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शरीर से लाचार होने के बावजूद इस शख्स ने छूआ शिखर, पेश की अद्भुत मिशाल

कहा जाता है कि इरादे बुलंद हो तो आसमान भी अपनी ऊंचाई कम कर लेता है। जिंदगी बिना संघर्ष के मृत्यु के समान है लोग मुसीबतों को देखकर जब पीछे मुड़ने की सोच लेते हैं उनकी होने वाली जीत हार में बदल जाती है पर जो हौसले कायम कर मुसीबतों का सामना करता है दुनिया उसे ही याद रखती है और सबसे अहम बात उसे जिंदगी का वो असली मज़ा मिल जाता है जिसके लिए दुनिया तरस रही है। Singh govind dharawat Life story. आज भी एक ऐसी ही जीवंत कहानी सामने आ रही है जब अपने शरीर से लाचार एक शख्स ने हार नही माना और सबके सामने इतिहास रच दिया। अगर आप भी एक रुख इसके जिंदगी और संघर्ष की कहानी की ओर मोड़ दें तो जिंदगी का असली मज़ा चख लेंगे।

गोविंद एक ऐसा शख्स जिसके पास दाहिना हाथ नही है और बदकिस्मती से बायां हाथ भी हमारे जैसा नही होकर अविकसित है। बचपन से इस जहमत को उठाते हुए उसने जिंदगी के 25 साल गुजर दिए लेकिन उसकी चमकती आंखे, बुलंद हौसले, अपने मंजिल को पाने का जज्बा किसी को भी स्तब्ध कर सकता है। ये सिर्फ एक युवा का परिचय नही बल्कि शुरुआत है। हाल ही में उसके आये बयान को पढ़कर आपके भीतर भी ऊर्जा का प्रसार होने लगेगा।

गोविंद ने नम आंखों में कहा – “विकार मेरे हाथों में है लेकिन मेरे लक्ष्य में कोई कमी नही है। अपमान, दर्द और पीड़ा को सहने की आदत डालकर आज इस साईकल यात्रा भी मेरे अंदर की क्षमता को प्रदर्शित करता है।”

पूरी दुनिया की नजरों को अपनी ओर खींच रहे ये इन जवानों की 17 दिन की यात्रा पूरी हो चुकी है। इन 17 दिनों में 1700 किमी की दूरी साईकल से तय करने वाले हाथों से मजबूर जिन्दादिलो के चेहरे पर जरा भी थकान की भावना नही दिख रही। आंखे कह रही है अभी और चलना, अभी और बढ़ना है सफर खत्म नही हुआ हमारा तुम देखते-देखते थक जाओ हमे नही थकना है, चलते रहना है। गोविंद ने अपनी संघर्ष की कहानी सबके सामने शेयर की है, जिसे पढ़कर आपके आंसू भी आएंगे और प्रेरणा मिलेगी। पढिये गोविंद की आप-बीती उन्हीं के शब्दों में –

जब मैं छोटा था पढ़ने-लिखने का सपना लेकर सरकारी स्कूल पहुंचा तो दाखिला देने से इनकार कर दिया क्योंकि उनके अनुसार मै पढ़-लिख नही सकता था अपाहिज करार कर दिया गया। मुश्किल से एक प्राइवेट स्कूल में एडमिशन हुआ और मै सिर्फ उन्हें आदर्श मानने लगा जो मुझे पसंद करते थे। उस दौर में मैंने पढ़ना लिखना और जिंदगी से लड़ना भी सिखाया लिया। मै बी ए, एम ए सब कर चुका हूं वो भी अपने इन अपाहिज हाथो से। आज मैंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी यात्रा 1700 किमी की दूरी साईकल चलकर तय कर लिया।

