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मुस्लिम हो कर भी कावड़ उठाते हैं बाबू खान, जल लेकर लौटने के बाद मुस्लिमों ने किया ऐसा सलूक

श्रावण का पवित्र महीना चल रहा है. हिंदूओं के लिए यह महीना काफी विशेष होता है. भगवान शिव को यह अति प्रिय महीना होता है. इस दौरान भगवान शिव की हिंदू विशेष रूप से पूजा अर्चना करते है. श्रावण के महीने में सोमवार का भी विशेष महत्त्व होता है.

लोग श्रावण सोमवार का व्रत रखते हैं. शिव आराधना करते है. देशभर में हिंदू इस दौरान कांवड़ भी ले जाते है. वैसे आपको बता दें कि श्रवण का महीना या कांवड़ यात्रा का महत्व हिंदूओं ही नहीं बल्कि कई मुस्लिमों के लिए भी ख़ास होता है. देश में जगह जगह मुस्लिम भी इसके प्रति आस्था रखते है.

फिलहाल हम आपसे बात कर रहे है बाबू खान की. बाबू खान ने साल 2018 में पहली बार भगवान के नाम की कांवड़ उठाई थी. तब से निरंतर वे प्रति वर्ष कांवड़ उठाते है. इस्लाम धर्म के बाबू खान हिंदू धर्म में भी आस्था रखते है. सुबह पांच बजे बाबू खान नमाज पढ़ते है और फिर मंदिर में सफाई भी करते है. बता दें कि बाबू उत्तर प्रदेश के बागपत से है.

हिंदू धर्म के प्रति आस्था के लिए बाबू खान को कट्टरपंथियों का अभी सामना करना पड़ता है. साल 2018 में जब वे कांवड़ यात्रा पर गए थे और जब आने के बाद मस्जिद में नमाज के लिए गए थे तो उनका बहिष्कार कर दिया गया था. उन्हें मस्जिद में प्रवेश नहीं दिया गया. लेकिन वे कट्टरपंथियों को और उन्हें धर्म के नाम पर ज्ञान देने वालों को मुंहतोड़ जवाब देते है. बाबू खान इस्लाम के साथ ही भगवान शिव और हिंदू धर्म में भी आस्था रखते हैं.

babu khan kanwar yatra

बाबू की यह बात कई मुस्लिमों को खटकती है लेकिन बाबू खान तो अपनी बातों पर, अपने फैसलों पर अडिग रहते है. एक ट्विटर यूजर द्वारा किए गए एक ट्वीट में बाबू खान के लिए लिखा है कि, ”UP में बागपत जिले के बाबू खान ने हरिद्वार से “भगवान गणेश” के नाम की कांवड़ उठाई है. बाबू खान इससे पहले भोलेशंकर और पार्वती के नाम की कांवड़ उठा चुके हैं. पहली बार कांवड़ लाने पर उन्हें मस्जिद से बाहर निकाल दिया गया था”.

जब बाबू ने कांवड़ उठाई तो मुस्लिमों ने उनके मुस्लिम होने पर भी सवाल खड़े किए. लेकिन बाबू ने उन्हें जवाब देते हुए कहा कि मुझे अपने ही लोगों से धमकियां मिली थी. बाबू के अनुसार वे आज भी इस्लाम का प्रमुख हिस्सा हैं. कांवड़ उठाने को लेकर मेरा विरोध किया गया लेकिन मैंने इन सभी बातों की परवाह नहीं की और मैं अगली बार फिर कांवड़ यात्रा करने गया था.

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