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इस वजह से ताउम्र कुंवारी रही हुस्न की मलिका आशा पारेख, एक्ट्रेस ने किताब में लिखा अपना दर्द

हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख को लेकर हाल ही में एक बड़ी खबर आई थी. आशा परेख को दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा. बता दें कि यह सम्मान भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान में से एक हैं. इस बार यह सम्मान 60 और 70 के दशक की बड़ी अभिनेत्री आशा पारेख को दिया जाना है.

asha parekh

आशा पारेख का हिंदी सिनेमा में अमूल्य योगदान रहा है. वे अपने समय की बेहद मशहूर अदाकारा रही हैं. अपनी अदाकारी के साथ ही उन्होने अपनी निजी जिंदगी से भी खूब चर्चाएँ बटोरी. 80 साल की होने जा रही आशा जी ने शादी नहीं की. उन्होंने अपने करियर में कई ऐसे फैसले भी लिए जो उन्हीं के खिलाफ हो गए थे.

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आशा पारेख सेंसर बोर्ड की पहली महिला अध्यक्ष रह चुकी हैं. उन्होंने यह पद साल 1998 से साल 2001 के बीच संभाला था. आगे जाकर वे सिंटा (सिने एंड टीवी आर्टिस्ट्स असोसिएशन) की प्रेजीडेंट भी बनी. जब वे सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष थी तो उन्होंने ‘फायर’, ‘जख्म’ और ‘एलिजाबेथ’ जैसी फिल्मों पर फैसले लिए थे जिन पर खूब बवाल भी मचा था.

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जिस बारे में हम आपको बताने जा रहे है उस संबंध में खुलासा खुद आशा जी ने अपनी आटोबायोग्राफी ‘द हिट गर्ल’ में भी किया है. साल 1996 में आई फिल्म फायर जो कि देवरानी-जेठानी के बीच रिश्ते और लेस्बियन रिलेशनशिप पर आधारित थी इस पर आशा ने अपनी किताब में बताया था कि, ‘मैं सेंसरशिप कमिटी के साथ इस बात से सहमत थी कि फिल्म में दो महिलाओं के बीच के प्यार को बड़ी ही शालीनता और खूबसूरती के साथ दिखाया गया है. किसी ने भी इस फिल्म को सेंसर से क्लियर करवाने के लिए कोई सिफारिश नहीं लगवाई थी. फिल्म में कुछ ऐसा था ही नहीं. इसलिए न तो इस फिल्म पर बैन लगाने की कोई वजह थी और न ही शबाना आजमी और नंदिता दास के किसिंग सीन पर कैंची चलाने की’.

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आगे उन्होंने बताया था कि, ‘सेंसर बोर्ड का मानना था फिल्म को रिलीज किए जाने से पहले पुलिस विभाग के सीनियर अफसरों को दिखाया जाए क्योंकि इसमें जो दंगे भड़काने वाले लोगों को जिस तरह से चित्रित किया गया था, उस पर बवाल मच सकता था लेकिन मुकेश भट्ट ने इनकार कर दिया और कहा कि वह इस मामले को तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी तक लेकर जाएंगे’.

आशा ने कहा- मुझे हिटलर और तानाशाह बताया गया…

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आगे जाकर फिल्म एलिजाबेथ पर हंगामा बरपा. निर्देशक शेखर कपूर का मानना था कि इस फिल्म को यू सर्टिफिकेट मिले लेकिन इसे ए सर्टिफिकेट दिया गया था. इसे लेकर आशा ने पत्नी किताब में लिखा कि, ‘गुस्साए शेखर कपूर ने मीडिया का सपोर्ट लिया और सेंसर बोर्ड के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. मेरे खिलाफ आर्टिकल्स लिखे गए, जिनमें मुझे ‘तानाशाह’ और ‘हिटलर’ बताया गया’.

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बता दें कि आशा ने बाल कलाकार के रुप में भी काम किया. वहीं लीड एक्ट्रेस के रूप में उन्होंने फिल्म दिल देके देखो से शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

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