राजनीति

तिहाड़ जेल में ‘कैदी नम्बर 2265’ थीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया, जानिए इससे जुड़ी कहानी…

राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने वसीयत में लिखा था मेरा बेटा मेरा अंतिम संस्कार नहीं करेगा, जानिये वजह

ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया किसी पहचान की मोहताज नहीं। जी हां उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी एक वसीयत ने सभी को चौंका दिया था। उन्होंने अपनी वसीयत में राजघराने की संपत्ति का बंटवारा नहीं किया था, बल्कि उसमें लिखा था कि मेरा बेटा मेरा अंतिम संस्कार नहीं करेगा।

Vijayaraje Scindia

इतना ही नहीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया अपने ही इकलौते पुत्र कांग्रेस नेता रहे माधवराव सिंधिया से बेहद खफा थीं। कहा जाता था कि विजयाराजे का सार्वजनिक जीवन जितना ही प्रभावशाली और आकर्षक था, उनका व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन उतना ही मुश्किलों भरा था। राजमाता का देहांत 25 जनवरी 2001 को हो गया था।

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इसके बाद कुछ माह बाद ही 30 सितम्बर 2001 को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में हेलीकाप्टर दुर्घटना में माधवराव सिंधिया की भी मौत हो गई थी। तो आइए आज हम आपको विजयाराजे सिंधिया से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी बताते है और वह भी आपातकाल के दौरान से जुड़ी हुई है…

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बता दें कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देशभर में आपातकाल लगाए जाने की घोषणा की थी। भारत में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीने का आपातकाल लगा था। यह भारतीय राजनीति के इतिहास में सबसे विवादित काल था क्योंकि आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे। उस वक्त इंदिरा गांधी ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले हर एक व्यक्ति को जेल में बंद करवा दिया था। वहीं ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी उन्हीं लोगों में शामिल थीं, जिन्हें जेल में बंद कर दिया गया था।

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गौरतलब हो कि विजयाराजे को दिल्ली की तिहाड़ जेल में कैद किया गया था और उस समय सरकार की तरफ से ये कहा गया था कि उन्होंने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया है। इतना ही नही विजयाराजे सिंधिया को इस बात का पहले से ही डर था कि कहीं इंदिरा गांधी सरकार उन्हें तिहाड़ जेल में रख सकती है और हुआ भी कुछ ऐसा ही।

सिंधिया को 3 सितंबर 1975 को इसी जेल में ले जाया गया। जहां उनकी पहचान केवल कैदी नंबर 2265 रह गई थी। बता दें कि ग्वालियर की महारानी रह चुकीं विजयाराजे सिंधिया जब दिल्ली की तिहाड़ जेल में कैदी थीं तब वहीं उनकी मुलाकात जयपुर की राजमाता गायत्री देवी हुई।

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वहीं विजयाराजे सिंधिया इस बात को समझ गईं थीं कि तिहाड़ एक नरक है और उन्हें इसे भोगना ही होगा। हालात ये थे कि हर सुख-सुविधा के साथ जीने वाली विजयाराजे और गायत्री देवी को एक ही शौचालय इस्तेमाल करना पड़ता था। वहां की हालत ये थी कि शौचालय में पानी का नल नहीं था और नाम मात्र की सफाई भी दो दिन में एक बार होती थी।

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ऐसे में इतने कठिन माहौल में भी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने हिम्मत नहीं हारी और वह इस बात से खुद को हौसला देती रहीं, कि बाकी महिलाओं को तो जेल में ये भी सुविधा उपलब्ध नहीं है। जेल की बाकी महिलाओं को शौचालय के इस्तेमाल के लिए लाइन लगानी पड़ती थी। जेल की कुछ महिलाओं और बच्चों को तो खुले में शौच करना पड़ता था।

इतना ही नहीं जिस राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पास बाहर की दुनिया में इतना बड़ा साम्राज्य था, उनके पास जेल के अंदर केवल 2 कुर्सियां, एक खटिया और बिजली के बल्ब में गुजारा करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा था। आख़िर में आप सभी को जानकारी के लिए बता दें कि इस किस्से का जिक्र ‘राजपथ से लोकपथ पर’ नाम की किताब में है। ये किताब राजमाता विजयाराजे सिंधिया की ऑटोबायोग्राफी है और इस किताब का संपादन मृदुला सिन्हा ने किया है। जो काफ़ी चर्चित रही है।

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