अध्यात्म

200 किलो आम रस के भोग के बाद बीमार पड़े भगवान, इलाज में जुटे वैद्य, 15 दिन के लिए मंदिर बंद

आपको ये सुनकर अचरच होगा कि मंदिर में मौजूद भगवान बीमार पड़ गए हों और उनका वैद्य इलाज कर रहे हों। लेकिन सचमुच ऐसा हुआ है। भगवान के बीमार पड़ने की वजह भी है। ये वजह है 200 किलो के आम रस का भोग। इस भोग को ग्रहण करने के बाद ही भगवान बीमार पड़ गए। क्या है पूरा मामला आपको आगे बताते हैं-

बीमार होने से 15 दिन दर्शन बंद

दरअसल राजस्थान में कोटा के रामपुरा इलाके में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में भगवान इन दिनों बीमार हो गए हैं। भगवान जगन्नाथ का इलाज करने के लिए वैद्यजी हर रोज मंदिर पहुंचते हैं। इतना ही नहीं, भगवान का स्वास्थ्य बिगड़ा होने के चलते मंदिर में किसी भी प्रकार के शोर-शराबे पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा हुआ है। यहां तक कि मंदिर में लगी घंटियों और सभी दरवाजों व खिड़कियों को बांधकर रखा गया है ताकि किसी तरह का कोई व्यवधान उत्पन्न न हो सके।

मंदिर में भगवान के दर्शन बंद कर दिए गए हैं, केवल पुजारी और वैद्यजी को ही इलाज हेतु सुबह-शाम भगवान तक पहुंचने की इजाजत है। भगवान जगन्नाथ का इलाज इसी तरह 15 दिनों तक लगातार होगा और 15 दिनों तक के लिए भगवान क्वॉरेंटाइन रहेंगे।

आम रस के भोग के बाद तबीयत बिगड़ी

मंदिर पुजारी कमलेश दुबे ने बताया कि पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद 200 किलो आम के रस का सेवन करने से मंदिर में भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए हैं। जिसका इलाज वैद्यजी के द्वारा किया जा रहा है। साथ ही भगवान जब थक जाते हैं तो उन्हें आराम की सख्त जरूरत होती है। इस दौरान इनकी बच्चों की तरह सेवा करनी पड़ती है। पुजारी का कहना है कि ये सब परंपरा का हिस्सा है। सामान्य वर्ष में भगवान जगन्नाथ के शयनकाल का समय 15 दिन का रहता है। उन्होंने बताया इसी माह में आधा घंटे के लिए भगवान के सिंहद्वार में विराजित दर्शन देंगे। जिसके बाद मंदिर में हवन और शुद्धिकरण किया जाएगा।

कई साल पुरानी है परंपरा

पुजारी कमलेश दुबे का कहना है कि यह मंदिर करीब 350 साल पुराना रियासत कालीन है। दरअसल हाड़ौती के लोग आर्थिक स्थिति की वजह से हजारों किलोमीटर दूर जगन्नाथ पुरी मंदिर में दर्शन करने नहीं जा पाते। इसलिए उस समय के राजा पुरी से ही भगवान की प्रतिमा लेकर कोटा आए थे और उसकी रामपुरा में स्थापना कर दी। तभी से यह परंपरा निभाई जाती है। कमलेश दुबे का कहना है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को कभी भी पुरी जाने की कमी महसूस नहीं होती है।

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