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21 साल की MBBS छात्रा ने जान दी, सुसाइड नोट में लिखा-सॉरी मम्मी, आपकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी

उसने बड़े होकर डॉक्टर बनने का सपना देखा था। उसकी हसरत थी कि वो अपनी कोशिश से लोगों को मौत के मुंह से निकाल लाएगी, लोगों की जान बचाएगी। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि उसने खुद अपनी जान दे दी। चंडीगण से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। यहां सेक्टर 22 में रह रही एक मेडिकल की छात्रा ने हाथ की नस काट कर आत्महत्या कर ली। छात्रा ने ये कदम उठाने से पहले एक सुसाइड नोट भी लिखा था।

पुलिस ने सुसाइड नोट बरामद कर मामले की जांच शुरू कर दी। छात्रा ने सुसाइड नोट में लिखा है कि मम्मी और मोनू मुझे माफ करना मैं आपकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। इसके अलावा उसने लिखा है कि जिन लोगों को पैसे देने हैं उनके पैसे जरूर देना। जिसमें दूध वाले को लेकर और कई लोगों के नाम दिए गए हैं।

सरकारी मेडिकल कॉलेज में पढ़ती थी

मृतका की पहचान 21 वर्षीय तरूसीखा के तौर पर हुई है। तरूसीखा चंडीगढ़ के सेक्टर-32 स्थित गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (जीएमसीएच-32) की छात्रा थी। तरूसीखा के दाएं हाथ की नस भी कटी हुई थी। पुलिस के अनुसार सुसाइड की सूचना मिलने पर पुलिस टीम मौके पर पहुंची थी। पुलिस की प्राथमिक जांच में सामने आया कि तरूसीखा का कॉलेज में सेकंड सेशन सोमवार से शुरू हुआ था। जबकि वह पहले दिन घर पर ही अकेली थी।

वहीं, छात्रा का पहला सेशन किसी कारणवश छूट गया था। फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है। पुलिस की जांच में यह बात भी सामने आई है कि तरूसीखा ने सर्जरी वाले चाकू से हाथ की नस काटी थी। पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 174 के तहत कार्रवाई की है।

सुसाइड नोट में मां से मांगी माफी

सुसाइड नोट में छात्रा ने लिखा है- मां और मोनू सॉरी, मैंने यह कदम इसलिए उठाया है कि मैं यहां से वापस नहीं जा सकती। मेरे पास कोई और ऑप्शन नहीं है इसलिए मैं सुसाइड कर रही हूं। आगे लिखा है कि मैं आपकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी। वहीं उसने लिखा है कि जिन लोगों के पैसे उसे देने हैं, उनके पैसे वापस दे देना। उसने दूध वाले से एक हजार व अन्य से पैसे उधार ले रखे थे। जिन लोगों से पैसे लिए हैं, वह उनको फेस नहीं कर पा रही है।

पुलिस जांच जारी है लेकिन लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि सबकुछ ठीक होने के बाद भी आज के युवा इतनी जल्दी हार क्यों मान लेते हैं और हालात के आगे बेबस होकर जान तक दे देते हैं। क्या आज की जीवन शैली ऐसी है, या सामाजिक और पारिवारिक संस्कार बदल गए हैं जिसमें बच्चे थोड़ा सा भी ऊंच-नीच सहने की ताकत नहीं रखते और परिस्थिति के आगे टूट जाते हैं। एक भावी डॉक्टर के इस तरह चले जाने से सभी दुखी हैं।

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