अध्यात्म

एक रात के लिए विवाह करते हैं किन्नर, महाभारत से जुड़ा है इस बात का सच

किन्नरों के बारे हम सभी जानते हैं।यह लोग ना पूरी तरह से पुरुष होते हैं औऱ ना ही पूरी तरह से औरत। इनका रहन सहन और काम करने का तरीका भी एकदम अलग होता है। चुंकि इनका कोई एक लिंह नहीं होता है तो इसलिए यह लोग कुंवारे रहते हैं। हालांकि बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि किन्नर भी विवाह करते हैं, लेकिन इनका विवाह सिर्फ एक दिन का होता है। आपको बताते हैं किन्नर आखिर किससे करते हैं विवाह और क्या है इसके पीछे कारण।

इरावन ने दी थी बलि

दरअसल किन्नरों के विवाह की कहानी शुरु हुई थी महाभारत से। जब महाभारत के युद्ध की घोषण हुई तो पांडवों ने मां काली की पूजा की। इस पूजा में किसी राजकुमार की बली देनी थी। कोई भी व्यक्ति बली देने को तैयार नहीं हो रहा था। इसके बाद अर्जुन और उलूपी का पुत्र इरावन बलि के लिए सामने आया। उसने बलि देने से पहले शर्त रख दी की वह बिना शादी किए अपने प्राण नहीं त्यागेगा। अब पांडवों के लिए एक और बड़ी समस्या खड़ी हो गई। सिर्फ विधवा बनने के ले कोई राजकुमारी इरावन से विवाह क्यों करेगी।इसके बाद श्रीकृष्ण ने इसका हल खोजा और खुद को एक स्त्री रुप में बनाया और इरावन से विवाह किया। शादी के अगले ही दिन इरावन की बलि दी गई जिसके बाद श्रीकृष्ण के स्त्री रुप ने विधवा विलाप किया। उसके बाद से पांडवों को युद्ध में जीत हासिल हुई। इसके बाद से लेकर आज तक इरावन को किन्नर अपना देवता मानने लगें और उनके त्याग के लिए वह अपने देवता से ही एक दिन का विवाह रचाते हैं।

साउथ में होता है किन्नर विवाह

तमिलनाडु के कुवगामा में आपको किन्नरों का विवाह देखने को मिल जाएगा। यहां हर वर्ष नए वर्ष के दिन पूर्णिमा से किन्नरों का एक अवसर शुरु होता है जो 18 दिन तक मनाया जाता है। इसमें 17वें दिन किन्नर इरावन देवसे से विवाह करते हैं। इस दिन वह एक सुहागन की तरह सोलह श्रंगार करते हैं और फिर  पुरोहित उनको मंगलसुत्र पहनाते हैं। जैसे इरावन की अगले दिन मृत्यु हो गई थी वैसे ही अपने पति को मरा मानकर सभी किन्नर विधवा विलाप करते है और इरावन की मूर्ति को शहर में घूमाने के बाद तोड़ दिया जाता है। इसके बाद किन्नर भी अपना साज –श्रंगार छोड़ देते हैं।किन्नरों की पहचान महाभारत औऱ रामायण काल से की जाती रही है। भीष्म पितामह क युद्ध में परास्त करना असंभव था औऱ उनकी मृत्यु केवल शिंखडी ही कर सकता था। शिखंडी पूर्व जन्म में अंबा था जिसे भीष्म पितामह अपने भाई के लिए हरण कर लाए थे बाद में उसके मन में किसी और के लिए प्रेम है यह जानकर उसे छोड़ दिया था। अंबा को किसी का साथ ना मिला तो उसने भीष्म पितामह से विवाह की इच्छा जताई। पितामह ने मना कर दिया तो उसने बदला लेने का फैसला लिया औऱ भगवान शिव का ध्यान किया। उसने शिव से भीष्म पितामह की मृत्यु का वरदान मांगा।

महाभारत काल से थे किन्नर

शिव ने उसे वरदान देते हुए कहा कि अगले जन्म में तुम स्त्री रुप में ही जनम लोगी, लेकिन युवा होते हुए तुम्हारा शरीर पुरुष का हो जाएंगा और फिर तुम भीष्म पितामह को मार पाओगी। इस तरह उसने शिखंडी रुप मेम जन्म लिया जो की एक स्त्री ता लेकिन युवक होने पर पुरुष हो गया। एक तरह से शिखंडी एक किन्नर था। भीष्म पितामह उसका सच जानते थे और स्त्री होने के नाते उसका वध नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने बाण नहीं चलाए और तीर की शैय्या पर लेट गए।

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