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मुस्लिम सहेली को किडनी देने पर अड़ी सिख महिला, पिता कर रहे अपील

दोस्तों के बीच मजहब की दीवार कभी नहीं आ सकती इसकी मिशाल पेश की है जम्मू कश्मीर की एक सिख महिला ने। मंजोत सिंह कोहली अपनी सहेली को किडनी देने का फैसला किया है और उनकी सहेली एक मुस्लमान है जिनका नाम समरीन अख्तर है। हालांकि मंजोत के परिवार को बेटी के इस फैसले पर आपत्ति है। मंजोत के पिता एक विकलांग व्यक्ति हैं। उन्होंने पनी बेटी से उसकी चिकित्सीय हालत को ध्यान में रखते हुए फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है।

मंजोत करना चाहती हैं किडनी दान

बता दें कि सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता मंजोत सिंह कोहली जिनकी उम्र 23 साल है उन्होंने अपनी 22 साल की सहेली समरीन अख्तर के किडनी देने का फैसला किया हा। उनक कहना है कि श्रीनगर का एक अस्पताल इस प्रक्रिया में जानबूझकर देरी कर रही है। उनके पिता गुरदीप सिंह 75 वर्ष के हैं और चलने फिरने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा कि मैं हाथ जोड़कर अपने बेटी से फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करता हूं। आपको मेरी चिकित्सीय हालत का पता है, मेरी देख भाल करने वाला कोई नही है।

पिता हैं नाराज

मंजोत के पिता ने सौरा के शेर एक कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज को पहले एक नोटिस भेजा जिसमें कहा गया है कि मंजीत के इस फैसले में परिवार की सहमति नही है। मंजोत सिंह के माता पिता का 2014 में एक बड़ा हादसा हुआ था जिसमें उनकी मां की डेथ हो गई थी और पिता के पैर चले गए। उन्होंने अपनी बेटी से बहुत ही भावुक होते हुए कहा है कि मुझ पर रहम करो और वापस लौट आओ। तुम कुछ अच्छा नहीं कर रही हो क्यंकि तुम्हारे पापा को तुम्हारी जरुरत है। मेरी देखभाल करने के लिए कौन है यहां, मैं इस सदमें को बर्दाश्त नहीं पाऊंगा।

फैसले पर अड़ी मंजोत

दूसरी तरफ मंजीत पूरी तरह से अपने फैसले पर अडिग हैं। वह एक सोशल एक्टिविस्ट हैं और रजौरी की रहने वाली सामरीन अख्तर से पिछले चार साल से उनकी दोस्ती हैं। समरीन भी अपनी सहेली  हमेशा से मदद करती हैं। सामरीन की बीमारी के बारे में मंजोत को कोई अंदाजा भी नहीं था, लेकिन उनके एक दोस्त ने इस बीमारी के बारे में जानकारी दी। वह 4 महीने से समरीन के साथ श्रीनगर स्किम्स में हैं।

मिसाल बनीं सहेली

मंजोत अपनी किडनी समरीन को दान करना चाहती हैं। इसके लिए उनके ऊपर कोई दबाव नही है बल्कि वह खुशी खुशी अपनी सहेली के लिए यह करना चाहती है।उन्होंने कहा क अगर मुझे जीने के अधिकार है तो फिर उसे भी है। वहीं समरीन अपनी दोस्त के इस फैसले से भावुक हैं। उन्होंने कहा कि वह इस, निस्वार्थ काम के लिए अपनी सहेली की शुक्रगुजार है। उन्होंने कहा कि डॉक्टर ने कहा कि यह एक धार्मिक मुद्दा बन जाएगा, लेकिन मंजोत ने मुस्लिम होने का कुछ नहीं सोचा। वह तो इंसानियत के नाते अपना फर्ज निभा रही है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा कदम नहीं उठाया जाएगा तो मिसालें कैसे पेश की जाएंगी। समरीन ने कहा कि हो सकता है कि हमारा यह उदाहरण देख बाकी लोग भी जाग जाएंगे। बिना धर्म जाती की परवाहग किए बिना इंसानियत का फर्ज निभाएंगे।

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