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कोरोना काल में बेसहारों का सहारा बनी नम्रता, बेटे की परवरिश के साथ जरूरतमंदों की करती हैं सेवा

कोरोना महामारी के बीच सभी लोग अपने घरों के अंदर परिवार के लोगों के साथ समय व्यतीत कर रहे हैं। कोरोना काल में घर में रहकर ही अपना और अपने परिवार को सुरक्षित रखा जा सकता है परंतु इसी बीच ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपनी परवाह किए बगैर जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए घर से बाहर निकल रहे हैं। आप लोगों ने भी ऐसे बहुत से लोगों के बारे में जानकारियां पढ़ी होंगी, जो कोरोना काल में लोगों की अपनी तरफ से हर संभव मदद करने में जुटे हुए हैं। इसी बीच हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जो अपने 4 साल के बेटे को घर पर छोड़ कर उन लोगों की सहायता के लिए बाहर आती है, जिनको भोजन नहीं मिल पाता है। यह अपने घर पर रसोई बना कर भूखे लोगों और जानवरों को भोजन करा रही हैं।

कोरोना काल में बेसहारों का सहारा बनी हुई हैं नम्रता

कोरोना महामारी के बीच लोग अपने घरों के अंदर कैद होकर अपनी और अपने परिवार की हिफाजत कर रहे हैं, वहीं ग्वालियर की नम्रता सक्सेना बेसहारों की सेवा करने में जुटी हुई हैं। जी हां, नम्रता सक्सेना अपने 4 साल के बेटे उत्कर्ष को घर पर छोड़ कर जरूरतमंद लोगों को भोजन करातीं हैं। यह घर आकर सैनिटाइज कर फिर मां होने का दायित्व भी निभाती हैं। नम्रता सक्सेना की सेवा लगातार जारी है। यह उन लोगों के लिए मिसाल बनी हुई हैं, जो लोग अपने और अपने परिवार के बारे में सोचते हैं। नम्रता की यह सेवा पिछले 6 वर्षों से चली आ रही है। कोरोना महामारी के बीच भी यह लगातार जरूरतमंद लोगों की सेवा कर रही हैं।

नम्रता जी ने बताया कि जब वह कोरोना महामारी के बीच अपने घर से खाना लेकर सड़कों पर रहती थीं तो उनसे मिलने वाले लोग गलत शब्द बोलते थे। सभी लोग कहते थे कि तुम अपने घर पर ही रहो। इतना ही नहीं लोग मेरे पति से भी शिकायत करते थे। आपको बता दें कि नम्रता जी के पति का नाम राहुल सक्सेना है। नम्रता ने आगे बताया कि लोग मुझे देखकर दूर भागते थे, उनको यही डर रहता था कि कहीं उन्हें कोरोना ना हो जाए, लेकिन मैं अपने काम से कभी भी पीछे नहीं हटी। मेरा सपना सिर्फ सेवा करना था और आज भी मैं जरूरतमंद लोगों की सेवा कर रही हूं।

सेवा के लिए अपने सपनों का कर दिया त्याग

आपको बता दें कि नम्रता जी का सपना था कि उनका सिलेक्शन पीएससी में हो, जिसके लिए उन्होंने खूब तैयारी भी की थी। दो बार प्री क्लियर भी कर लिया और एक बार प्री और मेंस दोनों भी क्लियर कर लिया था, लेकिन यह इंटरव्यू के लिए नहीं गई थीं क्योंकि इनका यह सोचना था कि अगर इनका सिलेक्शन हो गया तो यह लोगों के पास जाकर उनकी सहायता नहीं कर पाएंगीं। हो सकता है कि पद पाकर जिम्मेदारियां बढ़ जाएँ, जिसके चलते मैं चाह कर भी लोगों की सहायता ना कर पाऊं। सेवा के लिए इन्होंने अपने सपने का भी त्याग कर दिया।

जरूरतमंद लोगों के लिए नम्रता बनाती हैं रसोई

नम्रता सक्सेना रोजाना सुबह बेटे को तैयार करने के पश्चात सुबह और शाम उन लोगों के लिए रसोई बनाती है जो सड़क किनारे बैठ कर दो रोटी की प्रतीक्षा करते रहते हैं। नम्रता जी भूखे लोगों के साथ-साथ सड़क पर घूम रहे कुत्तों का भी पेट भरती हैं। नम्रता जी ने कई डॉग का ऑपरेशन भी कराया है। यह सभी खर्च अपनी जेब से भरती हैं। इनके पति नौकरी करते हैं, जो पैसे इनके पति हर महीने देते हैं उन्हीं में से यह सेवा में खर्च करती हैं।

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