अध्यात्म

महाभारत: जानिए कैसे हुई थी गंधारी, धृतराष्ट्र और कुंती की मृत्यु

महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी एकदम अकेले रहे गए थे। क्योंकि इस युद्ध में इनके सभी पुत्र मारे गए थे। ये युद्ध खत्म होने के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी के साथ क्या हुआ और इनकी मृत्यु किस तरह से हुई, इसके बारे में बेहद ही कम लोगों को जानकारी है।

महाभारत युद्ध के बाद घटी थी ये घटनाएं

महाभारत का युद्ध मार्ग शीर्ष शुक्ल 14 को प्रांरभ हुआ था और ये युद्ध 18 दिनों तक चला था। इस युद्ध में पांडव विजय रहे थे और इस युद्ध में सभी 100 कौरवों की मुत्यु हो गई थी। ये युद्ध खत्म होने के बाद पांडवों ने अपने बड़े भाई युधिष्ठिर को राजा बनाया था और युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर पर कई सालों तक राज किया था।

महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी पांडवों के साथ ही उनके महल में रहने लगे। धृतराष्ट्र और गांधारी देख नहीं सकते थे। इसलिए पांडवों की मां कुंती हर समय इनके साथ ही रहा करती थी और इनकी सेवा किया करती थी। महाभारत के अनुसार भीम धृतराष्ट्र और गांधारी को बिलकुल भी पसंद नहीं किया करते थे और अक्सर इन्हें तानें मारा करते थे। हस्तिनापुर में करीब 15 सालों तक रहने के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी ने वनवास पर जाने का फैसला किया। धृतराष्ट्र और गांधारी देख नहीं सकते थे। इसलिए कुंती ने भी इनके साथ वनवास पर जाने का निर्णय लिया और इस तरह से ये तीनों वृद्धावस्था में वनवास पर चले गए।

इस तरह से हुई इन तीनों की मौत

धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती के वनवास पर जाने के करीब तीन साल बाद नारद जी युधिष्ठिर से मिलने के लिए आए थे और युधिष्ठिर ने देवर्षि नारद का अच्छे से सत्कार किया था। देवर्षि नारद को हर चीज की खबर रहती थी। इसलिए युधिष्ठिर को पता था कि नारद जी को उनकी मां कुंती, धृतराष्ट्र और गांधारी के बारे में भी जरूर  पता होगा। युधिष्ठिर ने हिम्मत करते हुए नारद जी से इन तीनों के बारे में पूछा लिया। तब नारद जी ने युधिष्ठिर को बताया कि ये तीनों हरिद्वार में रहकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। लेकिन एक दिन जब धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती जंगल से होते हुए अपने आश्रम आ रहे थे। तभी जंगल में आग लग गई थी और वृद्धावस्था होने के कारण ये तीनों भाग नहीं पाए और इस आग में इन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु की खबर सुनते ही पांडव शौक में चले गए। वहीं युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती के बेटे होने का फर्ज निभाते हुए इन तीनों का अंतिम संस्कार किया और विधिपूर्वक इनका श्राद्ध कर्म भी करवाया। ताकि इन तीनों की आत्माओं के शांति मिल सके।

वहीं कुछ सालों बाद पांडवों ने भी अपना राज्य त्याग दिया और ये सभी स्वर्ग की यात्रा पर निकल गए। स्वर्ग की यात्रा पर निकलने के बाद द्रौपदी समेत चार पांडवों की मृत्यु रास्ते में ही हो गई थी और इस तरह से केवल युद्धिष्ठिर ही जीवित अवस्था में स्वर्ग पहुंचने में कामयाब हो सके थे।

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