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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, 2 फिंगर टेस्ट पर लगाई रोक, जानें क्या होता है इसमें ?

नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को एक बड़ा फैसला लिया. सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लेते हुए ‘टू फिंगर’ टेस्ट पर रोक लगा दी है. शीर्ष अदालत का यह फैसला चर्चाओं में आ गया है. कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से जांच के इस तरीक़े को मेडिकल की पढ़ाई से हटाने के लिए कहा है.

जानिए क्या होता है ‘टू-फिंगर’ टेस्ट…

two finger test

टू फिंगर शब्द कई लोगों के लिए बिल्कुल नया हो सकता है. हालांकि हम आपको बताएंगे कि आखिर यह ‘टू-फिंगर’ टेस्ट होता क्या है. अदालत ने इसे ‘पितृसत्तामक और अवैज्ञानिक’ करार दिया है. बता दें कि यह टेस्ट रेप के आरोपों की जांच और बलात्कार की पुष्टि के लिए किया जाता है.

two finger test

इसके लिए डॉक्टर पीड़िता के गुप्तांग में दो ऊंगलियां डालकर इस बात का पता लगाते है कि क्या रेप पीड़िता शारीरक संबंधों की आदी है. डॉक्टर महिला के गुप्तांग की मांसपेशियों के लचीलेपन और हाइमन की जांच करते है. बता दें कि हाइमन महिला की योनि के भीतर मौजूद एक मेंबरेन (झिल्ली) होती है. अगर यह पाई जाती है तो इसका मतलब यह होता है कि बलात्कार नहीं हुआ है.

two finger test

वहीं इस मामले पर वैज्ञानिक मत कुछ और ही है. विज्ञान कहता है कि हाइमन टूटने के कई कारण होते है. अगर किसी लड़की या महिला का हाइमन टूटा है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि उसने शारीरिक संबंध बनाए होंगे. बल्कि हाइमन को नुकसान खेलकूद आदि से भी पहुंचता है. ‘टू-फिंगर’ टेस्ट का सीधा सा मतलब है बलात्कार की कथित घटना में ‘पेनिट्रेशन’ हुआ है या नहीं.

शीर्ष अदालत ने और क्या कहा ?

two finger test

पीड़िता के पक्ष में फैसला लेते हुए शीर्ष अदालत ने कहा है कि यह तरीका अगल्त है और अविअज्ञानिक है. इससे पीड़िता को फिर से प्रताड़ित किया जा सकता है. सोमवार को यह फैसला न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायाधीश हिमा कोहली की बेंच ने एक रेप मामले में सज़ा बरकरार रखते हुए सुनाया. साथ ही कहा कि अब टू-फिंगर टेस्ट करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा और उन्हें दोषी माना जाएगा.

supreme court

न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने एक मामले पर सुनवाई में कहा कि, ”ये पितृसत्तात्मक और लैंगिक रूप से भेदभावपूर्ण है कि एक महिला के यौन संबंधों में सक्रिय होने के कारण ये ना माना जाए कि उसके साथ रेप हुआ है. कोर्ट ने बार-बार टू-फिंगर टेस्ट के इस्तेमाल के लिए हतोत्साहित किया है. इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है बल्कि यह पीड़ित को दोबारा प्रताड़ित करना है. टू-फिंगर टेस्ट नहीं किया जाना चाहिए. ये टेस्ट इस गलत धारणा पर आधारित है कि यौन संबंधों में सक्रिय महिलाओं का रेप नहीं हो सकता”.

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