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करगिल युद्ध के दौरान यह जाबांज गोलियां खाने से पीछे नहीं हटा, फिर परिवार को लिखा था यह खत..

सतवीर सिंह के अनुसार वो बचपन से ही आर्मी ज्वाइन करना चाहते थे। आर्मी में भर्ती होने से पहले करीब ढाई साल तक इन्होंने भारतीय होमगार्ड में अपनी सेवाएं दी थी। वहीं जब ये आर्मी में भर्ती हुई उस दौरान कारगिल युद्ध शुरू हो गया। जो कि 26 जुलाई 1999 को खत्म हुआ।

करगिल युद्ध के दौरान इनके पैर में गोली लगी थी और आज भी गोली के निशान है। गोली लगने के कारण ये अच्छे से चल फिर तक नहीं सकते हैं। करगिल युद्ध को याद करते हुए इन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान वो 13 जून 1999 की सुबह अपनी टुकड़ी के साथ कारगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर ये थे। ये सैनिकों की एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ 24 सैनिक थे। जिनमें से सात शहीद हो गए थे। बाकी को गंभीर चोटें लगी थी। युद्ध के दौरान इन्होंने पाकिस्तान की सेना के बेहद नजदीक जाकर उनपर हैंड ग्रेनेड से हमला किया था। ताकि कोई बच न सके।

हालांकि इस दौरान ही दुश्मन की एक गोली इनके पैर की एड़ी में लग गई थी। जिसका निशान आज भी इनके पैर में मौजूद है। सतवीर करीब 17 घंटे तक पहाड़ी पर घायल पड़े रहे और उनके शरीर से खून बहता रहा। वहीं माहौल सही होने के बाद उनके साथी उन्हें नीचे ले आए। एयरबस से इन्हें श्रीनगर भेजा गया। जहां पैर से गोली निकाली गई।

23 मई, 2000 को इन्हें रिटायरमेंट दे दी गई थी। इन्हें भारत सरकार ने सर्विस सेवा स्पेशल मेडल से सम्मानित भी किया था। इस युद्ध में शहीद हुए अफसरों, सैनिकों की विधवाओं, घायल सैनिकों के लिए तत्कालीन सरकार ने पेट्रोल पंप और खेती की जमीन मुहैया करवाने की घोषणा की थी। सतबीर का भी इस लिस्ट में नाम था। लेकिन इन्हें पेट्रोल पंप की जगह करीब 5 बीघा जमीन दी गई।

मगर करीब 3 साल बाद ये जमीन उनसे वापस ले ली गई। अपने परिवार को पालने के लिए इन्हें जूस की एक दुकान खोलनी पड़ी। जहां आज भी ये काम करते हैं और जो पैसे इन्हें मिलते हैं। उससे परिवार के दो बच्चों और पत्नी का पेट पाल रहे हैं। सेना की ओर से इन्हें पेंशन दी जा रही है। लेकिन उससे घर का खर्च पूरा नहीं निकल पा रहा है।

नायक सतवीर सिंह कारगिल युद्ध में बुरी तरह से घायल हो गए थे। घायल होने के बाद इन्होंने अस्पताल से ही अपने परिवार के लोगों को एक पत्र लिखा था। जिसमें इन्होंने जीवित होने की जानकारी अपनी मां को दी थी। ये पत्र लिखते हुए इन्होंने अपनी मां से कहा था कि पूजनीय माताजी…पिताजी को पांवधोक बांचना। सब कैसे हैं? आज ही सुशीला बहन को पत्र भेजा है। मेरे बारे में आप कोई चिंता मत करना। मैं यहां बिल्कुल ठीक हूं। 16 तारीख का समाचार पत्र जरूर पढ़ें। जो घटना हुई वो सभी शहीद मेरी ही यूनिट के थे। अब ज्यादा खतरा नहीं है। तकरीबन शांति हो गई है। हालात पूरी तरह ठीक होने पर ही मैं छुट्टी की अर्जी दूंगा। सितंबर तक छुट्टी पर आ जाऊंगा। पिताजी आपकी तबीयत कैसी है? पत्र का जवाब जल्दी देना।’

ये चिट्ठी नायक सतवीर सिंह ने कारगिल युद्ध के दौरान लिखी थी। सतवीर का परिवार दिल्ली के मुखमेलपुर गांव में रहता था और अपने परिवार को जीवित होने की जानकारी इन्होंने पत्र के माध्यम दी थी। दरअसल तोलोलिंग पर कब्जा करने की कोशिश के दौरान इन्हें गोलियां लग गई थी। जिसके बाद इन्हें अस्पताल में भर्ती किया था। इस दौरान कई सैनिक शहद हो गए थे।

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