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सुभाष चंद्र बोस के प्रतिमा अनावरण में क्यों नहीं आया उनका परिवार? किस बात से है नाराजगी? जानिए

नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कौन नहीं जानता। वह देश के फेमस स्वतंत्रता सैनानी थे। उनके सम्मान में अक्सर कुछ ना कुछ होता रहता है। 8 सितंबर, गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 28 फुट ऊंची प्रतिमा का इंडिया गेट के पास अनावरण करेंगे। इस अवसर पर कई बड़े लोग शामिल होंगे। लेकिन खुद नेताजी का परिवार इसमें शामिल नहीं हो पाएगा। इसकी एक वजह सरकार द्वारा चुनी गई तारीख है। नेता जी की बेटी अनीता बोस फाफ ने सरकार की चुनी इस तारीख पर सवाल उठाए हैं।

नेताजी का परिवार अनावरण में नहीं होगा शामिल

नेताजी की बेटी फाफ और परिवार के अन्य मेंबर्स ने कहा कि यूं ही किसी भी दिन प्रतिमा का अनावरण नहीं किया जा सकता है। परिवार का कहना है कि 8 सितंबर की तारीख का नेताजी से कोई संबंध ही नहीं है। वहीं बेटी ने ये जरूर कहा कि उन्हें इस कार्यक्रम का नियमंत्रण मिला था। हालांकि बहुत कम समय में जर्मनी से भारत आना कठिन है।

उधर नेताजी के पोते चंद्र कुमार बोस ने भी इस पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि हमारे परिवार में अधिकतर लोगों की उम्र बहुत अधिक है। इसलिए उन्हें कार्यक्रम के कुछ दिनों पहले हमे जानकारी देनी थी। इस मामले को लेकर चंद्र बोस ने एक ट्वीट भी किया।

उन्होंने ट्वीट में लिखा – आप नेताजी की प्रतिमा का अनावरण ऐसे ही किसी भी दिन नहीं कर सकते। इस दिन का उनसे या INA से कोई कनेक्शन होना चाहिए। उच्च स्तरीय केंद्रीय समिति के एक मेंबर ने 21 अक्टूबर या 23 जनवरी को अनावरण करने की सलाह दी थी।

बताते चलें कि चंद्र बोस एक समय में भारतीय जनता पार्टी के सदस्य भी रह चुके हैं। उन्होंने पश्चिम बंगाल में चुनाव भाजपा की टिकट लेकर चुनाव लड़ा था। हालांकि इन दिनों वे पार्टी से दूरी बनाकर रहना पसंद करते हैं।

क्या है मूर्ति में खास?

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पराक्रम दिवस (21 जनवरी, 2022) पर ऐलान किया था कि इंडिया गेट पर नेताजी की ग्रेनाइट से बनी एक भव्‍य प्रतिमा स्‍थापित की जाएगी। यह प्रतिमा उन्होंने राष्ट्र के लिए जो भी किया उसके  आभार के प्रतीक के रूप में स्‍थापित की जाएगी।

बताते चलें कि 28 फुट ऊंची यह प्रतिमा 65 मीट्रिक टन वजन की है। इसे एक अखंड 280 मीट्रिक टन वजन वाले विशाल ग्रेनाइट पत्‍थर पर उकेरा गया है। इसे नेताजी का रूप देने में 26000 घंटे लगे। इसे बनाने में पारंपरिक तकनीकों, आधुनिक औजारों और हाथों का इस्तेमाल किया गया।

यह मूर्ति अरुण योगीराज के नेतृत्‍व में मूर्तिकारों के एक दल द्वारा बनाई गई। इसे तेलंगाना के खम्‍मम से 1665 किलोमीटर दूर नई दिल्‍ली तक लाने के लिए 100 फुट लंबा 140 पहियों वाला एक खास ट्रक बनाया गया था। इसे लाने के दौरान रास्ते में 34 बार टायर भी फटे थे। ट्रक ने 14 दिनों में सफर पूरा किया था।

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