अध्यात्म

क्या आप जानते हैं? रावण की सोने की लंका को हनुमान जी ने नहीं, बल्कि मां पार्वती ने जलाया था!

कहा जाता है कि रामायण एक महासागर की तरह है, जिसकी गहराई कोई नहीं जान पाया. रामायण और उसमें वर्णित घटनाक्रमों के बारे में एक से बढ़कर एक ऐसी रहस्यमयी बातें हैं जिनसे बहुत सारे लोग अनजान होंगे. रामायण में न जाने कितने प्रसंग हैं, जिनके बारे में हमने कभी सुना ही नहीं है.

जैसा हमने टीवी सीरियल रामायण में देखा और लोगों से सुना है उसके मुताबिक हम सभी को पता है कि सोने की लंका को हनुमान जी ने जलाया था. मगर क्या आपको पता है, जिस सोने की लंका को आप रावण की लंका मानते हैं, वो असल में किसकी थी? और उस सोने की लंका को हनुमान जी ने नहीं बल्कि किसी और ने जलाया था? अगर पौराणिक कथानकों की मानें तो कुछ ऐसी बातें हैं जो आपको हैरानी में डाल सकती हैं. क्योंकि सोने की लंका को हनुमान जी ने नहीं बल्कि माता पार्वती ने जलाया था.

जी हां! ये बिलकुल सत्य है. सोने की लंका रावण की नहीं बल्कि मां पार्वती की ही थी.

ये कथा है इस बात का आधार :

दरअसल बात उस वक्त की है, जब लक्ष्मी जी और विष्णु जी भगवान शिव-पार्वती से मिलने के लिए कैलाश पर आए. कैलाश पर ठंड होने के कारण लक्ष्मी जी ठिठुरने लगीं. कैलाश पर ऐसा कोई महल भी नहीं था, जहां पर लक्ष्मी जी को थोड़ी राहत मिल पाती. लक्ष्मी जी ने पार्वती जी पर तंज कसा. कहा कि आप खुद एक राज कुमारी हैं, फिर भी इस तरह का जीवन कैसे व्यतीत कर सकती हैं. जाते-जाते उन्होंने पार्वती और शिव जी को बैकुण्ठ आने का न्योता भी दिया.

कुछ दिन बाद शिव और मां पार्वती एक साथ बैकुण्ठ धाम पहुंचे. बैकुण्ठ धाम को देखकर पार्वती जी आश्चर्यचकित रह गईं. उनके अंदर एक जलन की भावना भी जाग गई.  जैसे ही मां पार्वती कैलाश पर पहुंची भगवान शिव से उसी तरह का महल बनवाने का हठ करने लगीं.

उसके बाद भगवान शिव ने पार्वती जी को भेंट करने के लिए कुबेर से कहलवाकर दुनिया का सबसे अनोखा महल बनवाया जो पूरी तरह से सोने का बना था.

सोने की लंका पर पड़ी रावण की बुरी नजर :

रावण की नजर जब इस महल पर पड़ी तो उसके अंदर इसे पाने का लालच आ गया. इस तरह का इकलौता महल होने के कारण उसने इसे पाने की ठानी. सोने का महल पाने की इच्छा लेकर रावण ब्राह्मण का रूप धर अपने इष्ट देव भगवान शंकर के पास गया और भिक्षा में उनसे सोने के महल की मांग करने लगा.

भगवान शिव सबकुछ जान रहे थे फिर भी उन्हें द्वार पर आए ब्राह्मण को खाली हाथ लौटाना धर्म विरुद्ध लगा, क्योंकि शास्त्रों में वर्णित है- आए हुए याचक को कभी भी खाली हाथ या भूखे नहीं जाने देना चाहिए एवं भूलकर भी अतिथि का अपमान नहीं करना चाहिए. इसके बाद भोले शंकर ने खुशी-खुशी महल रावण को दान में दे दिया.

रावण को महल दान करने से मां पार्वती हो गई नाराज :

जब ये बात मां पार्वती को पता चली तो वह बेहद खिन्न हुईं. मां पार्वती को यह बात नागवार गुजरी कि उनके सोने का महल किसी और का कैसे हो सकता है? उसके बाद मां पार्वती के भीतर प्रतिशोध की ज्वाला धधक उठी. भगवान शिव ने मां पार्वती को मनाने का बहुत प्रयास किया, मगर सब बेकार. इसलिए मां पार्वती ने प्रण किया कि अगर यह सोने का महल उनका नहीं, तो इस त्रिलोक में किसी और का भी नहीं हो सकता.

मां पार्वती ने इस तरह जलाया था लंका को :

बाद में यही सोने का महल रावण की लंका के नाम से जाना जाने लगा. हालांकि मां पार्वती के भीतर प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी. वह खुद अपने हाथों से इस महल को नष्ट करना चाहती थीं. इसलिए जब रामायण के पात्रों का चयन हो रहा था, तब भगवान शिव ने कहा था कि त्रेता युग में जब राम अवतार होगा, तो वो उसमें हनुमान का रूप धारण करेंगे और सोने की लंका को नष्ट कर देंगे. लेकिन मां पार्वती खुद अपने हातों से उसका विनाश करना चाहती थीं. इसलिए रामायण में जब सभी पात्रों का चयन हो गया और मां पार्वती की कोई भूमिका नहीं रही, जिससे वे अपने अपमान का बदला ले सकें तो भगवान शिव ने कहा कि आप अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मेरी अर्थात हनुमान की पूंछ बन जाना. जिससे आप खुद उस लंका का दहन कर सकती हैं.

अंत में यही हुआ हनुमान जी ने सोने की लंका को अपनी पूंछ से जलाया. पूंछ के रूप में मां पार्वती थीं. इसलिए लंका दहन के बाद मां पार्वती के गुस्से को शांत करने के लिए हनुमान जी को अपनी पूंछ की आग शांत करने के लिए सागर में जाना पड़ा.

 

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