेश मंत्री ने कहा, “हम सिंगापुर की ओर से भारत भेजे गए ऑक्सीजन के लिए आभार व्यक्त करते हैं। महामारी के कारण देश में पैदा हुए संकट के बीच हमारी मदद करने के लिए सिंगापुर ने सैन्य विमान तैनात किए। जो दोनों देशों के बीच असाधारण संबंधों की ओर इशारा करता है।” हालांकि लोगों को पता होना चाहिए कि उनकी गैर-जिम्मेदार टिप्पणियां लंबे समय से चली आ रही साझेदारी को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए मैं स्पष्ट कर दूं दिल्ली के मुख्यमंत्री को इस पर बोलने का अधिकार नहीं है।”

यहां एक बात तो स्पष्ट है, कोई राज्य का मुख्यमंत्री कैसे विदेशी मामलों में हस्तक्षेप कर सकता। वह भी बग़ैर केंद्र सरकार की सहमति पर। केजरीवाल अभी तक देश में मोदी सरकार को बदनाम करने में लगें थे। वह कम था क्या जो अब विदेशी सम्बन्धों में भी दरार डालने की दिशा में बढ़ रहें। केजरीवाल को समझना चाहिए कि वे एक पढ़ें-लिखें अधिकारी रह चुके हैं। ऐसे में वह अपने दायरे को कैसे भूल सकते और दूसरी बात कोई बात कही भी जाएं तो तथ्यात्मक के साथ न कि कोरी लफ़्फ़ाज़ी। इससे केजरीवाल सरकार की ही किरकिरी होनी है। केंद्र सरकार और देश फ़िर बाद में आएगा।

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