चमकते मुस्कान के साथ खड़े इस युवक का जन्म उदयपुर, राजस्थान में हुआ था। पिता नारायण लाल और माता काशी के सुपुत्र गोविंद का पूरा नाम गोविंद धरावत है। वह बचपन से ही अपंग था – एक हाथ पूर्ण से गायब था और दूसरा हाथ बढ़ नही रहा था। जब वह कुछ बड़ा हुआ स्कूल ने एडमिशन देने से इन्कार कर दिया। बताते चलें कि अपनी इस हालत से वह इतना अधिक निराश हुआ कि कई बार आत्महत्या करने की कोशिश भी की। लेकिन अंत मे उसे इस बात का आभास हुआ कि मौत ही हर मुश्किलो का हल नही है ये तो कायरता हुई हम हमारी जिंदगी के प्रयोजन से भटक रहे हैं। इसके बाद उसने आत्महत्या का ख्याल दिल से निकाल दिया और एक निजी स्कूल में शिक्षा प्राप्त किया। इन सब में उसके परिवार वालो ने कभी साथ नही छोड़ा और ना ही उसे ऐसा एहसास दिलाया कि वो मजबूर हैं।

करीबन 15 साल तक निजी स्कूल में पढ़ाई करने के बाद आंदोलन से जुड़ा।यह आंदोलन किसी राजनीति या बदलाव को लेकर नही था बल्कि यह गैरसरकारी संस्था है जहां कंप्यूटर शिक्षा और डिप्लोमा से जुड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। 28 वर्षो से कार्यरत इस संस्था से युवाओं को कौशल प्रदान किया जाता है और यह जिंदगी जीना सिखाती है। जीने के वजह बताने के साथ-साथ यहां कई प्रकार के एक्टिविटी भी करवाये जाते थे जैसे डांस, स्टोरी इत्यादि। अब इस माहौल में गोविंद ने भी जीना सीख लिया था।

गोविंद जो इस शब्द “आंदोलन-आंदोलन” के बीच बड़ा हुआ था। इसने भी दूसरों के हालत बदलने की ठानी और “बिंदास कम्युनिटी मीडिया अकादमी” को लांच किया है। यह अकादमी उन युवाओं के लिए  काम करती है जो हालातो के सामने हार मान चुके थे जैसे शुरुआत में गोविंद की हालत थी। गोविंद ने सिर्फ इतने पर ही अपना सफर खत्म नही किया बल्कि वह एक फ़िल्म निर्माता भी हैं, हाल ही में उन्होंने अपनी मातृभाषा मेवाड़ी में फ़िल्म का प्रोडक्शन भी शुरू कर चुके हैं। उनकी ये संस्थाएं जल संबंधी उपचार पर काम कर रही है साथ ही युवाओं को अपने प्रोडक्शन के साथ जोड़ती है ताकि उनके कौशल को सही राह मिल सके।

मुश्किलो से भरी जिंदगी में उन्होंने साईकल यात्रा शुरू की जिसमे शुरुआत के 9 दिनों में मुंबई की सीमा को लांघा। इस दौरान उदयपुर से लेकर 9 शहरों के रूट क्रॉस करते हुए मुंबई में कदम रखा और सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए कहा – मैन 9 दिनों की साईकल यात्रा पूरी कर ली, ट्रैफिक और भीड़ जैसे चुनौतियों का सामना करना मुश्किल था पर अब मैं मुम्बई के सरजमी पर हूँ। यहां से यात्रा का दूसरा चरण शुरू होगा जिसमें हम मुंबई से बंगलोर जाएंगे।

आज उसी शख्स ने साईकल से 1700 किमी की दूरी तय किया वो भी मात्र 17 दिनों में। गोविंद जो शरीर से तो अपाहिज था लेकिन कभी उसने अपने सपनो को अपाहिज नही होने दिया। वही साहस और ताकत के साथ इस मुश्किल भरी जिंदगी को जीत लेने वाला शख्स आज शरीर से सम्पन्न लोगों के लिए भी प्रेरणा बनकर खड़ा है।

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