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स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाई जा सकती है भगवत गीता!

हिन्दू धर्म के मानने वालों के लिए भगवत गीता का बहुत बड़ा महत्व है। इसमें इंसान के लिए जीवनोपयोगी हर स्थिति का जिक्र किया गया है। एक इंसान को अपने जीवन में कौन से काम किस तरह से करने चाहिए, इसके बारे में बताया गया है। हर इंसान अगर भगवत गीता के हिसाब से अपना जीवन जीने लगे तो उसे जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहेगी और ना ही उसे कोई कष्ट होगा।

हिन्दू धर्म मानने वाले लगभग सभी लोगों के घर में भगवत गीता पायी जाती है। लोग इसका पाठ भी सुबह-शाम करते हैं। इसमें कही गयी बातों को मानते हैं और अपना जीवन सुखपूर्वक बिताते हैं। गीता का उपदेश महाभारत की लड़ाई के दौरान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। उन्होंने अर्जुन को बताया था कि इंसान को मोह का त्याग करके अपना कर्म करना चाहिए।

लोग नहीं देते हैं बच्चों को धार्मिक शिक्षा:

आज के समय में लड़के धीरे-धीरे भगवत गीता को भूलते जा रहे हैं। इसकी वजह यह है कि आज के समय में अपने बच्चों को लोग धार्मिक शिक्षा देना बंद कर चुके हैं। इस पर गंभीरता से विचार करने के बाद सरकार में शामिल कुछ लोगों का मानना है कि भगवत गीता की शिक्षा को स्कूलों में अनिवार्य कर देना चाहिए।

संस्थानों की रद्द की जानी चाहिए मान्यता:

स्कूल अगर भगवत गीता की पढ़ाई को अनिवार्य करते हैं तो ठीक और जो नहीं करते हैं, उन संस्थानों की मान्यता रद्द करने का एक निजी विधेयक संसद के अगले सत्र में चर्चा के लिए आ सकता है। यह विधेयक भाजपा सांसद रमेश विधूड़ी की तरफ से पेश किया गया है। विधेयक में कहा गया है कि, “भगवत गीता के सुविचार और शिक्षाएं युवा पीढ़ी को बेहतर नागरिक बनायेंगी, तथा उनका व्यक्तित्व निखारेंगी। (और पढ़ें – पढ़ाई करने के नियम)

नहीं लागू होगा अल्पसंख्यक स्कूलों पर:

विधेयक में कहा गया है कि हर शैक्षणिक संस्थान में भगवत गीता की शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए। इसे नैतिक शिक्षा के रूप में हर स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। विधेयक में कहा गया है कि यह नियम अल्पसंख्यक स्कूलों पर लागू नहीं होता है। इसमें कहा गया है कि सरकार को ऐसे सभी स्कूलों की मान्यता रद्द कर देनी चाहिए, जो इस विधेयक के प्रावधानों का पालन नहीं करते हैं।

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