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मिलिए बुन्देलखंड के ‘मांझी’ से, अकेले ही 3 साल में खोद डाला 10 बीघे का प्राचीन तालाब

कहते हैं अगर सच्ची लगन और खुद पर भरोसा हो तो कोई काम असंभव नहीं होता है। इसका जीता जागता उदाहरण हैं संत कृष्णानंद महाराज जिन्होंने गजब कर दिया। अपने दम पर अकेले ही इन्होंने 10 बीघे का तालाब खोद दिया। वो 3 साल तक इसके लिए खोदाई करते रहे। अब इनको बुन्देलखंड का मांझी कहा जाता है।

ये हैरान कर देने वाली खबर यूपी से है। यहां के हमीरपुर जिले में संत ने यह कमाल किया है। जहां लोग 1 घंटे की मेहनत से थक जाते हैं। वहीं इस वृद्ध संत ने 3 साल तक फावड़े चलाना नहीं छोड़ा। अंत में जो परिणाम मिला उससे हर कोई हैरान हो गया है। इन्होंने गांव का प्राचीन तालाब बचा लिया जो अब लोगों को सूखे से बचा रहा है।

नक्शे से गायब हो गया था प्राचीन तालाब

ये खबर सुमेरपुर इलाके के पचखुरा बुजुर्ग गांव की है। यहां एक प्राचीन तालाब हुआ करता है। पहले तालाब 10 बीघा में फैला हुआ था। हालांकि धीरे-धीरे इसकी देखरेख न होने पर तालाब खेत में तब्दील होने लगा। लोगों और प्रशासन की लापरवाही की वजह से कलारन दाई नाम के तालाब की दुर्दशा हो गई थी।

इस तालाब में एक जमाने में लबालब पानी भरा हुआ रहता था। गांव वालों के ये पानी बहुत काम आता था। तालाब का पानी वहां के लोगों को सूखे की मार से बचाता था। हालांकि कई दशकों से इस पुराने तालाब में सिर्फ धूल ही नजर आ रही थी। आलम ये था कि तालाब में बच्चे क्रिकेट खेलने लगे थे और तालाब पूरा पट गया था।

संत ने उठाया फावड़ा और बदल दिया नजारा

हालत ये हो गई थी कि पूरा तालाब ही वहां से गायब हो गया था। कोई भी गांव वाला इसकी दशा सुधारने के लिए आगे नहीं आ रहा था। गरमी के समय तो वहां भयानक जल संकट होने लगा था। जानवरों और इंसानों को पानी नहीं मिल पा रहा था। जब वर्षों तक ये संकट दिखने लगा तो संत कृष्णानंद ने इसे चुनौती के रूप में ले लिया।

संत ने अपने दम पर ही इसको फिर से तालाब बनाने की ठान ली। वो अकेले की फावड़ा लेकर पहुंच गए और खोदाई शुरू कर दी। शुरुआत में तो गांव वालों ने उनको पागल समझा। आखिर 10 बीघा का तालाब कोई अकेले कैसे खोद लेगा। इसके बाद भी संत ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार खोदाई करते रहे।

तीन साल में बदल की सूरत, हुआ सम्मान

संत ने 3 साल तक इस तालाब की खोदाई जारी रखी। उनके काम के बीच कई दिक्कतें आईं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। आखिरकार 3 साल बाद जाकर 10 बीघे का तालाब फिर से खोद डाला। अब इस तालाब में पूरे साल पानी भरा रहता है। इस तालाब में पानी आ जाने के बाद गांव वाले भी काफी खुश नजर आ रहे हैं।

संत ने साल 1982 में संन्यास ले लिया था। इसके बाद वो हरिद्वार चले गए थे। यहां से साल 2014 में वो गांव लौट आए थे। यहीं पर साल 2015 में उन्होंने खोदाई शुरू की थी। संत को उनके काम के लिए कई बार सरकार से सम्मान भी मिल चुका है। उनका कहना है कि धरोहरों की रक्षा करने के लिए सबको आगे आना चाहिए।

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