अध्यात्म

रावण की इन पांच बातों को आप अपना लेते हैं तो आप को खुशहाल बनने से कोई नहीं रोक सकता है, जानिए

ज़िन्दगी में हर कोई खुश रहना चाहता है. आज कल लोग अपनी ख़ुशी पाने के लिए इतने स्वार्थी हो गये हैं कि दूसरों की तो दूर, बल्कि अपनों की भी नहीं सोचते. समय के साथ साथ इंसान भी बदलता जा रहा है. एक समय में सब रिश्ते निभाने वाला इंसान आज अपनों के ही खून का प्यासा होता जा रहा है. पुराने बजुर्गों की एक कहावत शायद आपने सुनी ही होगी कि “दूसरों का अच्छा सोचने वालों का खुद भी हमेशा अच्छा ही होता है”. तो यकीनन ये सच है दोस्तों. अगर आज आप किसी की भलाई करेंगे तो कल को वो भी बदले में आपका बुरा नहीं सोचेगा. आज के इस आर्टिकल में हम आपको रावण के बारे में कुछ ख़ास बातें बताने जा रहे हैं, जो उसने मरने से पहले अपने बेटे इन्द्रजीत से कही थी. अगर आप भी रावण की उन पांच बातों को अपनी ज़िन्दगी में अपना लेंगे तो आपसे ज्यादा खुशकिस्मत दूसरा और कोई नहीं हो सकता. तो दोस्तों, चलिए जानते हैं रावण की बतायीं गयीं वो 5 बातें आखिर क्या हैं..

रावण था एक अच्छा पिता

भले रावण कितना भी गलत था लेकिन, अपनी बहन और बेटे के प्रति वह सबसे समझदार इंसान था. शायद इसी कारण ही भगवान ने उसको ना मरने के वरदान भी दिया था. रावण ने मरते समय जो इंदरजीत से बातें की वह इतिहास में पांच ज्ञान के नाम से जानी जाती है. जिसके कारण मनुष्य को सम्मान तथा लक्ष की प्राप्ती करने में भगवान भी मद्दगार हो जाते हैं. एक इंसान को जन्म देने वाला पिता ही उसका पहला ईश्वर होता है जिसके आशीर्वाद से वह आगे बढ़ सकता है. रावण के अनुसार एक पिता ही अपने पुत्र के लिए दुख के मार्ग पर चलकर उसके लिए सुख की कामना करता है. उसके भविष्य के लिए आसान रास्ते तलाशता है ताकि उसके पुत्र को किसी भी कठनाई का सामना ना करना पड़े.

लंका पति रावण के अंतिम संवाद और पांच ज्ञान

  • जो इंसान अपने पिता का निरादर करता है,तथा विपदा के समय उसका साथ छोड जाता है, उसका सम्मान ना तो कोई इंसान करता है और न ही उसको भगवान माफ़ करता है. देवी देवता भी उसका साथ छोड़ जाते हैं. इसके इलावा लोग भी उसकी हर जगह निंदा ही करते हैं.

  • रावण के अनुसार हर बेटे को पाप और पुनः की बातें छोड़, अपने पिता की हर बात में सहमति होनी चाहिए. एक पुत्र का फर्ज है कि वह अपने पिता की निष्काम भाव से सेवा करता रहे. इसके लिए चाहे उसके प्राण संकट में ही क्यों न आ जाएं. रावण के अनुसार हर बेटे को अपने पिता का ऋणी रहना चाहिए, क्यूंकि उसके पिता ने ही उसको इस धरती पर जन्म दियाऔर उसका पाल पोषण किया.

  • एक पुत्र के लिए उसका पिता ही उसका जन्म दाता है. उसे अपने पिता में भगवान का स्वरूप नजर आना चाहिए. अपने पिता का आशीर्वाद उसके लिए ईश्वर के आशीर्वाद से बढ़कर होना चाहिए. क्यूंकि बाकी भगवान उसके पिता के बादआते हैं.

  • रावण के इंदरजीत को बताये कथनों के अनुसार अगर पिता की आज्ञा का पालन करते हुऐ एक बेटे के  प्राण भी चले जाएं, तो उसका जीवन धन्य हो जाता है.रावण के अनुसार एक आज्ञाकारी पुत्र ही सरब सुख की प्राप्ति कर सकता है.एक सच्चे पुत्र के लिए उसका पिता ही पर्मात्मा है.अगर भूले से उस्से कोई पाप भी हो जाते है, तो वह भी  माता पिता की सेवा करने से धुल जातें हैं.

  • बिना पिता की सेवा के स्वर्ग प्रपात करना असंभव है. पिता की सेवा के बिना इष्ट भगति भी व्यर्थ ही जाती है. क्योंकि, पिता की सेवा बिना परमात्मा भी खुश नही हो सकता. और परमात्मा ही हम सबका पिता है और हुम् सब उसके बच्चे हैं.

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