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जहां प्रेम भावना और सेवा भाव हो वहां शिकायत की जगह नहीं होनी चाहिए, नहीं तो रिश्ते बिखर जाते हैं

बहुत पुराने समय की बात है। एक राज्य में एक राजा रहा करते थे। वो अपने दयावान स्वभाव और बुद्धि के लिए पूरे राज्य में प्रचलित थे। जनता उन्हें अपना प्रिय राजा मानती थी। राजा भी प्रजा को अपनी संतान की तरह ही प्रेम करते थे। साथ ही उनके द्वार पर अगर कभी कोई आ जाए तो ना तो खाली पेट जाता था ना ही खाली हाथ। एक बार राज्य में एक महापुरुष संत आए। उनकी ख्याति गांव से निकलकर राजा के महल तक पहुंच गईं।

संत की चर्चा पहुंची राजमहल

राजा ने संत से मिलने की इच्छा जताई। वो जानते थे कि संत ज्ञान और धर्म की अच्छीं बातें करते हैं इसलिए उनके मिलना ठीक रहेगा। जब राजा से संत की मुलाकात हुई तो दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत हुई। राजा संत की बातों से काफी प्रभावित हो गए। संत की बातें धर्म और लोगों के सुख-दुख से जुड़ी रहती थीं जिससे राजा को काफी कुछ सीखने को मिलता था। राजा भी संत का आदर करते और उन्हें जंगल नही जाने देते। राजा ने संत के रहने की व्यवस्था अपने राज महल में ही कर दी।

मंहल में राजा के नौकर चाकर संत के आस पास लगे रहते। हमेशा उनकी कुशल क्षेम पूछी जाती है। उन्हें हर तरह की सुख सुविधाएं दी जाती। यहां तक की कई बार राजा स्वयं जाकर उनका हाल चाल पूछते और खाने पीने का ध्यान रखते। एक बार सैर सपाटे के लिए राजा और संत दोनों साथ में जंगल घूमने निकले। जंगल घना औऱ दोनों को बात करते करते वक्त का पता नहीं चला।

राजा और संत दोनों काफी आगे तक निकल गए। सैनिक सारे पीछे छूट चुके थे और रास्ता भी भटक गए थे। दोनों के ही समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें वहीं भूख के मारे दोनों की हालत भी खराब हो रही थी। तभी एक पेड़ पर राजा को एक फल दिखाई दिय़ा। राजा ने उसे तोड़ा और उसके करीब 6 टुकड़े कर दिए। उसने सबसे पहला टुकड़ा संत को खाने को दिया।

संत ने राजा को दी सीख

जैसे ही संत ने एक टुकड़ा खाया  फल बहुत अच्छा लगा। उन्होंने राजा से कहा कि मुझे और भी भूख लगी है। राजा ने एक और टुकड़ा दे दिया। ऐसा करते हुए वो 5 टुकड़े खा गए। जब छठे टुकड़े की बारी आई तो राजा के सामने संत ने फिर मांग रख दी। अबकी राजा को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा कि सारा फल आप पहले ही खा चुके हैं ये आखिरी फल मैं खाउंगा औऱ ऐसा बोलते ही उन्होंने जैसे ही आखिरी टुक़ड़ा मुंह में डाला तुरंत थूक दिया।

राजा का मुंह एकदम अजीब बन गया। फल बेहद ही कड़वा था। राजा ने कहा- इतने कड़वे फल को आप ऐसे खा रहे थे जैसे ये कितना मीठा है और ऊपर से और ज्यादा मांग रहे थे। संत ने कहा-महाराज आपने मेरी इतनी सेवा की है कि इस फल को मैं कड़वा कैसे कह सकता था। मैं तो पूरा फल इसलिए मांग रहा था ताकी आपको कड़वा फल ना खाना पड़े। राजा ये सुनते ही भावुक हो गए। इस बात का हमेशा ख्याल रखना चाहिए कि जहां प्रेम-मित्रता या सेवा भाव होती है वहां कभी शिकायत नहीं होनी चाहिए।

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