राशिफल

बुरे से बुरा समय दूर करने के लिए रोज़ सुबह उठकर बोलें ये 7 नाम, जानिये कौन हैं ये?

जीवन में सफल हर कोई होना चाहता है और इसके लिए वह कड़ी मेहनत भी करता है. लेकिन ज़रूरी नहीं जो मेहनत करे उसे सफलता मिल ही जाए. बहुत लोग कड़ी मेहनत के बावजूद उस मुकाम पर नहीं पहुंच पाते जहां वह पहुंचना चाहते हैं. पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें बिना मांगे सब कुछ मिल जाता है. बिना कोई मेहनत किये वह सफलता की उंचाइयों को छूने लगते हैं. ऐसे लोगों की किस्मत बहुत अच्छी होती है. हर इंसान बड़ा बनना और पैसा कमाना चाहता है. वह चाहता है कि उसके पास इतना पैसा हो जिससे वह अपनी और अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा कर सके. लेकिन कोई भी चीज़ पाने के लिए मेहनत की आवश्यकता होती है. समाज में एक अमीर और सफल व्यक्ति बनने के लिए कड़ी मेहनत की ज़रुरत होती. लेकिन कभी-कभी इंसान को कामयाब होने से रोकने में कुंडली दोष और जाने-अनजाने में किये गए पाप कर्मों का बहुत बड़ा हाथ होता है. इस वजह से भी वह भगवान की कृपा पाने से वंचित रह जाता है और उसे असफलता और गरीबी के साथ अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है.

लेकिन आज हम आपको एक ऐसा उपाय बताने जा रहे हैं जिसे अपनाकर चुटकियों में आप अपना दुर्भाग्य कोसो दूर फेंक सकते हैं. यह उपाय आपके बुरे समय को दूर करने में आपकी मदद करता है. महाभारत और गरुड़ पुराण के अनुसार सुबह उठते ही यदि आप इन 7 ऋषि मुनियों के नाम का जप कर लें तो आपकी सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी. तो आईये जानते हैं कौन से हैं वो 7 ऋषि और उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें.

ऋषि विश्वामित्र      

गायत्री मंत्र विश्वामित्र द्वारा ही लिखा गया है. भगवान श्री राम और लक्ष्मण के गुरु थे ऋषि विश्वामित्र.

ऋषि वशिष्ठ

राजा दशरथ के चारों पुत्रों (राम, लक्ष्मण, भारत, शत्रुघ्न) के गुरु ऋषि मुनि वशिष्ठ थे. ब्रह्मा जी की इच्छा शक्ति से ऋषि मुनि वशिष्ठ का जन्म हुआ था.

ऋषि द्रोणाचार्य

कौरवों और पांडवों को शिक्षा देने वाले गुरु का नाम ऋषि द्रोणाचार्य था.

ऋषि अगस्त्य

सप्त ऋषियों में से ऋषि अगस्त्य को एक माना जाता है. काशी में ऋषि अगस्त्य का जन्म हुआ था और उनकी एक बेटी थीं जिनका नाम लोपामुद्रा था.

ऋषि भृगु

भृगु संहिता की रचना ऋषि भृगु द्वारा हुई है. इनका जन्म भगवान ब्रह्मा के मष्तिष्क से हुआ था.

ऋषि कश्यप

पुराणों की मानें तो ऋषि कश्यप की कुल 12 पत्नियां थीं. कश्यप गोत्र की उत्पत्ति ऋषि कश्यप के नाम से ही हुई है.

ऋषि अत्रि

जब सीता और राम को वनवास हुआ था तब कुछ देर के लिए दोनों ऋषि मुनि अत्रि के आश्रम में ठहरे थे. माता अनसूया ऋषि अत्रि की पत्नी थीं.

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