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भूखों के लिए मसीहा बन कर आए मध्यप्रदेश के ये पांच युवा, शुरु की रोटी बैंक

देश के कई हिस्सों में रोज़ाना न जाने कितने लोग भूखें पेट सोने के लिए मजबूर होते हैं और  उन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती है। ऐसे लोग अक्सर रेलवे स्टेशन या रैन बसेरा जैसे जगह पर पाए जाते हैं, जिनकी व्यथा को समझने वाला शायद ही कोई होगा। ऐसा ही नजारा मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के रेलवे स्टेशन, सुल्तानिया व हमीदिया अस्पताल और रैन बसेरा के आसपास देखा जा सकता है, जहां सैकड़ों से लेकर हजारों लोग रोज़ाना भूखें पेट सोते हैं, लेकिन इनके लिए कुछ युवा मसीहा बनकर आए।

मध्यप्रदेश के भोपाल रेलवे स्टेशन पर रोज़ाना इन लोगों के भूखे सोने की चिंता ने कुछ युवाओं की रातों की नींद छीन ली और फिर क्या उन्होंने इनकी मदद करने की ठान ली और अब वे उनकी मदद के लिए रोज़ाना खूब मेहनत करते हैं, ताकि ये लोग दो वक्त की रोटी खा सकें। दरअसल, इन युवाओं ने दो साल पहले रोटी बैंक खोला, जिससे इन भूखों लोगों को मदद मिलती है और इन युवाओं को दुआएं मिलती है। इतना ही नहीं, ये युवा दिन भर मेहनत करते हैं, ताकि उनके शहर का कोई भूखे न सोए। चलिए जानते हैं कि आखिर कैसे इनके मन में आया कि रोटी बैंक खोलना है?

दो साल पहले की रोटी बैंक की शुरुआत

मिली जानकारी के मुताबिक, करीब 2 साल पहले इन युवकों ने भारत टॉकीज स्थित सेंट्रल लाइबे्ररी में एक रोटी बैंक खोला है। यहां हर रोज आने वाले युवक एक-एक रोटी अपने लंच बॉक्स में ज्यादा लेकर आते हैं, जिसके बाद उस रोटी को रोटी बैंक में जमा करते हैं और वहां आने वाले लोगों को रोटी मिल जाए और वे भूखे पेट न सोए। बता दें कि इस मुहिम में रचित मालवीय, विष्णु पंथी, आलोक तिर्की, विवेक श्रीवास्तव और शोभित सिंह शामिल हैं, जिन्होंने रोटी बैंक की शुरुआत की है।

क्यों शुरु किया रोटी बैंक?

इस मुहिम में शामिल युवकों का कहना है कि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हुए इन्हें पता चला कि देशभर में करीब 19 करोड़ लोगों को भूखें सोना पड़ता है, जिसकी वजह से इन्हें उनकी फिक्र होने लगी और तभी इन्होंने कुछ करने की ठान ली। युवाओं ने आगे कहा कि उन्होंने रोटी बैंक शुरु किया और फिर इसमें लाइब्रेरी के अन्य युवाओं को भी जोड़ना शुरु कर दिया, जिसके बाद चैन लंबी होती गई और अब वहां मौजूद सभी भूखों को खाना मिल पाता है, ताकि वे रात को भूखें न सोए और हम भी चैन से सोए।

50 युवा दे रहे हैं अपना योगदान

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो इस लाइब्रेरी में करीब 800 युवा पढ़ाई करते हैं, जिसमें से अब तक 50 युवा इस मुहिम में जुड़ चुके हैं और वे लोगों को खाना देने में मदद करते हैं। बताया जा रहा है कि पहले सस्ता खाना मिलता था, जिसकी वजह से सभी खा लेते थे, लेकिन अब खाना महंगा कर दिया गया है, तो कभी कभी युवाओं को भी भूखें पेट सोना पड़ता है।

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