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दिव्यास्त्र के लिए अर्जुन ने महादेव से युद्ध कर के करली थी भूल , जानिये क्या हुआ था परिणाम

महाभारत ग्रंथ के अनुसार कौरवों से युद्ध जीतने के लिए अर्जुन को कृष्ण जी ने दिव्यास्त्र हासिल करने की सलाह दी थी। ताकि देवयास्त्र की मदद से अर्जुन कौरवों को इस युद्ध में आसानी से हरा सकें। कृष्ण जी की सलाह को मानते हुए अर्जुन दिव्यास्त्र को हासिल करने के लिए देवराज इंद्र के पास गए। देवराज इंद्र से मिलकर अर्जुन ने उनसे दिव्यास्त्र मांगा। लेकिन देवराज इंद्र ने अर्जुन को दिव्यास्त्र देने से इंकार कर दिया और अर्जुन के सामने एक शर्त रखी। देवराज इंद्र ने अर्जुन से कहा कि वो पहले शिव भगवान को प्रसन्न करें। शिव भगवान के प्रसन्न होने के बाद ही वो उन्हें दिव्यास्त्र देंगे। देवराज इंद्र की बात को मानते हुए अर्जुन एक जंगल में चले गए और जंगल में जाकर उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करनी शुरू कर दी।

जब अर्जुन तपस्या कर रहे थे तभी वहां एक असुर सूअर का रूप लेकर पहुंच गया और इस असुर ने सूअर बनकर अर्जुन को मारने की कोशिश की। इस सूअर की मंशा अर्जुन समझ गया और अर्जुन ने इस सूअर को मारने के लिए अपना धनुष उठा लिया। जैसे ही अर्जुन इस सूअर को मारने के लिए तीर धनुष से छोड़ने लगा। तभी वहां पर शिव भगवान एक वनवासी का रूप धारण करके आ गए। वनवासी ने अर्जुन को देखकर कहा, तुम इस सूअर को नहीं मार सकते। इस सूअर पर मेरा अधिकार है। इसलिए इस सूअर को मैं ही मारूंगा। लेकिन अर्जुन अपनी जिद पर अड़े रहे और वनवासी और अर्जुन ने एक साथ ही अपने-अपने धनुष से तीर छोड़कर सुअर को मार दिया। मरे हुए सूअर पर किसका अधिकार है इसको लेकर अर्जुन और वनवासी में फिर से जंग शुरू हो गई। वनवासी ने अर्जुन से कहा, मेरा तीर इस सुअर को पहले लगा है। इसलिए इस सूअर पर मेरा हक है।

अर्जुन और वनवासी के बीच हुआ युद्ध

सूअर को लेकर अर्जुन और वनवासी के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि अर्जुन ने वनवासी को यु्द्ध करने की चुनौती दे दी। जिसके बाद इन दोनों के बीच युद्ध हुआ और युद्ध करते करते अर्जुन बेहोश हो गए। जब अर्जुन होश में आए तब तक वनवासी वहां से जा चूका था। वहीं होश में आने के बाद अर्जुन ने अपने पास एक मिट्टी का शिवलिंग पाया और इस शिवलिंग पर एक फूलों की माला चढ़ी हुई थी। ये माला वनवासी के गले में थी और इस माला को शिवलिंग पर देखकर अर्जुन को समझ आ गया कि वो वनवासी शिव ही थे।

इसके बाद अर्जुन ने अपनी तपस्या फिर से जारी की और अर्जुन से प्रसन्न होकर उन्हें शिव भगवान का आर्शीवाद मिल गया। जिसके बाद  देवराज इंद्र ने अर्जुन को दिव्यास्त्र  दे दिया। ये दिव्यास्त्र  हासिल होने से अर्जुन की शक्ति और बढ़ गई और कौरवों के मन में अर्जुन का डर बैठ गया। वहीं जब महाभारत का युद्ध हुआ तो इस युद्ध को पांडवों ने बेहद ही आसानी से जीत लिया और कौरवों से अपने राज्य वापस हासिल कर लिया।

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