दिलचस्प

21 साल का वो भारतीय फौजी जिसकी बहादुरी को पाकिस्तानी फौज भी सलाम करती है….

जब हमारी खामोशी को हमारी कमजोरी समझा जाने लगता तो वक्त आ जाता है कि उन्हें जवाब दिया जाए। ये बात किसी एक की नहीं बल्कि हर उस एक दिल की है जो जवानों के शहीद होने की खबर सुनते हैं। वो जवान जिन्हें लड़ने का मौका तक नहीं मिलता और कायरों की तरह कोई उन पर वार करके चला जाता है। ये वही लड़ाई है जो विभाजन के समय से आजादी के इतने सालों तक लड़ी जा रही है और आज भी ये जारी है। जंग करना आसान है, लेकिन उसकी कीमत चुकाने का हौसला हर किसी के दिल में नही होता। कुछ जंग ऐसी भी होती है जो खत्म होने के बाद भी दिल में गहरे जख्म दे जाती हैं। ऐसे ही एक  वाकये को हम आपको बताते हैं जब 1971 की जंग के बाद जब एक ब्रिगेडियर को पाकिस्तानी फौजी का निंमत्रण मिला था और उनके सामने एक बड़ा ही भयानक राज खुला था।

जब हिंदुस्तानी फौजी को पाकिस्तान से मिला निमंत्रण

सन 2001 का वक्त था औऱ उस वक्त हिंदुस्तान औऱ पाकिस्तान के हालात कुछ शांत से थे और लोगों का आना जाना जारी था। 81 साल के रिटायर्ड ब्रिगेडियर खेत्रपाल थे जिनके पास अक्सर पाकिस्तान के किसी ब्रिगेडियर का संदेश आता था। हर संदेश में एक ही बात होती थी कि खेत्रपाल पाकिस्तान आएं और वहां ठहरें। खेत्रपाल के पास संदेश आते रहे, लेकिन वो लंबे समय तक इस बात को नजरअंदाज करते रहे। एक समय ऐसा आया जब उन्होंने तय कर लिया कि वह पाकिस्तान के उस फौजी की मेहमान नवाजी का लुत्फ उठाने पाकिस्तान जरुर जाएंगे जो इतने दिनों से उन्हें याद कर रहा है।

चाहे कोई कितना भी दूर क्यों ना चला जाए अपने घर आंगन की मिट्टी उसे अपने पास खींच ही लाती है। ब्रिगेडियर खेत्रपाल की भी ख्वाहिश थी की मरने से पहले एक बार पाकिस्तान के सरगोधा में अपने पुश्तैनी घर को देख आएं। उन्हें मेहमान नवाजी के लिए बुलाने वाले फौजी थे लाहौर में रहने वाले ब्रिगेडियर ख्वाजा मोहम्मद नसीर जिन्होंने उनके वीजा और पेपर की सारी व्यवस्था कर दी थी। खेत्रपाल जब पाकिस्तान पहुंचे तो नसीर उनका पूरा परिवार, नौकर चाकर एक हिंदुस्तानी ब्रिगेडियर की खिदमत में ऐसे लगे जैसे उनके घर का ही कोई सदस्य बड़े दिनों बाद घर लौटा हो।

जब नसीर ने खेत्रपाल को बताई सच्चाई

3 दिन तक नसीर खेत्रपाल की मेजबान रहे और उन्हें हर किस्म की सुख सुविधा दी। दोनों बात करते करते ऐसे हो गए जैसे कोई सरहद कभी पार ही ना की हो। हालांकि खेत्रपाल के मन में ये सवाल आता था कि दुश्मन मुल्क का एक फौजी उन्हें इतना सम्मान औऱ प्यार क्यों दे रहा हैं। नसीर उनके मन की बात भांप गए और फिर हिंदुस्तानी फौजी से उन्होंने वो बात कह दी जिसके शायद खेत्रपाल ने  उम्मीद भी ना की थी।

नसीर ने कहा- सर, एक बात है जो मैं आपको कई सालों से बताना चाहता था, लेकिन बताने का तरीका ही नहीं मिल रहा था। मुझे आपकी खिदमत करने का मौका मिला, इसके लिए मैं शुक्रगुजार हूं, मगर इसकी वजह से मेरा रास्ता और भी मुश्किल हुआ है। मेरे ही हाथों अरुण का कत्ल हुआ था।

21 साल के परमचक्र विजेता अफसर

अरुण सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल थे। वो भारत के सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र विजेता अफसर थे। 1971 की लड़ाई में बासंतार की जंग में पाकिस्तान के पास 5 बटालियन थी और हिंदुस्तान के पास सिर्फ 3। उस वक्त पाक का पलड़ा भारी होते दिख रहा था। तीन टैंकों के साथ 17 पूना हॉर्स के सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल के सामने  से आ रही पाकिस्तानी लांसर्स के पैटर्न टैंक्स की कतार रोकने की जिम्मेदारी दी गई थी। सामने आ रही स्कवाड्रन से 21 साल का एक लड़का जा भिड़ा और पाकिस्तान के 10 टैंक खत्म कर दिए वो अरुण खेत्रपाल थे।

पाकिस्तान की सेना का आगे बढ़ना रुक गया और उनका मनोबल इतना गिर गया कि आगे बढ़ने के लिए उन्हे दूसरे बटालियन से मदद मांगनी पड़ गई। अरुण ने आखिरी टैंक खत्म किया वो उनसे 100 मीटर से भी कम दूरी पर था। अरुण के टैंक में आग लग गई। सेना ने उन्हें टैंक छोड़ने का आदेश दिया और अरुण के आखिरी शब्द थे- सर मेरी गन अभी भी फायर कर रही है जब तक ये काम करती रहेगी , मैं फायर करता रहूंगा… इसके बाद टैंक में आग लगी और अरुण शहीद हो गए।

जब बेटे की मौत का सच पता चला

अरुण ब्रिगेडियर खेत्रपाल के बेटे थे। नसीर ने बताया कि दोनों एक दूसरे पर फायर कर रहे थे और उस हालात में कोई एक ही जिंदा रह सकता था। नसीर की किस्मत अच्छी निकली वो बच गए। नसीर ने कहा कि जब फौजियों को ट्रेनिंग दी जाती है तो सिखाया जाता है कि दुश्मन से लड़ते समय भावनाओं और तर्क के बारे में ना सोचें। मगर अरुण खेत्रपाल के एनकाउंटर के वक्त नसीर के अंदर का इंसान उनके फौजी होने पर भारी पड़ने लगा था। वो 21 साल के लड़के की बहादुरी के आगे झुक गए थे और उसके जज्बे को दिल में ही सलाम कर रहे थे।

ये पूरी बात खेत्रपाल ने बहुत ही खामोशी से सुनी औऱ काफी देर तक चुप रहे। वो उस शख्स के सामने खड़े थे जिसने उनके बेटे की हत्या की थी। 40 साल तक उसके अंदर एक ग्लानि की भावना थी जो घूट रही थी और अब वह प्रायश्चित कर रहे थे। खेत्रपाल ने जुबान खोली और वो बोला जो एक फौजी दूसरे फौजी से कहता – तुम अपनी ड्यूटी कर रहे थे और वो अपनी……..।

16 दिसंबर को शहीद हुए सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनकी बहादुरी ऐसी थी जिसके लिए भारत की ही नहीं पाकिस्तान की आंखे भी नम हो गई थी। उनकी वीरता के कायल पाकिस्तान भी है जिसने अपनी डिफेंस वेबसाइट पर एक भारतीय फौजी की बहादुरी की कहानी को संजो कर रखा है।

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