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छोटे बाल और लड़कों के कपड़े पहनकर वो काम करती हैं ये लड़कियां जिस पर सभी को गर्व है….

हमारे समाज में काम भी लिंग के आधार पर बंटा रहता है। भले ही लड़कों और लड़कियों के काम में बराबरी आ गई हो, फिर भी आज बहुत सारे काम में लड़कों औऱ लड़कियों में बंटवारा है। मसलन पार्लर जहां लड़कियां चलाती हैं वहीं पुरुषों के दाढ़ी बाल बनाने का काम पुरुष ही करते हैं, लेकिन आज हम आपको बताएंगे ऐसी दो लड़कियों के बारे में जो मर्दों के दाढ़ी और बाल बनाने का काम करती हैं। आपको बताते हैं उन लड़कियों के बारे में जिन्होंने पुरुष वर्ग का यह काम भी अपने हाथ में ले लिया।

लड़कियों ने अपनाया नाई का काम

यूपी का कुशीनगर जिला और पडरौना क्षेत्र के बनवारी टोला गांव में आपको एक नाई की दुकान मिलेगी जिसमें कोई पुरुष नहीं बल्कि दो लड़कियां आपको दाढ़ी बनाने का काम करती दिख जाएंगी। यह दुकान पहले उनके पिता ध्रुव नारायण की थी जो छोटी सी गुमटी में लोगों की दाढ़ी बाल बनाने का काम करते थे। उनकी छह बेटियां हैं औऱ चार का विवाह उन्होंने अपनी इस दुकान की मेहनत से कर दिया। सिर्फ दो बेटियां ही रह गईं जिनकी पढ़ाई और शादी बाकी थी। दुकान के भरोसे वह भी हो ही जाती, लेकिन कुदरत को यह भी मंजूर नहीं था।

उनकी दो बेटियों में ज्योति 13 साल की थी औऱ नेहा 11 साल की जब ध्रुव नारायण को अचानक लकवा मार किया। शरीर ने काम करना बंद कर दिया और दुकान ठप हो गई। उनकी दुकान से ही घर का खाना बनता था। अब दुकान बंद तो खाना मिलना भी मुश्किल हो गया। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि घर का खर्चा कैसे चलेगा । ऐसे में ज्योति ने हिम्मत दिखाई और अपने पिता की बंद पड़ी दुकान फिर खोली। पांच साल से लगातार वह उस दुकान में काम कर रही हैं और दुकान को सैलून का लुक दे दिया गा है, लेकिन यह सफर आसान नहीं था।

लड़कों की तरह रखा बाल और पहनें कपड़े

ज्योति ने बताया कि यह काम आसान नहीं था। उन्हें बहुत तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा कुछ और कर भी नहीं सकते थे। हिम्मत बढ़ी और हालात बदले। ज्योंति के साथ साथ नेहा ने भी लोगों के दाढ़ी बाल बनाने का काम शुरु कर दिया। इस काम से दोनों ने घर का खर्चा भी चलाया और पिता के इलाज का खर्च भी। ज्योति ने बताया कि इस मुकाम तो वह कैसे पहुंची।

ज्योति ने कहा कि हमारे समजा में यह काम हमेशा से पुरुषों का ही रह है। मेरे दादा परदादा और पिता ने भी यही काम किया है। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने यह जिम्मेदारी संभाली तो शुरुआत में बहुत परेशानी हुई। एक लड़की का लड़कों और आदमियों के दाढ़ी बाल बनाना किसी चुनौती से कम नहीं था। यहां तक के उन्हें अपने लुक को भी बदलना पड़ा। उन्होंने लड़कों की तरह  छोटे बाल रखे और लड़कों जैसे कपड़े पहनें औऱ लड़कों सा व्यवहार भी करने लगीं। ज्योंति ने अपना नाम भी बदल कर दीपक उर्फ राजू कर लिया। लोगों को फिर दुकान में आने में आसानी हो गई। लोग भी इस बात को स्वीकार कर ले और आज वह भी जानते हैं कि लड़कियां हैं जो उनकी दाढ़ी बाल बनाती हैं।

