अध्यात्म

उल्लू क्यों है माँ लक्ष्मी की सवारी, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कहानी?…

धन की देवी मां लक्ष्मी ने उल्लू के इस गुण की वज़ह से बनाया उसे अपनी सवारी, क्या पता है आपको यह पौराणिक जानकारी...

हिंदू धर्म में क़रीब 33 करोड़ देवी-देवताओं की बात कही गई है। जिसमें से कई देवी देवताओं की पूजा की जाती हैं। शास्त्रों में सभी देवी देवताओं को किसी न किसी पशु और पक्षी के साथ दिखाया गया है। यानी हर देवी-देवता की अपनी-अपनी सवारी या उनका कोई प्रिय पशु या पक्षी होता है।

Maa Lakshmi Vahan

ऐसी मान्यता है कि सभी देवी और देवता अपने प्रिय वाहन के रूप में किसी न किसी पशु या पक्षी की सवारी करते थे। इसलिए, हिंदू धर्म में पशु पक्षी की भी पूजा की जाती है। मगर, एक पक्षी ऐसा भी है जिसे लेकर हिंदुओं में अजीबोगरीब धारणाएं, मान्यताएं और अंधविश्वास प्रचलित है।

owl maa lakshmi vahan

जी हां हम बात कर रहे हैं उल्लू की। उल्लू को हिंदुओं में शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार से देखा जाता है। जो लोग इसे अशुभ मानते हैं वह इस पक्षी से घृणा करते हैं और इसे देखना भी नहीं पसन्द करते। लेकिन जो लोग इसे शुभ मानते हैं वह उल्लू के चित्र, सिंबल और मूर्तियों को अपने साथ रखते हैं। वैसे भारतीय समाज में ‘उल्लू’ कह कर यदि किसी को संबोधित किया जाता है तो उसका अर्थ मूर्ख माना जाता है।

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वहीं दूसरी ओर उल्लू को भले मूर्ख माना जाता हो, लेकिन हर व्यक्ति की कहीं न कहीं यह प्रबल इच्छा होती है कि उल्लू की सवारी करने वाली मां लक्ष्मी की कृपा उनपर सदैव बनी रहें। हर व्यक्ति की चाहत यही होती है कि उसके पास अपार धन-संपदा और वैभव हो। जिसके लिए लोग मां लक्ष्मी और गणेश भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि जिस किसी व्यक्ति के ऊपर मां लक्ष्मी की कृपा होती है तो उसके जीवन में धन-समृद्धि संपदा और वैभव की कभी कमी नहीं होती। इतना ही नहीं हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के बीच मां लक्ष्मी की पूजा धन देवी के रूप में की जाती है। हिंदू धर्म में जिस प्रकार सभी देवी-देवताओं का वाहन कोई न कोई पशु-पक्षी होता है। उसी प्रकार मां लक्ष्मी ने अपने वाहन के रूप में उल्लू पक्षी को चुना। तो आइए जानें मां लक्ष्मी द्वारा अपना वाहन उल्लू को चुनने के पीछे की पौराणिक कहानी…

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बता दें कि पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू धर्म के सभी देवी- देवताओं ने, पशु- पक्षियों को अपने वाहन या सवारी के रूप में चुना हैं, जिनमें से कई देवताओं के वाहनों की स्वयं स्वतंत्र देवता के रूप में भी पूजा होती है। जैसे कि भगवान शिव के वाहन नंदी बैल तथा भगवान विष्णु के वाहन गरूण स्वयं भी पूजनीय हैं। सभी देवी-देवताओं ने अपनी आवश्यकता और इच्छा के अनुरूप अपना वाहन चुना है। ऐसे ही माता लक्ष्मी के अपने वाहन के रूप में उल्लू पक्षी को चुनने की कथा बहुत रोचक है। मालूम हो कि प्रकृति और पशु-पक्षियों के निर्माण के बाद जब सभी देवी-देवता अपने वाहनों का चुनाव कर रहे थे। तब माता लक्ष्मी भी अपना वाहन चुनने के लिए धरती लोक आईं। लक्ष्मी मां को देख कर सभी पशु-पक्षी में उनका वाहन बनने की होड़ लगाने लगी।

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ऐसे में मां लक्ष्मी जी ने सभी पशु-पक्षी से कहा कि मैं कार्तिक मास की अमावस्या को धरती पर विचरण करती हूं, उस समय जो भी पशु-पक्षी उन तक सबसे पहले पहुंचेगा, मैं उसे अपना वाहन बना लूंगी। कार्तिक अमावस्या की रात अत्यंत काली होती है। अतः ऐसे में जब मां लक्ष्मी जी धरती पर उतरी, तो रात के अंधेरे में देखने की क्षमता के कारण उल्लू ने उन्हे सबसे पहले देख लिया और बिना कोई आवाज किए सबसे पहले लक्ष्मी जी तक पहुंच गया। उल्लू के इन गुणों से प्रसन्न हो कर माता लक्ष्मी ने उसे अपनी सवारी के रूप में चुन लिया। तब से माता लक्ष्मी को “उलूक वाहिनी” भी कहा जाता है।

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इतना ही नहीं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता लक्ष्मी की सवारी होने के कारण उल्लू को शुभता और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। दीपावली की रात उल्लू का दिखना मां लक्ष्मी के आगमन का संकेत माना जाता है। यहां तक कि पौराणिक मान्यता यह भी है कि उल्लू का “हूं हूं हूं” की आवज निकालना मंत्र का उच्चारण है, लेकिन कुछ लोग अंधविश्वास के कारण उसकी बली देते हैं, जो एक जीव हत्या है। यह एक पाप कर्म है, धर्म में यह सर्वथा वर्जित है। आशा करते है यह पौराणिक कहानी आपको पसंद आई होगी। अगर यह कहानी पसन्द आई तो इसे दूसरों तक शेयर करना न भूलें, ताकि उन्हें भी रोचक जानकारी मिल सकें।

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