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पीएम मोदी बर्थडे स्पेशल: जानिए शून्य से देश के शिखर तक पहुंचने का सफर

भारत के प्रधानमंत्री के रूप में जो साख आज नरेन्द्र मोदी की ही शायद ही किसी दूसरे प्रधानमंत्री की होगी.. विदेशों में अपनी कूटनीति का लोहा मनवा चुके पीएम मोदी की विशिष्ट पहचान बन चुकी है। राजनीति के रण में जितने इनके घोर विरोधी हैं उतने ही इनके चाहने वाले भी हैं। बच्चे बच्चे के ज़ुबान पर आज जिस मोदी का नाम है उनकी अपनी जीवन यात्रा भी दिलचस्प रही है..एक चाय वाले से लेकर देश के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचने का उनके ये सफर बेहद प्रेरणादायक है । आज उनके 67वें जन्मदिवस के अवसर पर हम आपको उनके चाय वाले से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने के इस रोचक सफर से रूबरू करा रहे हैं।

17 सितंबर 1950 को एक साधारण परिवार में जन्मे

भारत की आजादी के तीन दशक बाद गुजरात के एक छोटे से कस्बे वड़ननगर में नरेन्द्र मोदी का जन्म हुआ। मोदी जी का परिवार आर्थिक रूप से बहुत सम्पन्न नहीं था. पिता की रेलवे स्टेशन पर चाय की एक छोटी सी दुकान थी. उसी दुकान पर किशोर नरेंद्र मोदी भी पिता का हाथ बँटाते थे. इन संघर्ष के दिनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तपाकर चमका दिया।

सन्यासी बनना चाहते थे मोदी

मोदी शुरू से ही साधु-संतों से प्रभावित थे। वे बचपन से ही संन्यासी बनना चाहते थे। संन्यासी बनने के लिए मोदी स्कूल की पढ़ाई के बाद घर से भाग गए थे। इस दौरान मोदी पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम सहित कई जगहों पर घूमते रहे। इसके बाद वे वापस घर लौट आए।

आरएसएस के मेहनती कार्यकर्ता

नरेंद्र मोदी बचपन से ही आरएसएस से जुड़े हुए थे। 1958 में दीपावली के दिन गुजरात आरएसएस के पहले प्रांत प्रचारक लक्ष्मण राव इनामदार उर्फ वकील साहब ने नरेंद्र मोदी को बाल स्वयंसेवक की शपथ दिलवाई थी। वे मेहनती कार्यकर्ता थे। वे आरएसएस के बड़े शिविरों के आयोजन में मैनेजमेंट का हुनर दिखाते थे। वे सब कुछ अकेले करते थे। आरएसएस नेताओं का ट्रेन और बस में रिजर्वेशन का जिम्मा उन्हीं के पास होता था।

18 साल की उम्र में जसोदा बेन से विवाह

Modi plans good country jashodaben

18 साल की उम्र में नरेन्द्र मोदी का विवाह उनकी मां ने बांसकाठा जिले के राजोसाना गांव में रहने वाली जसोदा बेन से करा दिया। उनका वैवाहिक जीवन सफल नहीं रहा। इसके बाद वे घर छोड़कर संघ के प्रचारक बन गए।

1980 के दशक में गुजरात की भाजपा ईकाई में शामिल हुए

नरेंद्र मोदी 1980 के दशक में गुजरात की भाजपा ईकाई में शामिल हुए। वे वर्ष 1988-89 में भारतीय जनता पार्टी की गुजरात ईकाई के महासचिव बनाए गए। नरेंद्र मोदी ने लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका अदा की। मुरली मनोहर जोशी की कश्मीर के लालचौक पर तिरंगा फहराने की यात्रा में भी मोदी हर वक्त साथ रहे। इसके बाद वो भारतीय जनता पार्टी की ओर से कई राज्यों के प्रभारी बनाए गए।

केशुभाई पटेल के बाद गुजरात की कमान संभाली

मोदी को 1995 में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया। इसके बाद 1998 में उन्हें महासचिव (संगठन) बनाया गया। इस पद पर वो अक्‍टूबर 2001 तक रहे। लेकिन 2001 में केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गई। उस समय गुजरात में भूकंप आया था और भूकंप में 20 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।

सीएम पद से मिला पीएम का कद

2007 के विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी ने गुजरात के विकास को मुद्दा बनाया और फिर जीतकर लौटे। फिर 2012 में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों में विजयी रही। राज्य में तीसरी बार अपनी सत्ता का डंका बजाया। 2012 तक मोदी का बीजेपी में कद इतना बड़ा हो गया कि उन्हें पार्टी के पीएम उम्मीदवार के रूप में देखा जाने लगा था।

2014 में संभाली देश की कमान

2013 में उन्हें बीजेपी प्रचार अभियान का प्रमुख बनाया गया और बाद में बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का एलान कर दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सरकार का गठन किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीवन यात्रा अनेक उतार-चढाव से गुजरी है. सबसे बुरा दौर तो गुजरात दंगों का समय माना जाता है. उस वक्त तो ये भी कहा जाता है कि पार्टी के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी बाजपेयी भी नरेंद्र मोदी से बहुत नाराज थे लेकिन उन सबसे ऊपर निकलते हुए मोदी जी ने सफलताओं के नए कीर्तिमान गढ़े।

माननीय नरेंद्र मोदी के 67वें जन्मदिन पर उन्हें पूरे न्यूजट्रेंड टीम की तरफ से ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।

 

 

 

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