अध्यात्म

जानें क्यों श्मशान में रहते हैं भगवान भोलेनाथ, कैसे बनाते हैं माया और दुनिया के बीच संतुलन?

हिन्दू धर्म में देवी देवता बहुत हैं, इश्वर के बहुत से स्वरूप हैं, कोई शिव को पूजता है, कोई विष्णु को, कोई राम को पूजता है तो कोई साईं को, कुछ  लोग कबीर में आस्था रखते हैं. कुछ लोगों का मानना होता है कि ईश्वर एक प्रकाश बिंदु जैसा है उसका कोई स्वरूप नहीं है वह तो एक शक्ति है जो इस पूरे विश्व को जोड़े हुए. वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ईश्वर जैसी किसी सत्ता या शक्ति पर विश्वास नहीं करते. भारतीय दर्शन में उन्हें भी स्थान दिया गया है. भारतीय दर्शन का वितान बहुत बड़ा है.

लेकिन सभी प्रकार के दर्शन और भाक्तियां आपको एक हो जगह पर ले जायेंगी सबका सारांश सिर्फ यही है कि ये दुनिया क्षणभंगुर है, इस दुनिया में सबकुछ नश्वर है सब अनित्य है. एक न एक दिन सबकुछ नष्ट हो जायेगा. कुछ भी शाश्वत नहीं है. ऐसे में सभी धर्मों का सारांश यही है फिर भी मान्यताएं अलग अलग.

भगवान जी का निवास श्मशान :

शिवे के अनुयायियों का मानना है कि भगवान भोलेनाथ सबसे अलग हैं वह औघड़ हैं, अविनाशी हैं, उनका निवास श्मशान में है, लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान भोलेनाथ श्मशान में क्यों रहते हैं, दरअसल सच्चाई यह है कि इस दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है भोलेनाथ संसार और जीवन के संतुलन को बनाये रखने के लिए श्मशान में रहते हैं. यह जगत मिथ्या है. एक दिन सबकुछ नष्ट हो जायेगा. यहां का सबकुछ यहां धरा का धरा रह जायेगा. कुछ भी मनुष्य के साथ नहीं जायेगा.

शरीर और आत्मा का साथ बहुत ज्यादा दिनों का नहीं :

मनुष्य मोहवश इस सच्चाई को नहीं जान पाता जनता है तो भी इसपर भरोसा नहीं करता और भौतिकता के सुख में डूबा रहता है. लेकिन जिसको भी यह जीवन मिला है उसे एक न एक दिन वापस जाना ही है, शरीर और आत्मा का साथ बहुत ज्यादा दिनों का नहीं है. मनुष्य माया में फंस कर इस जीवन की सच्चाई भूल जाता है. जीवन का उद्देश्य धन और संपदा कमाना नहीं होता है. बल्कि इस जन्म मरण के बंधन से मुक्ति पाना होता है.

मनुष्य का अंतिम श्मशान :

इन्हीं वजहों से भगवान शिव ने श्मशान घाट को अपने निवास के तौर पर चुना, शिव शव के राख को अपने शरीर से मलते हैं, नरमुंड की माला पहनते हैं. चिताओं के बीच रहते हैं. क्योंकि जीवन का उद्देश्य और जीवन की अंतिम यात्रा मनुष्य को श्मशान तक ले आती है. यहीं पर शरीर जलकर नष्ट होता है शरीर का मोह भी नष्ट हो जाता है.

यहां रहकर शिव संतुलन का सन्देश देते हैं जिस तरह से वह विष और अमृत दोनों का पान करके संतुलन बनाते हैं. जहरीले सर्पों को अपने गले से लपेटे शिव संतुलन दिखाते हैं माया जितनी अच्छी और आकर्षक है उतनी ही विषैली भी शिव श्मशान में रहकर संतुलन का सन्देश देते हैं. उनके साथ उनकी ही तरह औघड़, भूत पिशाच, और विकृत भक्त होते हैं. उनके भक्तों को गण कहा जाता है. उनके भक्त दिखने में अजीबोगरीब कटे पिटे और अमानवीय नजर आते हैं. शिव का सन्देश ही बताता है उनके शमशान में रहने की असली वजह.

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