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मीडिया में ‘कूड़ा परोसने’ वाले संस्था का हुआ खुलासा, सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी में बताया नाम

देश की चौथी पालिका यानि पत्रकारिता पर इन दिनों जनता नहीं, बल्कि स्वयं सुप्रीम कोर्ट सवाल खड़ा कर रहा है। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने पीत पत्रकारिता करने वाले कुछ मीडिया संस्थानों को जमकर लताड़ लगाई, जिसके बाद ऐसी पत्रकारिता को तो चुल्लू भर पानी में डूब ही जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने द वायर जैसे मीडिया घरानों को जमकर लताड़ लगाते हुए कड़ी टिप्पणी की है, जिसके बाद पत्रकारिता का सिर शर्म से झुक गया, लेकिन उन लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने जिस तीखे अंदाज में द वायर को असली आइना दिखाया है, उससे तो उन्हें शर्म आनी चाहिए, लेकिन मामला ही उल्टा होता दिखाई दे रहा है। तो चलिए जानते हैं कि हमारे इस लेख में आपके लिए क्या खास है?

सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद बीते मंगलवार को प्रोपगेंडा न्यूज पोर्टल द वायर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह द्वारा दायर किए गए मानहानि के मुक़दमे को निरस्त किए जाने की माँग वाली अपनी याचिका वापस ले ली, लेकिन इससे पत्रकारिता दागदार हो गई। पत्रकारिता को लेकर लोगों के मन में आज भी निष्पक्ष होने की छवि बरकरार है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद पत्रकारिता पर ढेर सारे सवाल खड़े हो गए, जिसका जवाब देने में शायद दशकों लग जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार

अमित शाह के बेटे जय शाह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने द वायर को फटकार लगाते हुए कहा कि आजकल यह मीडिया की संस्कृति बन गई है कि वह लोगों को जवाब देने के लिए सिर्फ 10-12 घंटे का नोटिस देती है, जिसके बाद रिपोर्ट पब्लिश कर देती है! साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस टिप्पणी को उन पत्रकारों को दिन में पांच बार पढ़ना चाहिए, जो अपनी स्क्रीन काली कर देते हैं। जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि यह एक सभ्य देश है और यह कैसी संस्कृति हम विकसित कर रहे हैं, जिसमें हम रात में किसी को नोटिस भेजते हैं और सुबह उसे प्रकाशित कर देते हैं, जोकि पूरी तरह से गलत है।

ये कैसी पत्रकारित है- सुप्रीम कोर्ट

द वायर में छपे एक लेख के मुताबिक, अमित शाह के बेटे जय शाह पर घोटाले के आरोप लगाए थे, जिसके बाद उन्होंने इस पर मानहानी का मुकदमा किया था। इसी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने द वायर को फटकार लगाते हुए कहा कि यह और कुछ नहीं बल्कि पीत पत्रकारिता है। यह कैसी पत्रकारिता है? प्रेस की स्वतंत्रता सर्वोपरि है, लेकिन यह एकतरफा नहीं है। बता दें कि कोर्ट की ये टिप्पणी का अप्रत्यक्ष रुप से तमाम मीडिया घरानो के लिए भी है, जोकि सिर्फ एक तरफा पत्रकारिता ही करती हैं, जिसमें रवीश कुमार का नाम भी खूब लिया जाता है।

रवीश कुमार ने किया था सबसे ज्यादा प्रचार

द वायर, क्विंट, स्क्रॉल जैसे वेब पोर्टल को मेनस्ट्रीम बनाने की कोशिश में जिस शख्स ने सबसे ज्यादा प्रचार किया था, उस शख्स का नाम रवीश कुमार है। इन वेब पोर्टल का नाम आते ही सबके मन में सिर्फ रवीश कुमार का नाम आता है। रवीश कुमार ने द वायर की रिपोर्ट काफी जगह दी थी, फिर चाहे सोशल मीडिया हो या फिर उनका प्राइम टाइम। हर तरफ रवीश कुमार ने खूब प्रचार किया था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या रवीश कुमार देश से माफी मांगेगे या फिर अब नई मनगढ़ंत स्टोरी बनाने में व्यस्त होंगे।

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