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इंदिरा गांधी ने जमीन का कीमती टुकड़ा श्रीलंका को उपहार दिया था, मोदी सरकार से वापस लेने की मांग

भारत और श्रीलंका के बीच अक्सर विवाद का कारण बनने वाले जमीन के एक कीमती टुकड़े को वापस लेने की मांग उठ रही है। जमीन के इस टुकड़े को प्रधानमंत्री रहने के दौरान इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को गिफ्ट में दे दिया था। इसे कच्चातीवु द्वीप कहते हैं। इस द्वीप की वजह से ही श्रीलंका नेवी ने बहुत से भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार कर लिया है।

1974 में श्रीलंका को गिफ्ट में दिया

श्रीलंका और रामेश्वरम (भारत) के बीच यह कच्चातीवु द्वीप स्थित है(गूगल मैप देखिए)। पारंपरिक रूप से श्रीलंका के तमिलों और तमिलनाडु के मछुआरे इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। हालांकि भारत ने 1974 में एक सशर्त समझौते के तहत यह द्वीप श्रीलंका को दे दिया। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्री लंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए और कच्चातीवु श्रीलंका का हो गया।

भारत में विरोध

1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने प्रस्ताव पास किया और इस द्वीप को वापस लेने की मांग की गई। 2008 में तत्कालीन सीएम जयललिता ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा दिया। उन्होंने कहा कि श्रीलंका को कच्चातीवु गिफ्ट में देना असंवैधानिक है।

काफी महत्वपूर्ण है ये द्वीप

कच्चातीवु पाक जलडमरूमध्य में समुद्र तट से दूर निर्जन द्वीप है। बताते हैं कि 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण यह द्वीप बना था। ब्रिटिश शासन के दौरान 285 एकड़ की भूमि का भारत और श्रीलंका संयुक्त रूप से इस्तेमाल करते थे। कच्चातीवु द्वीप रामनाथपुरम के राजा के अधीन हुआ करता था और बाद में मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना। 1921 में भारत और श्रीलंका दोनों ने मछली पकड़ने के लिए इस भूमि पर अपना-अपना दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा। आजादी के बाद भारत ने पहले के विवाद को सुलझाने के प्रयास किए।

समझौते के बाद विवाद बढ़ा

विवाद उस समय बढ़ा जब दोनों देशों ने 1974-76 के बीच समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते से भारत और श्रीलंका के बीच अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा निर्धारित हो गई। अब भारतीय मछुआरों को केवल यह अनुमति थी कि वे आराम करने, नेट को सुखाने और सालाना सेंट एंथोनी फेस्टिवल के लिए आ सकते थे। उन्हें इस द्वीप पर मछली पकड़ने की अनुमति नहीं थी। हालांकि भारतीय मछुआरे बेहतर क्षेत्र की खोज में श्रीलंका के जलक्षेत्र में जाते रहे।

2009 से श्रीलंका ने निगरानी कड़ी की

2009 में श्रीलंका ने पाक स्ट्रेट में समुद्री सीमा की कड़ी निगरानी शुरू कर दी। उनकी मंशा यह थी कि तमिल विद्रोही देश में वापस न लौट सकें। 2010 में युद्ध खत्म होने के बाद श्रीलंका मछुआरे फिर से क्षेत्र में आवाजाही करने लगे और इस भूभाग पर दावा ठोंक दिया।

द्वीप वापस लेने की मांग

पिछले दिनों संसद में कच्चातीवु द्वीप श्रीलंका को सशर्त देने से भारतीय मछुआरों को हो रहे नुकसान का मुद्दा उठा। AIADMK के एक सांसद ने मांग की कि सरकार 1974 में हुए समझौते को रद्द कर यह द्वीप वापस ले।

AIADMK सांसद थंबीदुरै ने कहा कि कच्चातीवु द्वीप में मछली पकड़ना तमिलनाडु के मछुआरों का परंपरागत अधिकार है लेकिन समझौते की वजह से उनके इस अधिकार का हनन हो रहा है।

वर्तमान स्थिति क्या है?

मामला अभी भारत के सुप्रीम कोर्ट में है। श्रीलंका ने भारतीयों को बिना किसी वीजा के धार्मिक प्रयोजन से द्वीप आने की छूट दे रखी है। तत्कालीन सीएम जयललिता ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर फैसले पर पुनर्विचार करने की बात कही थी। अब एक बार फिर मामला उठा है।

जिस द्वीप को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को गिफ्ट किया था, क्या अपने मछुआरों के हित में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वापस लेंगे? तर्क दिए जा रहे हैं कि कोई भी अंतरराष्ट्रीय समझौता संबंधित देश के हितों पर आधारित होता है। अगर इंदिरा सरकार के समय हुए समझौते से भारतीयों को नुकसान हो रहा है तो उसे डील को तोड़ देना चाहिए। यह क्षेत्र भले ही करीब 1.15 वर्ग किमी का हो लेकिन यह भारतीयों के हितों के लिहाज से काफी कीमती है।

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