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देश की इकलौती महिला कमांडो ट्रेनर जो जल-थल-वायु और पैरामिलिट्री के जवानों को ट्रेनिंग दे चुकी हैं

महिलाओं को आधी आबादी कहा गया है और उनके बिना ये संसार ही अधूरा है। जितनी जरुरत उन्हें पुरुषों की है उतनी ही पुरुषों को उनकी है। इसके बाद भी हमारे समाज में ऐसे लोग मौजूद हैं जिन्हें औरत सिर्फ एक नाजुक सा फूल या घर में सजाने वाली वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं लगती। उनका मानना होता है कि राजनीति करना, बंदूक चलाना, प्लेन उड़ाना पुरुषों का हक है। ऐसे में आपको बताते है कि डॉ. सीमा राव के बारे में जो देश की पहली और एकलौती महिला कमांडो ट्रेनर हैं और भारत की सुपर वुमैन कहलाती है। उन्होंने अपनी उपलब्धियों से देश के पुरुषों की सोच बदली है। हमारे देश की सेवा में तत्पर जवानों को बंदूक चलाने की ट्रेनिंग इस महिला से मिली है।

जीत कुन डो मार्शल में महारत हासिल

भारत की सुपर वूमैन सीमा राव 49 वर्ष की है और 20 साल से बिना किसी सरकारी मदद के मुफ्त में ही आर्मी, एयरफोर्स औऱ नेवी समेत पैरामिलिट्री फोर्स के कमांडों को ट्रेनिंग दे रही हैं।वो उन पांच चुनिंदा महिलाओं में शामिल हैं जिन्हे जीत कुन डो मार्शल आर्ट आता है। ये वो मार्शल आर्ट है जिसे ब्रूस ली ने ईजाद किया था। सिर्फ इतना ही नहीं डॉ. राव सशस्त्रबलों के जवानों को रिफ्लेक्स फायर यानी की आधे सकेंड में किसी को शूट कर देने की ट्रेनिंग देती है। उनका कहानी तमाम महिलाओं के लिए एक प्रेरित करती है। उन्होंने एक साइट को इंटरव्यू देते वक्त ये बातें बताई हैं।

सीमा रॉव अपने बारे में बताते हुए कहती हैं कि वो बचपन में काफी कमजोर थीं और इसी कमजोरी को दूर करने के ले उन्होंने मार्शल आर्टस सीखना शुरु कर दिया था। उन्होंने अनआर्म्ड कॉम्बैट में ब्लैक बेल्ट हासिल किया।इसके बाद उनकी शादी मेजर दीपक राव से हुई। सीमा बताती है कि एक बार मार्निंग वॉक के दौरान उन्होंने देखा कि कुछ जवान थे जो अनऑर्म्ड कॉम्बैट की ट्रेनिंग ले रहे थे। पूछने पर पता चला की वो एक आर्मी स्कूल था। फिर वहां के कमाडेंट ऑफिसर से मिलकर एक वॉर्कशॉप की योजना बनाई गई।

सीमा ने बताया कि कमाडेंट ने हमें अच्छे रिव्यू दिए और इसी के आधार पर हमारी मुलाकात मुंबई पुलिस कमिश्नर आरडी त्यागी से हुई। जब त्यागी एनएसजी के महानिदेशक बने तो उन्होंने हमें अनआर्मड कॉम्बैट ट्रेनिंग देने के लिए इनवाइट किया। उसके बाद हम आर्मी चीफ से मिले और बताया कि हम आर्मी को ऐसी ही ट्रेनिंग देना चाहते हैं। उन्हंने पैरासेंटर बेंगलुरु में कॉम्बैट ट्रेनिंग के लिए आर्मी का पहला कोर्स शुरु करवाया। धीरे धीरे आर्मी की अलग अलग यूनिट्स देने के लिए बुलाने लगीं। इसके बाद मैंने शूटिंग सीखी। इसके बाद मैं नेवी, आर्मी, एयरफोर्स, पुलिस फोर्स और पैरामिलिट्री फोर्स को ट्रेनिंग देने लगीं।

