सच को दबाता सेक्युलर मीडिया, कांग्रेस का घोषणापत्र देश की एकता, अखंडता और संविधान के लिए खतरा
किसी भी देश की मीडिया की ये जिम्मेदारी होती है की वो हर खबर के दोनों पक्षों को लोगों के सामने रखें। ना की केवल वो ही पक्ष बार बार दिखाए जिससे उनको और उनकी चहेती पार्टी को फायदा हो। हमारे देश में अगर किसी हिंदू के साथ कुछ गलत होता है तो तमाम मीडिया हाउस को ये बात आम लगती है और उनको ये खबर मजदार नहीं लगती है। लेकिन अगर किसी मुस्लिम के साथ कुछ गलत हो जाए तो इस मुद्दे को चैनलों में खूब उछाला जाता है और पार्टियों से खूब सवाल किए जाते हैं। वहीं पार्टी के तमाम बड़े नेता घटना स्थल पर जाकर लोगों से बात कर देश का माहौल खबर होने के बयान दे देते हैं। कुछ मीडिया हाउस और पार्टियों की वजह से ही हमारे देश में हर चुनाव के दौरान धर्म का मुद्दा सबसे अधिक उठाया जाता है।
हमारे देश के कई सारे मीडिया हाउस केवल अपनी पसंद की पार्टी के पक्ष में ही खबरों को दिखाना पसंद करती है। कांग्रेस पार्टी से कई सारे मीडिया हाउस को बेहद ही प्यार है और शायद यही वजह है कि इन मीडिया हाउस ने लोगों को खुलकर ये खबर नहीं दिखाई कि आखिर साल 2019 के घोषणापत्र में कांग्रेस पार्टी की और से क्या क्या वादे देश की जनता से किए गए हैं। कांग्रेस पार्टी की और से जारी हुए घोषणापत्र की कुछ ही बातों को मीडिया ने लोगों के सामने रखा है। इस पार्टी की और से किए गए जिहादियों और नक्सलियों के समर्थन के वादों को मीडिया हाउस ने दिखाना जरूरी नहीं समझा।
जिस तरह से कांग्रेस पार्टी ने खुलकर अपने घोषणापत्र में जिहादियों और नक्सलियों के समर्थन में वादे किए हैं। ये वादे आगे जाकर हमारे देश की एकता पर कितना बुरा असर डाल सकते हैं, ये शायद ही ज्यादा लोगों को पता होगा। दरअसल कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में साफ तौर से लिखा है कि अगर लोगों द्वारा उनको वोट दिए जाते हैं और कांग्रेस देश की सत्ता में आती है, तो वो जम्मू कश्मीर पर लगे सशस्त्र सेना विशेष सुरक्षा कानून (आफस्पा ) पर विचार करेगी और देशद्रोह को अपराध की श्रेणी से हटाने को लेकर कानून में बदलाव करेगी। अगर कांग्रेस की और से देशद्रोह को अपराध की श्रेणी से हटा दिया जाता है तो इससे जिहादियों और नक्सलियों को काफी फायदा मिलेगा और ऐसा होने पर देश की सुरक्षा पर बुरा असर पड़ेगा। इस के साथ ही जम्मू कश्मीर में सेना काम करने की बात कही गयी है, जिस से अलगाववादियों की हौसला अफ़ज़ाई हो रही है
लेकिन कांग्रेस की और से किए गए इस वादे को केवल कुछ ही चैनलों ने दिखाया और कई जाने माने चैनल जो कि अपने आपको निष्पक्ष बताते हैं उन्होंने कांग्रेस की और से किए गए इन वादों को दिखाना जरूर नहीं समझा। इन चैनलों ने लोगों को मात्र ये बता दिया कि अगर कांग्रेस आती है तो किसानों को हर साल 72 हजार रुपए दिए जाएंगे और हर साल अलग से “किसान बजट” पेश किया जाएगा। केवल एक-दो चैनलों और अखबारों को छोड़ दें तो अधिकतर मीडिया हाउस ने जिहादियों और नक्सलियों से जुड़े कांग्रेस के वादों को छुपाने में ही भलाई समझी।
जब मोदी ने हाल ही मे एक चुनावी रैली कर ‘हिंदू आतंकवाद’ के मुद्दे पर कहा तो इन मीडिया हाउस को लगा की मोदी वोट के लिए ‘हिंदू कार्ड’ चला रहे हैं और इन्होंने इस खबर को बीजेपी के ‘हिंदू कार्ड’ के तौर पेश किया और लोगों को ये बताने की कोशिश की कि किस तरह से बीजेपी ‘हिंदू कार्ड’ के जरिए हिंदू वोटरों को अपने पक्ष में कर रही है। एक बड़े मीडिया हाउस ने ने बड़े भोलेपन से पूछना शुरू किया “क्या हिंदू आतंकवाद का जिक्र करके जीतेंगे चुनाव”? वहीं राहुल गांधी के वायनाड लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की खबर को मीडिया हाउस ने कांग्रेस पार्टी की ‘मास्टरस्ट्रोक’ बताया। लेकिन किसी भी मीडिया हाउस ने ये नहीं बताया वायनाड लोकसभा सीट पर 50 प्रतिशत से कम हिंदूओं की आबादी है। राहुल की इस खबर में मीडिया को हिंदूओं का जिक्र करना सही नहीं लगा।
दादरी के बिसाहेड़ा गांव में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की और से जब रैली की गई तो कई अखबारों ने इस गांव को ‘अखलाक का गांव’ कहकर लोगों के सामने पेश किया। अखलाक का नाम लेकर ये अखबार क्या साबित करना चाहते थे और लोगों को क्या याद दिलाना चाहते थे ये साफ तौर से जाहिर हो रहा है। हैरान करने वाली बात तो ये है कि हमारे देश का अगर कोई जवान शहीद होता है और वहां पर कोई नेता जाता है तो ये मीडिया वाले उस शहीद का नाम लेकर उसके गांव को संबोधित नहीं करते हैं।
जब भी बीजेपी पार्टी के राज्य में कोई घटना होती है तो उसको खूब दिखाया जाता है लेकिन कांग्रेस शासित राज्य में हुई किसी घटना को दिखाना ज्यादा जरूरी नहीं समझा जाता है। कुछ साल पहले जब पंजाब राज्य में बीजेपी की सरकार थी तो कई सारे मीडिया हाउस ने इस राज्य में बढ़ रहे ड्रग्स माफिया के बारे में खूब खबरें दिखाई थी। जिसके बाद इस राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी पार्टी हार गई थी। वहीं कुछ महीने पहले ही इस राज्य में नशीली दवाओं के खिलाफ काम कर रही एक सरकारी अधिकारी नेहा शौरी की उसके दफ्तर में घुसकर हत्या कर दी गई थी। लेकिन इस खबरों को किसी अखबार या चैनल ने दिखाना जरूरी नहीं समझा। पंजाब में बढ़ रहे ड्रग्स माफिया का मुद्दा जो कुछ सालों पहले मीडिया ने खूब दिखाया गया था अब वो मुद्दा मीडिया के लिए ज्यादा बड़ा नहीं रहा।