माता- पिता को है गर्व

ज्योति और नेहा हर दिन दुकान से 400 रुपए कमा लेती है। उनके पिता की हालत पहले से बेहतर हुई है तो वह भी दुकान आते हैं और दुकान के बाहर बैठते हैं। वह ब्यूटी पार्लर खोलना चाहती हैं जिससे उनके काम के साथ साथ उन्हें समाज में सम्मान मिल सके। वह नाई का काम करती हैं, लेकिन इसे वह सम्मानजनक नहीं मानती। उका कहना है कि यह काम उन्होंने मजबूरी में किया और यह चुनौतीपूर्ण भी था।

ज्योति का कहना है कि लोगो ने उनकी मजबूरी को नहीं समझा और कभी भी उन्हें अच्छी नजरों से नहीं देखा। वह हिम्मत दिखा रही हैं, लेकिन उनका कहना है कि समाज की पुरुषप्रधान सोच के आगे हम बहनें अब और संघर्ष नहीं कर सकतीं। शुरु में संघर्ष बहुत ज्यादा था, अब उतना नहीं है। उनका कहना है कि समाज और रिश्तेदार किसी का सपोर्ट नहीं मिला।

परिवार में ध्रुव नारायण की पत्नी भी हैं। उन्होंने कहा कि मुझे अपनी बेटियों पर गर्व है। उन्होंने पूरा घर संभाला है। उन्होंने कहा कि मुझे उनके साहस पर लाज नहीं, नाज है। गृहस्थी तक इनके दम पर चल रही है। हम हार गए थे, मेरे कुछ समझ नहीं आ रहा था, तब मेरी ताकत बनकर मेरी बेटियां सामने आई थीं। पिता का कहना है कि मेरी बेटियां ईमानदारी के काम से कमाती हैं। समाज क्या कहता है, इसकी मुझे चिंता नही है। बस इस बात की खुशी है कि इन्होंने परिवार संभाल लिया है।

सपना भावनानी की दास्तां

लड़कियों के लिए यह काम कितना मुश्किल होता है इस बारे में मशहूर हेयरस्टाइलिस्ट सपना भावनानी ने बताया है। उनका कहना है कि जो अपने हक की ताकत नहीं जानता ईश्वर उसे हिम्मत नहीं देता। हिम्मत से आगे बढ़ें। उन्होंने बताया कि जैसा ज्योति के साथ हुआ कुछ वैसा ही उनके साथ भी हुआ था। वह छोटी सी थीं जब पिता का साया उनके ऊपर से हट गया। मुंबई से शिकागो भेज दिया गया। बदले में समाज का अकेलापन मिला और सामूहिक बलात्कार का शिकार भी हुईं।, लेकिन हिम्मत कभी नहीं हारी। वह काम किया जिसपर मर्द अपना हक जमाए बैठे थे। मुंबई वापस आईं औऱ हेयर स्टाइल बनने का सोचा और फिर अपनी अलग पहचान बनाई।

क्या कहते हैं जावेद हबीब

मशहूर हेयर स्टाइलिस्ट जावेद हबीब को भी ज्योति और नेहा की कहानी बताई गई। उन्होंने कहा कि मैं ज्योति और नेहा को शाबाशी देता हूं। उनके जज्बे को सलाम है। दोनों हिम्मत ना हारे, समाज इसी से बदलता है। उन्होंने कहा कि यह हमारे देश में टैबू है और लोग इसे सिर्फ नाई का काम मानते है। लोग  इसे प्रोफेशन के तौर पर नहीं देखते हैं।दुनिया का सबसे पुराना प्रोफेशन बाल काटना ही तो है। जब तक दुनिया चलेगी, बाल काटने का प्रोफेशन कहीं नहीं जाने वाला है। इससे कोई मंदी नहीं आने वाली है।

जावेद हबीब ने कहा कि अगर आप डॉक्टर बन सकते हैं, तो क्या हम बालों के डॉक्टर नहीं बन सकते हैं। सरकार को भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। यह कम से कम 10 से 15 साल की योजना होनी चाहिए। अगर आपके पास हुनर है तो आपको किसी  के सामने हाथ फैलाने की जरुरत नही है। आपको सिर्फ एक कुर्सी चाहिए। अगर कुर्सी भी नहीं है तो कोई बात नहीं है। सिर्फ एक बॉक्स लें उसमें सारे औजार कैंची, कंघी ले लें। इससे आपकी आजीविका चल सकती है। हमें इस बात का ख्याल छोड़ना होगा कि लोग क्या कहेंगे।

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