किन तीन बातों से मिलती है जीत

सीमा राव ने बताया कि मैंने अब तक के सफर में जवानों को ट्रेनिंग देते हुए सिखा कि पहली और सबसे बड़ी सीख है अनुशासन, अनुशासन के बिना कोई जंग नहीं जीती जा सकती। दूसरी सबसे खास चीज होती है रणनीति। सही रणनीति का इस्तेमाल कर एक हारी हुई जंग को जीत में बदला जा सकता है। तीसरी सबसे बड़ी चीज हती है साहस। जब हार का सामना करना पड़े तो साहस एक ऐसी चीज है जिसके सहारे आगे बढ़ा जा सकता है।

ब्रूस ली से प्रभावित

1970 में ब्रूस ली की फिल्म इंटर द ड्रेगन रिलीज हुई तो पूरी दुनिया ही ब्रूस ली के मार्शल आर्ट्स जीत कुन डो से प्रभावित हो गई थी। हालांकि उस जमाने में सिर्फ कराटे था तो लोगों को लगा कि यही ब्रूस ली का मार्शल आर्ट है, लेकिन कराटे जीत कुन डो से अलग होता है। कुन डो में किक, पंच, कोहनी और घूटने का इस्तेमाल होता है। इसमें कुश्ती भी होती है जिसमें दुश्मन को जमीन पर लेटाकर हिट करना होता है।

क्या है ट्रेनिंग में शामिल

कमांडो सिचुएशन

दुश्मन की धरती पर जाकर कमांडो ऑपरेशन करता है। दुश्मन के इलाके में जाकर और उससे लड़कर जब कमांडो आता है तो उसे क्लोज क्वार्टर बैटल कहते है। सीक्यूबी में विस्फोटक इस्तेमाल करना और कमरे के अंदर फायरिंग करना भी सिखाया जाता हबै

काउंटर टेरिरज्म ऑपरेशन

इसमें हमारे कमांडो आतंकी से 30 मीटर की दूरी से लड़ाई करते है। सीक्यूबी का काउंटर टेरिरिज्म ऑपरेशन और कमांडो मिशन में फायदा होता है। इस ट्रेनिंग मे अलग अलग सबजेक्ट होते हैं।

अनऑर्मड कॉम्बैट

इसमें बिना हथियार के दुश्मन से लड़ाई करना सिखाया जाता बै

रिफलेक्स शूटिंग

जब दुश्मन 30 मीटर के अंदर है तो उसकी गोली लगने  पहले हमारी गोली लगनी चाहिए।

ग्रुप शूटिंग

इसमें सिखाया जाता बै कि एक टीम या ग्रुप कैसे दुश्मन पर गोली चला सकते हैं साथ ही ये सिखाया जाता है कि कैसे एक टीम मिलकर दुश्मन को गोली मार सकती है।

डॉ सीमा ने बताया कि – हमने आर्मी, आर्मी की स्पेशल फोर्सेस, कमांडो विंग, एनएसजी, मरीन कमांडो, एयरफोर्स के गरुड़ कमांडो, पैरामिलिट्री फोर्स जैसे बीएसएफस आईटीबीपी को ट्रेन किया है। 1997 से लेकर अभी तक हमने अलग अलग फोर्सेस को ट्रेन किया है। साथ ही 12 राज्यों की पुलिस को भी हमने ट्रेन किया है।

हार-जीत तय करने वाली बातें

  • कोई भी महिला पुरुष के बराबर होती है, वो हर काम कर सकती है जो एक पुरुष कर सकता है
  • जब किसी चीज में हार का सामना करना पड़े तो निश्चय  बनाए रखिए और प्रयास करते रहिए
  • हिम्मतवाले की ही जीत होती है
  • अपने लिए ऊंचे लक्ष्य कीजिए और अपनी योग्यता की दिशा में आगे बढ़िए
  • एक अलग सोच बनाएं औऱ परंपरा से हटकर सोचना सीखें

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