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34 हजार में बिक गए कंगना और आर्यन, खरीदने वाला करवाएगा ईंट की भट्टी पर काम

कार्तिक पूर्णिमा (Kartik purnima) पर कंगना (Kangna) और आर्यन (Aryan) मध्य प्रदेश के उज्जैन (Ujjain) में 34 हजार रुपए में बिक गए। इन्हें देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। कोई इन्हें खरीदना चाहता था तो कोई बस ये देखने आया था कि इन दोनों की कितनी बोली लगती है। जिस व्यापारी ने इन्हें खरीदा है अब वह दोनों से ईंट ढोने का काम करवाएगा। हमारी ये बातें सुन आप में से कई लोग कन्फ्यूज हो गए होंगे। लेकिन आप चौंकिए नहीं, यहां हम जिस कंगना और आर्यन की बात कर रहे हैं वह असल में गधे हैं।

उज्जैन में लगता है गधों का मेला

दरअसल उज्जैन में हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर गधों का मेला (donkeys fair) लगता है। बीते वर्ष कोरोना के चलते ये मेला नहीं लग पाया था। लेकिन इस वर्ष यह 15 नवंबर को ही लग गया जो कि 20 नवंबर तक चलने वाला है। इस मेले में गधे को खरीदने और बेचने शाजापुर, सुसनेर, राजस्थान, महाराष्ट्र, जीरापुर, भोपाल, मक्सी, सारंगपुर समेत कई जगहों के व्यापारी आते हैं। इस मेले में कई किस्म और नस्लों के गधे बिकने आते हैं। वहीं मेले में घोड़े भी बिकते हैं।

गधों के होते हैं रोचक नाम

उज्जैन में लगे इस मेले में इस वर्ष गधों के रोचक नाम रखे गए। जैसे एक गधे का नाम आर्यन था तो दूसरे का कंगना। वहीं एक शख्स ने अपने गधे का नाम वैक्सीन भी रखा था। वहीं मेले में बिक रही घोड़ी का नाम भूरी तो वहीं घोड़े का बादल है। भूरी नाम की घोड़ी 2 लाख रुपए में बिकी जबकि बादल नाम के घोड़े की कीमत डेढ़ लाख रुपए रखी गई।

34 हजार में बिके कंगना-आर्यन

मेले में वैक्सीन नाम का गधा 14 हजार रुपए में बिका। वैक्सीन (Vaccine) नाम रखने के पीछे तर्क ये था कि जो भी व्यापारी आए वह वैक्सीन लगवाने का संकल्प लेकर जाए और साथ ही बाकियों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करे। मेले में कंगना और आर्यन नाम के गधे 34 हजार में बिके। इन्हें एक ईंट व्यापारी ने खरीदा जो उनसे ईंट ढोने का काम करवाएगा। मेले के सरंक्षक हरिओम प्रजापति बताते हैं कि मेले में गधों के ट्रेंड के अनुसार नाम रखने पर यह जल्दी और ऊंची कीमत में बिक जाते हैं।

ऐसे तय होती है गधों की कीमत

इस वर्ष यह मेला उज्जैन की शिप्रा नदी किनारे बड़नगर रोड पर लगा है। इस मेले में 100 से अधिक गधे और घोड़े बिकने आए हैं। यहां 5 हजार से 30 हजार रुपए तक में गधे बिकते हैं। इनकी कीमत उम्र के हिसाब से तय होती है। व्यापारी गधों की उम्र का अंदाज उनके दांत देखकर लगाते हैं। दांत का साइज और हालत देख उनकी उम्र का अंदाजा लगाया जाता है। गधा जितनी कम उम्र का होता है उतना महंगा बिकता है। गधा जब चार से पांच साल का होता है तो उन्हें ट्रेनिंग देना आसान होता है।

इस उम्र में वह सबसे अधिक काम भी करते हैं। वहीं 10-12 साल के होने के बाद वह बूढ़े हो जाते हैं और किसी काम के नहीं रहते हैं। गधों के व्यापारी कमल प्रजापति बताते हैं कि इस वर्ष मेले में इतनी रौनक नहीं थी। बीते सालों की तुलना में गधों की संख्या कम होती जा रही है। इस बार धंधा ठीक से नहीं हुआ।

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