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इस घर में रहते हैं ६ लोग, जिनसे कोई नहीं करना चाहता बात, अपने ही घर में कैद हो कर रह गया है बचपन

धमतरी: जैसा कि हम सभी जानते ही हैं कि भारत के हर गाँव में पंचायत ही न्यायलय मानी जाती है. ऐसे में यदि कोई गाँव का व्यक्ति गलती करता है तो उसे पंचायत बिठा कर पांच पंचों की मौजूदगी में उसके जुर्म के अनुसार सजा दी जाती है जिसे पूरा गाँव चुप चाप मान लेता है. लेकिन आज हम आपको जिस घटना के बारे में बताने जा रहे हैं, वह ऐसे परिवार की कहानी है, जिसे पंचायत का फैसला महंगा पड़ रहा है. य पूरा मामला आबादी जगह घेरने का है. यहाँ जोरातराई में रहने वाले एक गरीब परिवार की पौनी पसारी बंद कर दी गई. जहाँ शहरों में पुलिस और कानून के नियमों की पालना की जाती है, ठीक उसी तरह से इस गाँव के लोग पंचों की बात को ही कानून मानते हैं और उनका हर हुकुम पिछले कईं सालों से मानते चले आ रहे हैं.

आठ महीने से कोई नहीं करता बात 

लेकिन बात अगर इस गरीब परिवार की करें तो छह लोगों का यह परिवार आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है. पिछले आठ महीनों से इस परिवार से ना तो कोई गाँव वाला बात करता है और ना ही कोई दुकानदार इन्हें सामान देना चाहता है. इसलिए भूख और गरीबी से बिलख रहा परिवार का देवलाल महार चौथी बार कलेक्टर ऑफिस का दरवाज़ा खटखटा रहा है ताकि इस बार उसे और उसे परिवार को न्याय मिल सके और वह सभी लोगों की तरह गाँव में अपनी रोज़ी रोटी चला सकें.

ये था पूरा मामला 

आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि यह पूरा मामला कुरूद विधानसभा कषत्र के ग्राम जोरातराई(सिलौटी) का है. जहाँ देवलाल म्हार नामक व्यक्ति की गाँव में पौनी पसरी बंद क्र दी गई. इस मामले की शिकायत लेकर हाल ही में देवलाल अपने परिवार के साथ एक बार फिर से कलेक्टर ऑफिस पहुंचा. देवलाल ने बताया कि साल 2006-07 में गाँव की पंचायत द्वारा उसे आबादी ज़मीन दी गई थी. लेकिन अब वर्तमान समय में जो पंचायत के प्रमुख हैं, वह उन्हें अतिक्रमण का नाम ले कर प्रताड़ित कर रहे हैं और गाँव वालों को आदेश दे चुके हैं कि कोई भी उनसे या उनके परिवार से बात नहीं कर सकता साथ ही उनकी पौनी पसारी पर भी रोक लगा दी गई है.

घर में कैद हो कर रह गए हैं मासूम 

गौरतलब है कि देवलाल महार का परिवार पिछले आठ महीने से पंचायत प्रतिनिधि की प्रताड़ना सहता आ रहा है. इसलिए उसके बच्चों से भी गाँव का कोई बच्चा या व्यक्ति बात नहीं करना चाहता. जब भी उसके बच्चे स्कूल से घर वापिस आते हैं तो वह घर में बंद हो कर रह जाते हैं. ऐसे में जहाँ एक तरफ बाकी गाँव वालों के बच्चे खेल-कूद करते हैं, वहीँ दूसरी और देवलाल महार के बच्चों का बचपन घर में ही कैद हो कर रह गया है. देवलाल के अनुसार यदि इस बार भी कलेक्टर ऑफिस से उन्हें न्याय नहीं मिलता तो मजबूरन उन्हें मानव अधिकार न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाना पड़ेगा. वहीँ दूसरी और कलेक्टर साहिब ने उनकी पूरी बात सुनने के बाद उचित से उचित करवाई करने का आश्वासन दिया है.

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