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हिन्दू-मुसलमान की कहानीः हिंदू को दफनाया और मुस्लिम को जलाया गया! जानिए क्यों!

नई दिल्ली – किसी ने सच ही कहा है कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता। आतंकी हमले होते हैं ये आंतकवादी यह देखकर किसी कि जान नहीं लेते कि वो हिन्दु है या मुसलमान। आज हम आपको ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं जो दिल को दहला देने के लिए काफी है। ये दो ऐसे दो हिन्दू-मुसलमान परिवारों की कहानी है, जो देश कि राजधानी दिल्ली में 29 अक्टूबर 2005 को हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में इनके परिवार के एक-एक सदस्य कि मौत हो गई। Hindus buried and Muslims burned.

 लाशें बदल गई, क्योंकि पहचान मुश्किल थी –

दिल्ली में 29 अक्टूबर 2005 को हुए इन बम धमाकों में कुल 67 लोगों की जान गई थी। इनमें कुशलेन्द्र कुमार और मोहम्मद शमीम भी शामिल थे। 20 साल के ये दोनों युवा सरोजिनी नगर मार्केट में उस दिन हुए बम धमाकों में मारे गए। लाशें जल जाने के कारण इनके परिवार वाले भी इनकी पहचान न कर सके। जिसके कारण कुशलेन्द्र का शव मोहम्मद शमीम के परिवार वालों को और शमीम का शव कुशलेन्द्र के परिवार को सौंप दिया गया। शमीम के परिवार के सदस्यों ने कुशलेन्द्र कुमार को दफ़न कर दिया और कुशलेन्द्र के परिवार ने शमीम की चिता को आग लगा दी। यह एक ऐसा मामला था जिसके सामने आने के बाद बवाल मचना जायज था। आपको बता दें कि गुरुवार को दिल्ली की एक अदालत ने इस धमाकों के अभियुक्तों को सबूत न होने के कारण बरी कर दिया है।

डीएनए टेस्ट ने सामने ला दी एक अनोखी कहानी –

जब धमाके में मारे गए लोगों के डीएनए टेस्ट कराए गए तब अधिकारियों को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। व्यापारी संगठन के अध्यक्ष अशोक रंधावा उस दिन को याद करते हुए बताते हैं कि, “हमें एहसास हुआ कि यह एक अति संवेदनशील मामला है। इस घटना को 12-14 दिन गुज़र चुके थे। हमने दोनों परिवार वालों को बुलाया और इस ग़लती के बारे में बताया। हमने कहा, भाई अब भूल जाओ। जो हुआ सो हुआ। सब्र कर लो और दोनों परिवार मान गए।”

इस पूरी घटना को बीबीसी ने कवर किया और लोगों के सामने रखा। बीबीसी के मुताबिक कुशलेन्द्र की तरह सुरेंद्र भी सरोजिनी नगर मार्केट में बैग की एक दुकान पर सेल्समेन का काम कर रहे हैं और उनके पिता दरभंगा में एक ग़रीब किसान की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।

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