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एक शहीद की विधवा से लेफ्टिनेंट बनने तक का सफर कैसे किया तय, जानकर आपको भी होगा गर्व !

नाम है स्वाति महादीक, उम्र 38 साल, 12 साल की बेटी और 6 साल के एक बेटे की बहादुर माँ। स्वाति के पति संतोष महादीक भारतीय सेना के विशेष दस्ते 41 राष्ट्रीय राइफल्स में एंटी टेरर दस्ते में तैनात थे। जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेने के दौरान वो शहीद हो गए। बाद में उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। पति की मौत के एक साल बाद स्वाति ने भारतीय सेना में जाने की इच्छा जताई थी। 9 सितंबर 2017 को उनके नाम के पहले एक पदवी जुड़ गई है। वो पदवी है लेफ्टिनेंट की, अब उनका नाम स्वाति महाडिक की बजाय लेफ्टिनेंट स्वाति महाडिक है।

बढ़ती उम्र को भी दी मात

वो कहते है ना की जिसका लक्ष्य स्थिर होता है वो मंज़िल पा ही लेते हैं। कुछ ऐसा ही स्वाति ने भी कर दिखाया,पति के मौत के बाद स्वाति पहले वाली स्वाति नहीं रह गयी थी बल्कि वो पहले से भी ज्यादा, भावनात्मक स्तर पे मजबूत हो गयी थीं कारण थे उनके दो बच्चे जिसकी पूरी जिम्मेदारी अब स्वाति के कन्धों पर थी। चूँकि स्वाति की उम्र 38 साल होगयी थीं इसलिए भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए इन्हें तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह से मुलाकात करनी पड़ी, दलबीर सिंह ने मनोहर पर्रिकर से मुलाकात के बाद स्वाति को सेना में भर्ती होने की इज़ाजत दे दी। अपने दोनों बच्चों को बोर्डिंग स्कूल भेजने के बाद स्वाति ने एसएसबी का एग्जाम पास किया। 2016 में वो सर्विस सेलेक्शन कमीशन की फाइनल लिस्ट में आ गईं, इसके बाद उन्हें ट्रेनिंग के लिए चेन्नई के ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी भेज दिया गया।

पति के पहले प्यार को बनाया अपना प्यार

पति की मौत से पहले स्वाति खुद पुणे के केंद्रीय विद्यालय में टीचर थीं। पति की शहादत के बाद स्वाति ने स्कूल छोड़ आर्मी ज्वाइन कर लिया, इसके पीछे स्वाति वजह बताते हुए कहती है की उनके पति संतोष को अपनी वर्दी से बहुत प्यार था और इसलिए उनकी मौत के बाद स्वाति ने उनके पहले प्यार को जिन्दा रखने का फैसला किया और खुद भारतीय सेना में भर्ती हो गयीं।

भारतीय सेना के सहादत पर आने वाली किताब में है स्वाति का जिक्र

“India’s Most Fearless” नाम की एक किताब आ रही है जिसे livefistdefence.com के एडिटर इन चीफ शिव अरूर और हिंदुस्तान टाइम्स के लिए सेना के मामले कवर करने वाले पत्रकार राहुल सिंह ने लिखी है। पेंगुइन प्रकाशन के तहत प्रकाशित होने वाली इस किताब में स्वाति महादीक का भी जिक्र किया गया है। स्वाति शहीदों की पत्नियों के लिए एक मिशाल है जो लोगों को जीवन में कभी भी हार ना मानने के लिए प्रेरित करती है।

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