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250 गरीबों को रोजाना कराते हैं भोजन, 63 की उम्र में भी मिसाल बने बालाचंद्रा

इस दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें दो वक्त की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं हो पाती है। बहुत से लोग तो ऐसे भी हैं, जिन्हें भूखे पेट ही सो जाना पड़ता है। गरीबी की जिंदगी बिताने वाले ऐसे लोगों की यदि कोई मदद करने के लिए सामने आए तो उनसे महान व्यक्ति और इससे महान काम और क्या हो सकता है? इस दुनिया में यह बात जरूर है कि अधिकतर लोग केवल अपने बारे में सोचते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की भी दुनिया में कमी नहीं है जो जितना खुद के बारे में सोचते हैं उतना ही परवाह वे दूसरों के भी सुख-दुख की करते हैं। दूसरों के दुख में भी वे न केवल भागीदार बनते हैं, बल्कि अपनी ओर से यह कोशिश भी करते हैं कि किस तरीके से उनके दर्द को बांट लिया जाए।

दुनिया की एक बहुत बड़ी विडंबना यह है कि इस दुनिया में जहां बड़ी मात्रा में अनाज बर्बाद चले जाते हैं और जूठन के रूप में भी छोड़ दिए जाते हैं, उतनी ही बड़ी संख्या में इस दुनिया में लोग भूखे भी रह जाते हैं। ऐसे में यदि कोई इन भूखों का पेट भरने के लिए कदम उठाता है तो उससे श्रेष्ठ इंसान शायद कोई और नहीं हो सकता। वैसे तो ऐसे कई लोग देखे जा चुके हैं, जो गरीबों को भोजन करवाते हैं, लेकिन तमिलनाडु में 63 साल के बालाचंद्रा भी जो कर रहे हैं, वह भी कम उल्लेखनीय नहीं है। गरीबों को भोजन कराने का बीड़ा उन्होंने उठा रखा है।

तमिलनाडु के तूतूकुडी जिले में बड़ी संख्या आदिवासियों की भी है। ऐसे बहुत से लोग पिछड़े हुए हैं और वे गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इनके लिए कई बार भोजन जुटाना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में यहां के करीब 250 आदिवासियों को रोजाना भोजन कराने का काम बालाचंद्रा कर रहे हैं। जी हां, बालाचंद्रा के द्वारा हर दिन आदिवासियों के बीच भोजन के पैकेट वितरित किए जाते हैं। यहां के पहाड़ी बस्तियों कुट्टुपुली, पानप्पल्ली, कोंडानुर, थेक्कालूर और जम्बुकंडी में वे हर दिन सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक भोजन के पैकेट लेकर पहुंच जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि वे इन सभी को स्वादिष्ट भोजन कराते हैं। साथ ही ये भोजन पोषक तत्वों से भी भरपूर होते हैं और हर दिन इनका मीनू भी बदल जाता है।

केवल खाना ही बालाचंद्रा इन लोगों को नहीं खिलाते हैं, बल्कि हर महीने के तीसरे रविवार को उनकी ओर से सभी परिवारों के बीच पांच-पांच किलो चावल और एक-एक किलो दाल भी वितरित किये जाते हैं। बालाचंद्रा के मुताबिक 14वीं शताब्दी में जो कावेरीपत्तनम के संत पत्तिनाथर हुए थे, उन्हीं से प्रेरणा लेकर और उनसे प्रभावित होकर वे गरीबों को भोजन करना का यह काम कर रहे हैं। अपने कारोबार की जब बालाचंद्रा ने शुरुआत की थी, तभी उन्होंने मन में यह ठान लिया था कि गरीबों और भूखों को भोजन कराने के लिए आगे कदम उठाएंगे।

बालाचंद्रा बताते हैं कि उन्होंने अपनी जिंदगी के 60 साल अपने परिवार को दे दिए। अपने काम को दे दिए। जब उन्होंने कारोबार शुरू किया था तभी उन्होंने जरूरतमंदों की मदद करने का सोच रखा था। अब वे कारोबार से भी मुक्त हो चुके हैं और परिवार की जिम्मेवारी से भी। ऐसे में खुद से किए हुए वादे को वे निभा रहे हैं। बालाचंद्रा का परिवार भी पूरी तरह से सेटल है। उनका बेटा जहां एक मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में प्रबंध निदेशक के तौर पर काम कर रहा है, वहीं उनकी दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है। दोनों विदेश में रह रही हैं। बालाचंद्रा जो गरीबों के लिए कर रहे हैं, वह बाकी लोगों को भी प्रेरित करने वाला है।

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