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एक पति अपनी पत्नी से डरता क्यों है…कहानी पढ़कर खुल जाएंगी आंखे

मेरे घर में काम करने वाला रामलाल अपनी बीवी से डरा हुआ लगता है। देखेने में ह्टा कट्टा लगता है फिर भी अपनी बीवी से कुछ दबा हुआ लगता है। एक दिन मैंने उससे पूछ ही लिया- रामलाल तुम अपनी बीबी से इतना डरते क्यों हों। वह बोला मैं डरता नहीं साहब उसकी कद्र करता हू, उसका सम्मान करता हूं। मुझे उसी बातों पर हंसी आ गई। मैंने बोला- ऐसा क्या है उसमें, ना तो सूरत है और ना ही पढ़ी लिखी।

रामलाल ने कहा कि कोई फरक नहीं पड़ता साहब कि वो कैसी है, पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है। उसकी चिकनी चुप़ड़ी बातें सुनकर मेरे मुंह से निकाल जोरु का गुलाम, बीवी के पल्लू से बधा रहने वाला और सारे रिश्ते तेरे लिए मायने नहीं रखते

बीवी हमारी होती है

रामलाल ने बड़े इत्मिनान से मुझे जवाब दिया- साहब जी मां बाप रिश्तेदार नहीं होते, वह भगवान होते हैं। उनसे रिश्ता नहीं निभाते उनकी पूजा करते हैं, भाई हन के रिश्ते जन्मजात होते हैं दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का होता है। हमारा रिश्ता ही देख लिजिए सिर्फ पैसे और जरुरत का है, लेकिन पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिए हमारी हो जाती है अपने सारे रिश्तों के छोड़कर हमारे साथ आगे बढ़ती है औऱ हमार हर सुख दुख में सहभागी बनती है आखिरी सांस तक।

बीवी मां है

मैं उसकी बातें सुनता रहा। एक नौकर जो किसी का पति है।उसके मन में अपनी पत्नी के ख्याल क्या हैं। वह आगे वैसे ही बातें बोलता रहा। साहब जी पत्नी अकेला रिश्ता नहीं, वह रिश्तों का भंडार है। जब वह हमारी सेवा करती है, हमसे दुलार करती है तो एक मां जैसी होती है। जब वह हमें जमाने के उतार चढ़ाव से आगाह करती है और मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूं क्योंक जानता हूं कि ह हर हाल में मेरे घर का भला करेगी तब वह पिता जैसी होती है।

बीवी बेटी भी है

वह आगे बोला- जब हमारा ख्याल रखती है हमसे लाड़ करती है, हमारी गती पर डांटती है हमारे लिए खरीददारी करती है तो हमारी बहन जैसी होती है। जब हमसे नई नई फरमाइश करती है नखरे करती है, रुठती है, अपनी बात मनवाने के कि जिद करती है तो बेटी जैसी होती है। जब हमसे सलाह मश्वरा करती है परिवार चलाने की नसीहत देती है, झगड़े करती है तब एक दोस्त जैसी होती है।

बीवी आत्मा है

जब वह सारे घर का लेन देन , खरीददारी, घर चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो एक मालकिन जैसी होती है। वह आगे बोला- और जब वह सारी दुनिया यहां तक की अपने बच्चे को भी छोड़कर हमारे बाहों में आती है तब वह प्रेमिका, अर्धांगिनी, हमारी प्राण और आत्मा होती है जो अपना सबकुछ हमपर न्यौछावर करती है। मैं उसकी इज्जत करता हूं तो क्या गलत करता हीं साहब।

मैं उसकी बातें सुन रहा था। मेरे होश उड़े हुए थे। एक अनपढ़ और सीमित साधनों से जीवन निर्वाह करने वाले से जीवन का मुझे नया अनुभव हुआ। मुझे उससे पता चला की इतना सम्मान तो मैंने अपनी बीवी को नहीं दिया । भले ही मैं और वो नौकर और मालिक हैं , लेकिन आखिर में हम दोनों ही एक पति भी हैं।

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