ओशो की इस कहानी सुनकर संन्यासी बन गए थे विनोद खन्ना, जानना क्या थी कहानी
बॉलीवुड की फिल्मों में अभिनेता विनोद खन्ना का बड़ा नाम हुआ करता था। उनके दौर में विनोद के नाम का सिक्का चला करता था। वो सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को अपने स्टारडम से टक्कर दिया करते थे। अमिताभ जैसे ही लंबे, चौड़े और हैंडसम विनोद खन्ना अगर इंडस्ट्री न छोड़ते तो शायद वो बिग बी से भी आगे निकल गए होते।
हालांकि उन्होंने अचानक ही संन्यास लेने की घोषणा कर दी थीं। वो उस दौर में संन्यासी बन गए जब उनका करियर पीक पर चल रहा था। उनको रजनीश ओशो पसंद आ गए। उनकी एक कहानी सुनकर ही वो इतने बेचैन हो गए कि उन्होंने संन्यास ले लिया। आखिर उनकी कहानी में ऐसा क्या था, चलिए विनोद की पुण्यतिथि पर हम आपको बताते हैं।
पिता की मर्जी के खिलाफ बने थे एक्टर
अभिनेता विनोद खन्ना अपने जमाने के सुपर स्टार हुआ करते थे। उनकी फिल्में एक के बाद एक हो जाती थीं। उस दौर के अकेले अभिनेता थे जो अमिताभ को सीधी टक्कर दिया करते थे। वैसे उनके पिता नहीं चाहते थे कि वो फिल्मों में काम करें। फिर भी उन्होंने पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर बॉलीवुड में एंट्री की थी।
किस्मत ने भी उनका साथ दिया। उनकी फिल्में हिट होने लगीं और वो बॉलीवुड के सफल अभिनेता बन गए। विनोद खन्ना को बचपन से ही साधु-संतों के पास बैठना अच्छा लगता था। वो जब 8 साल के थे, तब से ही साधुओं के पास जाने लगे थे। उनके मन में अजीब सी उथल पुथल मची रहती थी जो कम ही नहीं होती थी।
ओशो की इस कहानी को सुनकर बन गए संन्यासी
उनके दोस्त महेश भट्ट ने उनको ओशो के पास जाने की सलाह दी थी। विनोद ओशो के कैसेट खरीद लाए और उसमें एक झेन गुरु की कहानी सुनी। इस कहानी में झेन गुरु को चोर समझकर पुलिस पकड़कर जेल में डाल देती है। गुरु पुलिस से कुछ नहीं कहते कि उन्होंने चोरी नहीं की है। वो बस इतना कहते हैं कि जैसी उसकी मर्जी।
जेल में वो ध्यान करने लगते हैं। उनको देखकर दूसरे कैदी भी ध्यान लगाने लगते हैं। इसी बीच असली चोर पकड़ में आता है तो पुलिस गुरु से माफी मांगती है। गुरु कहते हैं कि मुझे मत निकालो, मेरा काम पूर्ण नहीं हुआ। इसके बाद ओशो कहते हैं कि हम भी ऐसे ही जेल में हैं। हमको समग्रता से काम करना होगा तभी कोठरी से बाहर हो पाएंगे। इस कहानी को सुनते ही विनोद की बेचैनी दूर हो गई।
ओशो से मिले और ले लिया संन्यास
कहानी को सुनने के बाद वो साल 1975 में सीधा ओशो से मिलने पहुंच गए। उनसे कहा कि वो संन्यास लेना चाहते हैं और ओशो ने उनको संन्यास दिलवा दिया। इसके बाद विनोद उनके आश्रम में रहने लगे। वहीं पर सेवा करते और आश्रम की देखभाल करने लगे। फिर एक दिन उनका मन बच्चों को याद करने लग गया।
ओशो से इजाजत लेकर वो वापस घर आ गए। यहां उन्होंने दोबारा बॉलीवुड में काम करना शुरू कर दिया। वापसी के बाद उनकी पहली ही फिल्म ‘इंसाफ’ सुपरहिट हो गई। इसके बाद तो उनको दोबारा काम मिलने लगा। अपने चार दशक लंबे करियर में सफलता के बाद आज ही के दिन यानि 27 अप्रैल साल 2017 में विनोद ने दुनिया को अलविदा कह दिया।